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गागर में सागर भरती रचनायें . . . 

वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय देवी नागरानी जी की रचनाएँ गागर में सागर भरती, जादुई क़लम से सहज व सुकोमल भाषा में लिखीं, सौम्य भावों को प्रवाहित करती, अप्रतिम बिंबों व प्रतिबिंबों से सुसज्जित, उर्दू मिश्रित शब्दों के ख़ूबसूरत ताने-बाने से बुनी, “देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर” उक्ति को सार्थक करती हैं। 

प्रथम दार्शनिक कविता ‘कौन’ पढ़ते ही हृदय में उथल-पुथल सी होने लगती है। कितने गहरे भाव इन छोटी सी पंक्तियों में गुथे हैं:

“इक दर्द जो सदियों से 
 चट्टान बन कर
 मेरे भीतर जम गया था 
 एक पारदर्शी लावा बन कर
 बह गया।” 

आपकी रचनाएँ जीवन के उतार-चढ़ाव, अपनों के सुख-दुख, आपसी रिश्तों की उलझन, अपनत्व स्नेह की शून्यता को दर्शाते हुए कहीं-कहीं निराशा की छटा भी बिखेर जाती हैं और दार्शनिकता के पथ पर अग्रसर होने लगती हैं। 

‘आई मिलन की बेला रे’ कविता के संवेदनात्मक स्वर अंतस् में गहरे उतरते जाते हैं। कवियित्री परिचारिका के सौम्य, नरम स्पर्श की कोमलता को यादकर खिल उठती है और परिजनों की यादों के झरोखों में झाँकती, गहराई तक डूब जाती है। वह कहती हैं:
 
“कैसे भूल जाऊँ 
 वो बीते कुछ दिन . . . 
 कुछ यादगार पल।” 

वहीं ‘मात’ कविता में अपनों के अनुचित व्यवहार से संतप्त हैं: 

“मैं तो वही हूँ 
लोगों ने नज़रें बदल ली हैं।” 

अध्यात्म की तरफ़ बढ़ती रचनाएँ गूढ़-गंभीर भावों से परिपूर्ण हैं। वह कहती हैं, जीवन तो सुकर्मों को करने के लिए प्रदान की गई प्रभु की बख़्शीश है और इसे हम व्यर्थ ही गँवाते रहते हैं। वह परमात्मा को ही अपनी जीवन नैया का केवट मानती हैं। सुंदर पंक्तियाँ देखिए:

“यक़ीनन क़लम मैंने थामा है 
लिखने वाला कोई और है।” 

‘प्यास‘ कविता में भी अनंत काल से भटकता, प्रभु को खोजते मन का अप्रतिम वर्णन है। 

निर्भयता और आत्मविश्वास की मिसाल प्रेरित करती ये पंक्तियाँ:

“हदों की सलाख़ें 
मेरी उड़ान के पर क़तर कर . . . 
लहुलुहान करने को आतुर 
पर प्रयास जारी है।” 

ग्रीष्म ऋतु में साये का अद्भुत वर्णन अकेलेपन की उदासी को दर्शाता है। दूसरे ही पल वह आत्मविश्वास से भर कहती हैं—मैं अकेली तो नहीं, जीवन के संघर्षों से क्या डरना? अपना बोझ दूसरों के कंधों पर सौंप देने से झंझावात कम नहीं हो जाते। प्रेरणादायी ख़ूबसूरत भाव। 

‘माटी कहे कुम्भार से’ काव्य संग्रह की अधिकतर रचनाओं में दार्शनिकता का भाव झलकता हैं। मन की आँखें खोल, घुटन आदि इसी प्रकार की कृतियाँ हैं। धूप के पाँव अत्यंत मार्मिक रचना बन गई है। आशा निराशा के झूले में झूलती कविताएँ मन के ऊहापोह को दर्शाती हैं। चादर, शतरंज के खिलाड़ी कुछ कविताएँ राजनीति से भी प्रभावित हैं। 

आत्मविश्वास से पूर्ण अपने स्वाभिमान को बरक़रार रखती एक प्रभावशाली कविता ‘अगर तुम समझते हो’ की चुनिंदा पंक्तियों को देखिए:

“जो चाबी ताला बंद करती है 
वह उसे खोलती भी है।” 

आत्मज्ञान दर्शाती कविता मैं और नई प्रभात एक आशावाद रचना के साथ यह संग्रह संपूर्ण होता है। 

कवियित्री अपने जीवन को आनंद से जी भर कर जीना चाहती हैं। वह अपनी यादों की गठरी से मोती चुन चुन कर उनकी शीतलता और मधुरता की छुवन को महसूस करती हैं। 

सभी छोटे-छोटे बंद पाठक के अंतस् को भिगो जाते हैं, इन सौम्य, सहृदय रचनाओं से जुड़ाव सा होने लगता है मन स्नेह और अपनत्व से द्रवित हो उठता है। आदरणीय देवी नागरानी जी की सशक्त भावों से लबालब लेखनी अविरल चलती रहे और हम सभी को प्रेरणामयी आशीर्वाद मिलता रहे। अनंत शुभकामनाएँ और हार्दिक बधाई। 

मनवीन कौर पाहवा
पूर्व, प्रधानाध्यापक 
लेखिका व कवियित्री 
email:manveenkaurjp@gmail। com

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