मेरा मकान है
शायरी | ग़ज़ल नीना पॉल (स्वर्गीय)30 Jun 2012
पत्तों पे झूलता हुआ मेरा मकान है
नीचे कहीं ज़मीं ना ऊपर आसमान है
फिसल गए हथेलियों से रेत की तरह
लमहों की मेरे देखो बड़ी तेज़ उड़ान है
ये रात की दीवार बढ़ कर रोकने लगी
होने दो रोशनी को आगे बियाबान है
देखो तो कैसे जूझ रहा है हवाओं संग
वो इक दिया जो रात का ही महमान है
भूल के कल थाम ले जो आज की बाहें
उसके ही आगे झुकता ये सारा जहान है
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