फ़न और शख़्सियत एक आत्मीय दृष्टिकोण . . .
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा सागर सियालकोटी1 Jul 2025 (अंक: 280, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
शीर्षक: तेरी–मेरी कहानी (लघुकथा संग्रह)
लेखिका: डॉ. विभा कुमरिया शर्मा
प्रकाशक: साहित्य ग्राम पब्लिकेशन, छत्तीसगढ़
प्रकाशन वर्ष: 2025
मूल्य: ₹249/-
अमेज़ॉन, फ़्लिपकार्ट, किंडल, गूगल बुक्स, गूगल प्ले स्टोर आदि पर उपलब्ध।
मैं अपनी बात इन पंक्तियों से शुरू करता हूँ—
“तुम्हारा ज़र्फ़ तुम्हारे होने का पता दे,
समंदर से कभी उसकी गहराई नहीं पूछी जाती . . .”
इन्हीं पंक्तियों के आलोक में मैं अपनी बात आरंभ करना चाहता हूँ। यह पंक्तियाँ जैसे विशेष रूप से डॉ. विभा कुमरिया शर्मा के लिए ही रची गई प्रतीत होती हैं। डॉ. साहिबा ऐसी साहित्यिक शख़्सियत हैं जिनका लेखन अपने आप में एक परिचय है—न शोहरत का मोह, न प्रचार की लालसा। डॉ. विभा कुमरिया शर्मा हिंदी भाषा की उच्च कोटि की रचनाकार हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी लेखिका टोनी मॉरिसन कहती हैं कि—“जीविका के लिए लिखना और जीवन के लिए लिखना—इन दोनों में बड़ा अंतर है। जीविका के लिए लिखने वालों को अक्सर समझौते करने पड़ते हैं, परन्तु जो जीवन के लिए लिखते हैं, उन्हें अपने लेखन में निष्ठा और परिश्रम के शिखर तक पहुँचना होता है।”
इस कसौटी पर यदि कोई लेखक पूर्णतः खरा उतरता है, तो मैं कहना चाहूँगा कि—वह निस्संदेह डॉ. विभा कुमरिया शर्मा हैं।
कविता, संस्मरण, बायोग्राफी, कहानी—हर विधा में आपकी लेखनी ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। शिक्षण जगत की सशक्त स्तंभ होने के साथ-साथ आप समाजसेवा के प्रति भी सजग और समर्पित हैं। आपकी रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र–पत्रिकाओं, दूरदर्शन व आकाशवाणी जैसे माध्यमों पर चर्चा का विषय रही हैं।
‘तेरी–मेरी कहानी’—आपका यह लघुकथा संग्रह इस बात का प्रमाण है कि थोड़े से शब्दों में गहन भावों को व्यक्त करना भी एक कला है, जिसे आपने पूरी परिपक्वता के साथ साधा है। “गागर में सागर” की कहावत जैसे इन लघुकथाओं के लिए ही कही गई हो।
‘मैल’ शीर्षक लघुकथा का समापन—“धोबी हैरान है कि मैं मैले कपड़े धोने वाला आदमी, रिश्तों में आई मैल को कैसे साफ़ करूँ?” यह एक ऐसा वाक्य है, जो सीधे हृदय में उतरता है।
‘तोल–मोल’ लघुकथा में रिश्तों के चयन की संवेदनशीलता है, ‘मायूसी’ लघुकथा में शराब की राजनीति की मार्मिक व्याख्या हो या ‘व्यथागीत’ में शोषण की चीख प्रत्येक कहानी पाठक के अंतर्मन को झकझोर देती है। व्यथा गीत का मर्म देखिए, “गटर की गंदगी में उतरना, विषैली गैस में साँस लेना यह शोषण नहीं है तो और क्या है?” जब वह कहती हैं कि समाज उन्हें हरिजन कहकर सम्मान दे या उनसे आदरपूर्वक बात करें इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है गटर की गंदगी में उतरना ऑक्सीजन के स्थान पर कार्बन डाइऑक्साइड जैसी विषैली गैस में जीने मरने की स्थिति का सामना करना शोषण नहीं है तो और क्या है? समाज पर चोट करती लघु कथाएँ भूख, तमाशा ए बद्दुआ, माँ और भगवान आदि कई अनुत्तरित प्रश्न हैं। लुधियाना शहर का 100 साल पुराना लक्कड़ वाले पुल का तोड़ दिया जाना लेखिका को उसके अस्तित्व के मिटने की याद दिलाता है। ‘दृष्टिकोण’, ‘स्थिति परिवर्तन’ जैसी कहानियाँ सास-बहू के मौजूदा रिश्तों की बात करती ऐसी लघु कथाएँ हैं, जो लघु कथा में आत्मविश्वास पर आधारित दिखाई देती हैं। ‘सबका साथ सबका विकास’ कहानी होली के रंग में आत्मीयता के भाव को प्रस्तुत करती है। ‘क़ब्ज़ा’ लघु कथा में सत्ता स्थानांतरण का भाव उभर कर पाठक के सामने आता है। ‘थाली’ लघु कथा बताती है कि मंदिरों में अब भक्त अपने प्रसाद के साधन से पहचाने जाते हैं, भक्ति भावना से नहीं। डॉ. साहिबा जी का लघु कथा के माध्यम से समाज को आईना दिखाने का उत्तम प्रयास है।
‘तेरी–मेरी कहानी’ कुल मिलाकर केवल 75 लघुकथाओं का संकलन ही नहीं बल्कि यह एक कालचिंतन है—जिसमें सुबह से लेकर साँझ तक, जीवन के हर रंग, हर स्वर, हर संवेदना को लेखिका ने बा-ख़ूबी चित्रित किया है।
ऐसी रचनाएँ आज की पीढ़ी के लिए शिक्षाप्रद हैं। मेरा मानना है कि ऐसी रचनाएँ आज के परिवेश में स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बननी चाहिएँ, जिससे बाल एवं युवा वर्ग छोटी–छोटी मगर गहरी कथाओं से जीवन का पाठ सीख सकें।
यदि प्राचीन भारतीय साहित्य में पंचतंत्र की लघुकथाओं ने नैतिक मूल्यों को स्थापित किया गया है, तो वर्तमान समय में डॉ. विभा कुमरिया शर्मा की ये लघुकथाएँ उसी उद्देश्य का संवेदनशील रूप हैं।
हर कथा जीवन का एक दर्शन, एक दृष्टि, एक दिशा देती है।
अंत में बस यही कहना चाहूँगा कि यदि मैं इन सभी लघुकथाओं का विश्लेषण करने बैठूँ, तो पाठकों के लिए वह जादू नहीं बचेगा, जो पहली बार पढ़ते समय मुझे महसूस होता रहा।
वैसे भी मैं सोचता हूँ कि यदि मैं ही हर एक लघु कथा पर विशेष टिप्पणी दी तो बाक़ी पाठक क्या करेंगे इसलिए मैं चाहूँगा कि यह लघु कथा संग्रह हर किसी के द्वारा पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि जीवन सीखने का क्रम है।
मैं डॉ. विभा कुमरिया शर्मा को इस अनुपम साहित्यिक प्रयास के लिए दिली मुबारकबाद देता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर उन्हें दीर्घायु व उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे, जिससे वे साहित्य की यह मशाल और भी दूर तक प्रज्वलित कर सकें।
भविष्य के लिए अनेक शुभकामनाओं सहित—
सादर,
सागर सियालकोटी,
1077 फेज़ नंबर:1,
अर्बन इस्टेट, डुगरी रोड,
लुधियाना, पंजाब।
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