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जीवन संध्या के रंग – 002

 

ढोल नगाड़े और शहनाइयों के सुर बज रहे थे। शादी में कन्या विदाई की बेला आ गई थी। जयेश भाई और जया बहन अपनी इकलौती बेटी मानसी को विदा करते हुए बहुत दुखी हो रहे थे। तभी समधी जी मुकेश भाई ने आगे आकर कहा, “जयेश भाई आपने बेटी दी है तो बेटा लिया भी तो है विवाह सिर्फ़ वर वधू को नहीं जोड़ता दो परिवारों का मिलन है। अब आप हमारे और हम आपके अपने ही हैं आप बिल्कुल चिंता ना करें।”

मानसी और मनीष की शादी को 4 महीने बीत चुके थे पर सच में उन दोनों ने और मुकेश भाई तथा माया बहन ने जयेश भाई और जया बहन को बिल्कुल अकेलापन महसूस नहीं होने दिया। शहर नज़दीक ही था। बार-बार मिलने चले जाते और फोन, वीडियो कॉल से भी बातें होती रहती थीं। शाम की चाय पीते हुए जयेश भाई ने जया बहन से कहा, “हम कितने ख़ुशनसीब हैं कि बेटी को इतना अच्छा ससुराल मिला है!” 

समय बीतते कहाँ देर लगती है? मानसी ने पुत्र को जन्म दिया तब भी दोनों परिवारों ने साथ मिलकर ही मानसी को सँभाला और पुत्र जन्म की ढेर सारी ख़ुशियाँ मनाईं। 

जया बहन को डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर की बीमारी तो थी ही 1 दिन सुबह में बेड से उठने का प्रयत्न किया पर उठ ही नहीं पाई। उन्हें हल्का सा पैरालिसिस का अटैक आ गया था। जयेश भाई ने जल्दी से डॉक्टर को बुला कर दिखाया और तुरंत ही अस्पताल में भर्ती करवा दिया। मानसी और मनीष भी सतत उनकी सेवा में लगे रहे। छोटा सी ब्लड क्लोटिंग होने की वजह से, फिर से चलने फिरने लगे पर उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था। मानसी ने घर में काम वाली बाई और रसोई करने वाली बाई की व्यवस्था तो कर ही दी। जयेश भाई बाहर का सामान लाकर देते या होम डिलीवरी से मँगवा लेते। 

कुछ दिनों के बाद जयेश भाई बाथरूम में गिर गए तो उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। मानसी और मनीष फिर से उनकी सेवा में लग गए। उधर माया बहन घर के साथ बेटे आर्यन को भी सँभाल लेते थे। 

मुकेश भाई जयेश भाई का हाल-चाल पूछने आए तो बड़े ख़ुश थे। दोपहर को खाने की मेज़ पर सब मिले तो मुकेश भाई ने बताया कि हमारी सोसाइटी में हमारे ही फ़्लोर पर सामने वाला मकान बिक रहा है तो क्यों ना हम वह ख़रीद लें? जयेश भाई और जया बहन को वहाँ शिफ़्ट कर देते हैं। जयेश भाई निवृत्त ही हैं तो कोई दिक़्क़त भी नहीं होगी। सब साथ में होंगे तो कोई चिंता नहीं रहेगी। 

सबको उनका यह सुझाव अच्छा लगा और जयेश भाई तथा जया बहन वहीं रहने के लिए चले गए। अपना घर अलग होने की वजह से अपनी मर्ज़ी से सम्मान पूर्वक रह सकते थे और बेटी के पूरे परिवार का साथ भी था। बेटी के घर रहने का क्षोभ भी नहीं था और बार-बार बेटी को अपने यहाँ बुलाने की नौबत भी नहीं आती थी। 

अब तो सब साथ मिलकर ख़ुशी से रहने लगे। जयेश भाई और मुकेश भाई साथ मिलकर गार्डन जाते वाकिंग करते ताश खेलते और जया बहन तथा माया बहन भी मिलकर तरह-तरह के पकवान सब को खिलाते। होली यहाँ मनाते तो रामनवमी वहाँ मनाते और आर्यन को तो दादा दादी के साथ नाना नानी का प्यार भी मिल रहा था। अब मानसी और मनीष भी बहुत ख़ुश थे ना यहाँ की चिंता न वहाँ की . . . सोच बदलो . . . व्यवहार बदलो . . . समाज भी बदल ही जाएगा। 

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