गोरो भारत छोड़ो
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता विद्या दास15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
ब्रिटिश शासन की बात है,
आज़ादी कुछ पास है।
गोरे भारत के अभिशाप,
गाँधी विश्व-शांति की गुहार।
भारत की पवित्र भूमि पर,
गोरों की काली-करतूतें पलतीं।
सत्य-अहिंसा, देश-प्रेम भावना
गाँधी के रग-रग में बसती।
भारत छोड़ो का नारा,
हर कोने-कोने में गूँज गया।
बहुत गुलामी कर चुके, अब और नहीं ,
स्वतंत्रता की ज्वाला उमड़ी हृदय में।
गाँधी रघु है, है वो भगवान,
सत्य-अहिंसा जाग उठी।
बुज़ुर्ग चले डांडी के पथ पर,
नमक आन्दोलन का आरम्भ हुआ।
अपने अधिकार संरक्षण कर,
स्वदेशी का प्रचार किया।
खून की धारा बह गयी,
जालियाँवाला बाग़ में।
बहुत रह लिए मौन, दर्द न सहेंगे हम
सीने में जलती लौ, गोरों का संहार किया।
भारत छोड़ कर चले गये,
बंधनों की बेड़ियाँ टूटीं,
बढ़े स्वतंत्रता की ओर।
देश पर तिरंगा ध्वज लहराया,
धन्य हो वो वीर गण।
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