इस बार की गर्मी भी क़हर ढा रही है
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य कविता दीपाली कालरा15 Apr 2022 (अंक: 203, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
इस बार की गर्मी भी
क़हर ढा रही हैं
हम महिलाओं का मेकअप पसीने से उतार रही है
काम नहीं कर रहा वाटरप्रूf काजल और लिपस्टिक भी
फ़ॉउंडेशन से गोरा
रंग काला पड़ रहा है
इस बार की गर्मी भी
क़हर ढा रही है
पसीना पोंछ पोंछ कर फैल रही है लाली लिपस्टिक
काजल भी आँखों से
बाहर आ रहा है
आई लाइनर और मस्कारा का तो हाल ही मत पूछो
पिघल कर सारे चेहरे
पर उतर रहा है
उफ़ यह गर्मी
क्या सितम ढा रही है
सारे मेकअप की बैंड
बजा रही है
हम से अच्छे तो पुरुष ही सही
हमेशा एक जैसे रहते हैं
एक ही कपड़ों में कितनी शादियाँ अटेंड करते हैं
ना कोई काजल न लिपस्टिक की ज़रूरत
परिवार के लिए अपनी हर एक इच्छा को पीछे छोड़ देते हैं
ना इन पर गर्मी का असर ना ही ठंड का प्रहार
ना चेहरे पर कोई आँच न शिकन
कितनी भी गर्मी पड़े पर
रहते हैं जस के तस
हमने भी सोच लिया
विदाउट की मेकअप ही
हम ऑफ़िस जायेंगे
ना देंगे गर्मी को शिकायत का मौक़ा
सबसे अच्छी है सादगी की सुंदरता
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