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जूता महिमा

 

जूता! शायद एक ऐसा शब्द जो अल्पतम प्रयोग में लाया जाता है। आप पूरी तरह से तैयार होने के बाद ही जूते की तरफ़ नज़र करते हैं, बेचारा जूता। 

सबसे बाद में पहने जाना वाला और विडंबना देखिए कि घर पहुँचते ही सबसे पहले परित्यक्त किए जाना वाला महत्त्वपूर्ण हिस्सा, जो तमाम उम्र आपका बोझ उठाता है, घर के एक कोने में दुबका सा पड़ा रहता है। मेरे अनुभव अनुसार सिर्फ़ फ़ौजी ही जूते को सर्वप्रथम चमका कर रखते हैं, एक आदर सम्मान करते हैं। 

इतने महत्त्वपूर्ण हिस्से को कभी उचित सम्मान नहीं मिलता जिसका वो अधिकारी है। धूल-मिट्टी और टूटे-फूटे रास्तों पर कवच रूपी रक्षा शस्त्र का अपमान असहनीय है। नेताओं के अपमान के लिए भी जूते का ही प्रयोग राजनीति में वांछनीय माना गया है। जूते को अंडे, टमाटर जैसे मूल्यवान पदार्थों के समतुल्य माना गया है अतः एक उचित सम्मान का अधिकारी है जूता। 

एक और पहलू जुड़ा है जूते की महत्वता से, वह है आपका मुखौटा। जी हाँ, आपका मुखौटा, आपका व्यक्तित्व, आपकी शान, आपका अभिमान। जिनके पास जूते नहीं होते, वो मुखौटे से भी वंचित रहते हैं, यह कहना अतिशयोक्ति न होगा। जिसका जूता बड़ा उसका मुखौटा खरा—लोग दो ही वस्तुओं की पूजा करते हैं, अर्चना करते हैं, एड़ियाँ रगड़ते हैं (बिन जूतों की एड़ियाँ), जूता और मुखौटा। एक दूसरे के परिपूरक हैं—जूता और मुखौटा। 

 मुखौटों ने जब जूतों को बदनाम कर दिया
 जूतों ने पीट पीट कर लहू लुहान कर दिया

मुखौटे तो नक़ली होते हैं जिन्हें इंसान परिस्थिति अनुसार बदलता रहता है। एक और विडंबना देखिए कि मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में जूता तो बाहर उतार देते हैं मगर नक़ली मुखौटा बड़े अहंकार के साथ सँजो कर अंदर ले जाते हैं। यानी मुखौटे की नींव को छोड़, मात्र दीवार समेत अंदर प्रवेश करते हैं, जूते उतार कर एक ग़रीब की तरह। प्रार्थना पूजा तो करते हैं लेकिन ध्यान जूतों में ही रहता है। 

ग़रीब की प्रतारणा का मुख्य कारण है उसके नंगे पैर, या फटी चप्पल। तो इस सरकार से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि घर-घर गैस कनेक्शन, घर-घर नल और जल, घर-घर शौचालय के साथ-साथ घर-घर जूता वितरण का अभियान चलाया जाए और ग़रीब को भी एक मुखौटा पहनाया जाए। 

अंत में चंद पंक्तियाँ: 

जूता महिमा

एक पहना है, एक में ध्यान है
जूता आज के इंसान की पहचान है
आज के युग में जूता महान है
जितना चमकता है उतना ही बरसता है
मैला कुचैला गंदा सा जूता
क्या बरसेगा, सिर्फ़ तरसेगा

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