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एक पापा की ज़ुबानी: बहू भी किसी की बेटी है

अगर ससुराल वाले नए परिवेश में नई बहू की ‘परवरिश’ की ज़िम्मेदारी सही ढंग से निभाते हैं तो बहू भी जल्द ही अपने इस नए परिवार को दिल से अपना लेती है। वरना जिन पूर्वाग्रहों को लेकर वह ससुराल में क़दम रखती है, वे हमेशा बने रहते हैं। 

शादी—एक ऐसा शब्द जिसे सुनते ही एक लड़की के मन में कई ख़्याल आ जाते हैं। शादी के बाद की अपनी ज़िन्दगी को लेकर उसके मन में कई उम्मीदें और शंकाएँ होती हैं। भारतीय समाज में एक लड़की को बचपन से वयस्क होने तक कई बार बताया जाता है कि किस तरह एक दिन उसकी शादी हो जाएगी और उसकी सारी ज़िन्दगी बदल जाएगी। अभी ‘अभी जो ज़िद करनी है कर लो, शादी के बाद नहीं कर पाओगी। मम्मी-पापा से झगड़ लो, सास-ससुर से कैसे झगड़ोगी। यहीं देर तक सो लो, ससुराल में सुबह जल्दी उठना पड़ेगा। ससुराल में तो घर का सारा काम करना पड़ेगा’ और भी ना जाने कितनी ही ऐसी बातों से एक लड़की को बार-बार पर यह अहसास करवाया जाता है कि शादी के बाद ससुराल में उसे उतनी आज़ादी, अपनापन और प्यार नहीं मिलेगा, जितना उसे अभी मिल रहा है। इन्हीं सब बातों को सुनते-सुनते एक लड़की बड़ी होती है और अपने मन में ससुराल और ससुराल वालों के प्रति पहले से ही राय बना लेती है। वह शादी से पहले ही ससुराल लेकर पूर्वाग्रह की शिकार हो जाती है। शादी के बाद जब वह ससुराल जाती है तो उसके साथ उसके पूर्वाग्रह भी होते हैं। वह भीतर से डरी हुई होती है, जिस वजह से उसे ससुराल के नए परिवेश और नए रिश्तों से सामंजस्य बैठाने में दिक़्क़त होती है। ऐसे में ससुराल वालों को उसकी मनोस्थिति समझनी चाहिए और नए माहौल में ढलने में अपनी बहू का पूरा साथ देना चाहिए। मदद नहीं, उसका साथ दें . . . 

आपने टीवी पर एक विज्ञापन देखा होगा, जिसमें नई बहू किचन में कुछ पका रही होती है, तभी सास वहाँ आती है और पूछती है कि क्या बना रही हो? बहू कहती है कि पापाजी के लिए हलवा बना रही हूँ। तभी सास किसी बहाने से बहू को किचन से बाहर भेज देती है और हलवा चखती है। उसे हलवे में चीनी कम लगती है तो वह और डाल देती है। सभी हलवे के लिए बहू की तारीफ़ करते हैं तो सास मंद-मंद मुस्कुरा रही होती है। इसी तरह अपनों का साथ दिया जाता है और जताया नहीं जाता। मेरी सास यानी मेरी माँ भी बिलकुल ऐसी है। अगर आप अपनी बहू को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं तो उसका साथ दें। तुलना करने से बचें . . . 

“उसकी बहू को देखा है, वह सबकी कितनी सेवा करती है। कभी किसी से कुछ नहीं कहती और मुस्कुराते हुए सभी काम करती है।” इस तरह की बातें अक़्सर एक बहू को ससुराल में सुनने को मिलती हैं। कई बार ऐसा होता है कि आप अपनी बहू की तुलना दूसरों से करते हैं और उसे उनके जैसा बनने की सीख देते हैं। हालाँकि, आपको यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। सभी एक जैसे नहीं होते और न हो सकते हैं। आपको अपनी बहू को उसकी अच्छाइयों और कमियों के साथ स्वीकार करना चाहिए। ख़ासकर तब जब लड़की आपने ख़ुद पसंद की और उसे अपनी बहू के रूप में पसंद किया। 

एक लड़की शादी के बाद सिर्फ़ अपने पति के भरोसे ही ससुराल में क़दम रखती है। हालाँकि, अरेंज मेरिज के मामलों में पति-पत्नी भी एक-दूसरे को अच्छे से नहीं जानते, ऐसे में शादी के बाद हर लडक़े की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह अपनी पत्नी का साथ दे। लडक़े को समझना चाहिए कि एक लड़की अपना सबकुछ छोड़कर सिर्फ़ उसकी ख़ातिर यहाँ आई है और अगर ऐसे में वह उसका साथ नहीं देगा तो ससुराल में कोई उसका साथ क्यों देगा। जब पति अपनी पत्नी को सम्मान देता है और उसका साथ देता है तो ससुराल में भी उसकी पत्नी का सम्मान होता है और सब उसके साथ होते हैं। पति का साथ है अहम . . . 

शादी के समय अक़्सर यह कहा जाता है कि हम आपकी बेटी को बहू की तरह नहीं, बेटी की तरह रखेंगे। हालाँकि, अधिकतर परिवारों में यह वाक्य महज़ कहने के लिए ही कहा जाता है। अधिकतर परिवारों में एक लड़की को बेटी का तो दूर, बहू का अधिकार भी सही तरह से नहीं मिल पाता। अगर आप चाहते हैं कि आपकी बहू आपके परिवार को पूरी तरह से अपनाए तो आपको भी अपने इस वाक्य को सार्थक करके दिखाना चाहिए। अपनी बहू को बेटी की ही तरह पूरे अधिकार देने चाहिए। जिस तरह आप अपनी बेटी की बड़ी से बड़ी ग़लती भी माफ़ कर देते हैं, उसी तरह आप अपनी बहू की ग़लतियों को भी नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। साथ ही, जिस तरह आप अपनी बेटी को डाँटने का अधिकार रखते हैं, उसी तरह आप बहू के ग़लत होने पर उसे भी अधिकार से डाँटिए। आपकी बहू को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप उसके साथ परायों जैसा व्यवहार कर रहे हैं। तारीफ़ करना न भूलें . . . सिर्फ़ कहें नहीं दिल से मानें बेटी। 

शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जिसे अपनी तारीफ़ सुनना अच्छा नहीं लगता होगा। आपको भी अपनी बहू की तारीफ़ करनी चाहिए। हो सकता है कि आप पीठ पीछे बहू की तारीफ़ करते हों लेकिन उसके सामने कुछ न कहते हों या उसकी कमियाँ गिनाते हों तो आपको अपनी यह आदत और सोच बदलनी चाहिए। जब आप छोटे-छोटे कामों या बातों के लिए अपनी बहू के सामने उसकी तारीफ़ करेंगे तो उसे अच्छा लगेगा और उसका विश्वास भी बढ़ेगा। उसे अपनी क़द्र का अहसास होगा। 

आख़िर
जन्म देने वाली माँ भी एक है। 
आज भी, 
फिर क्यों नहीं करते हो समानता, 
कहाँ गई तुम्हारी अखंडता? 
बहू बेटी में अंतर क्यूँ
बेटी के लिए सब कुछ जायज़ है, 
पर बहू के लिए क्यूँ नाजायज़ है? 
बेटी के नख़रे तुम सह लेते हो, 
बहू की मन की इच्छा के लिए, 
बुरा भला तुम क्यूँ कहते हो? 
बेटी आपकी, आपकी है, 
फिर भी क्यूँ भूल जाते हो, 
आख़िर बहू भी तो बेटी है? 
क्यों कहते हो, है हमारी बहू, 
बना कर तो देखो उसको, 
बेटी की हू ब हू
जिस दिन बेटी कहना, 
मानना और निभाना सीख लोगे, 
उस दिन जान जाओगे, 
बहू भी बेटी है। 

फिर एक पिता भी अपनी बेटी को ख़ुशी ख़ुशी विदा करेगा। एक पिता ने अपनी कहानी शेयर की है:

बेटी की बचपन से ही आदत थी! वो जन्मदिन आने के 4-5 दिन पहले से ही कहने लगती—पापा आपने “गिफ़्ट“ले लिया? मैंं मुस्कुराता और नहीं में सर हिला देता—वो ग़ुस्से से मुँह फुला लेती! फिर जन्मदिन वाले दिन सरप्राइज़ मिलता तो बहुत ख़ुश होती! 

जब उसकी शादी हो गई तो मानो ऐसा लगा की जैसे घर की रौनक़ ही चली गई है क्योंकि निःसंदेह बेटियाँ घर में अनथक संगीत की तरह होती हैं!! वो बहू बनकर अपने ससुराल चली गई। इस बार वो ससुराल में थी, मैं भी गिफ़्ट ख़रीद कर वहीं जा पहुँचा। बर्थ डे पर सरप्राइज़ देने की नीयत से दबे पाँव उसके घर में दाख़िल हुआ। अंदर बेटी के रोने और उसके पति और सास के लड़ने की आवाज़ें बाहर तक आ रही थी! कलेजा मुँह को आ गया। मैंं बोझिल पैरों से पलटा, बाहर मेन रोड पर आकर मैंने फ़ोन पर उसके ससुराल आने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो वह बोली—पापा आज मत आना, हम बाहर “डिनर” करने आएँ हैं! आज मेरा बर्थ-डे है ना! . . .। 

नाज़ुक पर ज़िद्दी दिखने वाली ये बेटियाँ समय के साथ ख़ुद को कितना बदल लेती है! 

पिता ने बंदिशें लगाईं, 
उसे संस्कारो का नाम दे दिया। 
सास ने कहा अपनी इच्छाओं को मार दो, 
उसे परम्पराओं का नाम दे दिया। 
ससुर ने घर को क़ैदख़ाना बना दिया, 
उसे अनुशासन का नाम दे दिया। 
पति ने थोप दिये 
अपने सपने अपनी इच्छायें, 
उसे वफ़ा का नाम दे दिया। 
बच्चों ने अपने मन-की की और
उसे नयी सोच का नाम दे दिया। 
ठगी सी खड़ी वो ज़िन्दगी की राहों पर, 
और उसने उसे क़िस्मत का नाम दे दिया। 
मंदिर में गयी तो, 
महाराज ने उसे कर्म का नाम दे दिया॥
ज़िन्दगी तो उसकी थी एक पल जीने को तरस गयी। 
फिर भी इन चलती साँसों को उसने 
ज़िन्दगी का नाम दे दिया . . .!! 
यह बलिदान केवल लड़की ही कर सकती है, 
इसिलिए हमेशा लड़की की झोली 
वात्सल्य से भरी रखना . . .!! 

ससुराल में भले ही एक लड़की का रिश्ता उसके पति के साथ जुड़ता हो लेकिन सास और ससुर दोनों ही आपके इस रिश्ते का आधार होते हैं। ससुराल में जितना बड़ा ओहदा सास का होता है उतना ही ससुर का भी होता है, बल्कि उससे ज़्यादा ही होता है। क्योंकि ससुर ही वह शख़्स होते हैं जो पति-पत्नी और सास-बहू के बीच अच्छा तालमेल बनाने में सेतु का काम करते हैं और लड़ाई व ग़लतफ़हमियों को दूर करते हैं। सास और बहू के बीच खटपट होना कोई नई बात नहीं है। कभी सास की ग़लती होती है तो कभी बहू की ग़लती होती है। लेकिन जब घर में ससुर होते हैं तो वह एक न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए निष्पक्ष फ़ैसला सुनाते हैं, जो सास और बहू दोनों को मानना पड़ता है। इसके अलावा जब घर में ससुर होते हैं तो वह एक काउंसलर की भूमिका निभाते हैं। इसलिए अगर आप अपने ससुर के साथ अच्छा रिश्ता रखती हैं यानी कि उन्हें अपने पिता की तरह मानती हैं तो निश्चित है कि वह भी आपको बेटी का दर्जा देंगे। जिससे रिश्ते में तो मिठास आएगी ही साथ ही आपका ससुराल में दर्जा भी बढ़ेगा। 

अगर आप अपने ससुर के साथ एक हेल्दी रिलेशन चाहती हैं तो घर के हर फ़ैसले में उनकी राय ज़रूर लें। यहाँ तक कि अगर आप वर्किंग हैं तो उनके साथ अपने ऑफ़िस की बातें शेयर करें। अगर आप जॉब चेंज करना चाहती हैं या कोई दूसरा करियर चुनना चाहती हैं तो अपने ससुर से ज़रूर सलाह लें। इससे आप दोनों के बीच प्यार और विश्वास बढ़ेगा। ऐसा भी हो सकता है कि वह ख़ुद इस चीज़ के लिए न बोलें लेकिन अगर आप उनके साथ फ़्रेंडली बात करना शुरू करेंगी तो आपके ससुर को बहुत अच्छा लगेगा। 

ऐसे में यदि उसे बेटी जैसा ही भाव ससुराल में मिल जाए तो ये सफ़र उसके लिए आसान हो जाता है। यदि आप अपने तथा परिवार के अच्छे भविष्य की कल्पना करते हैं जिसमें एकता, प्यार, संस्कार भरपूर हो तो ससुर होने के नाते एक पिता की तरह बहू से बातचीत करें और अपनी व्यवस्थाओं से उसे रुबरू करवाएँ। उसे अपनापन देने का प्रयास करें। आपके छोटे-छोटे प्रयास उसका दिल जीत लेने के लिए काफ़ी होंगे। बहू, बेटा, सास, ससुर सब परिवार के लिए कितने महत्त्वपूर्ण है और उसके विशेष दिनों जैसे जन्मदिन या शादी की सालगिरह को याद रख और मनाकर भी ये भावना जता सकते हैं। 

एक लड़की के पिता से ये उम्मीद की जाती है कि उसे हर हाल में लड़की के ससुराल वालों को सबसे ऊपर रखना है। भरपूर सम्मान और समय देना है तो यदि उसी तरह आप बहू के परिवार वालों को उचित सम्मान और वक़्त देते रहेंगे तो निश्चित ही आपकी बहू के मन को ये बात हमेशा सुख देगी। आपके मान और सम्मान को भी वो सर्वोपरि रखेगी। एक पिता की ज़ुबानी।

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