कोयल करे मुनादी
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: कोयल करे मुनादी (नवगीत संग्रह)
लेखक: अविनाश ब्यौहार
प्रकाशक: युगधारा फ़ाउंडेशन लखनऊ
प्रथम संस्करण २०२०; आवरण बहुरंगी पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: ८०
मूल्य: २००/-
जीवन संगीत की लय पर अनुभूतियों को शब्द-शब्द अभिव्यक्त करता, गुनगुनाता गीत आदिकाल से मानवीय चेतना साक्षी, सहयात्री और सहारा रहा है। देश-काल-परिस्थितियों की जितनी बेबाकी और निस्पृहता से गीत विवेचना करता है, अन्य कोई विधा नहीं करती। गीत की अगिन भाव-भंगिमाएँ हैं। जितने गीतकार उतनी शैलियाँ, जितनी शैलियाँ उतनी विशेषताएँ। विशेषताएँ अर्थात ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ। कोयल करे मुनादी युवा नवगीतकार अविनाश ब्यौहार का सद्य प्रकाशित नवगीत संग्रह है। अविनाश बहुआयामी प्रतिभा धनी रचनाकार हैं। उनका एक व्यंग्य कविता संग्रह "अंधी पीसे कुत्ते खाँय", दो नवगीत संग्रह "मौसम अंगार है" तथा "पोखर ठोंके दावा" प्रकाशित हो चुके हैं। दोहा संकलन दोहा दीप्त दिनेश में उनके एक सौ प्रतिनिधि दोहे संकलित हैं। अविनाश समय की नब्ज़ पकड़कर आम आदमी की धड़कनों को शब्दों में व्यक्त करते हैं। नवगीत लेखन की उनकी अपनी शैली है। वे नवगीत के तथाकथित पीठाधीशों और उनके तथाकथित मानकों की चिंता किये बिना अपना काम करते रहते हैं। कोयल करे मुनादी उनका तीसरा नवगीत संग्रह है। ७४ नवगीतों से समृद्ध यह संकलन परिवेश की परिक्रमा करता हुआ पाठक मन में विविध भावनाओं का ज्वार उठाता है।
अविनाश का वैशिष्ट्य युगीन विसंगतियों से आँखें मिलाते हुए भी, सकारात्मक जीवन ऊर्जा, मूल्यों और आस्था की जय बोलना है। गंधों के झरने, नटवर नागर, नया साल, अभिसार, अठखेलियाँ, फूलों के मेले, मुस्काए खेत, आतपस्नान, परिंदे आदि गीतों में प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों का संकेत पाठक को हुलास की गलियों में घुमाता है। नवगीत के नगर में यह परंपरा अल्प प्रचलित है। अभिव्यक्ति विश्वम के पटल पर पूर्णिमा बर्मन और दिव्य नर्मदा चिट्ठे पर आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने सकारात्मक ऊर्जा संपन्न नवगीत परंपरा की नींव रखी। अविनाश के नवगीत उस परंपरा को पुष्ट करते हैं।
प्रत्यय पत्र शीर्षक नवगीत में हवा को चूमती महुए की गंध प्रकृति का रमणीक दृश्य उपस्थित करती है –
है लेकर आईं
खुशियाँ
प्रत्यय पत्र।
महुए की गंध
चूमती हवा को।
अमराई ले
बाँहों में
चवा को।
धरती को
टुकुर टुकुर
देखे नक्षत्र
नयन बबूलों के / गीले होंगे, धरती पर /बूँदों की / चहल पहल, काली अमावस में / दीप जलते हैं / तारों से, फूलों का / खिंचा हुआ / बाग़ में चँदोवा, पुरवा निगोड़ी / छेड़ रही है, है माथे पर / दीप के / उजाले का सेहरा, कानों में गूँज रहे वंशी के स्वर जैसी सरस अभिव्यक्तियाँ नवगीत को रमणीय बनाती हैं।
जीवन के सफ़ेद पक्ष के साथ-साथ स्याह पक्ष भी गीतों में यथास्थान रख पाना नवगीतकार की संतुलित दृष्टि का परिचायक है।
मयूर नाचे, बंदर बाँट, मूलमंत्र, लव जेहाद, साये, रुदाली, प्रणाम है, साँस फूलती, सरकारी दूकान, नफ़ासत, आपाधापी में, फटेहाल भोर, मॉडर्न लड़कियाँ, आला कमान आदि में विसंगतियों पर किया गया शब्द-प्रहार मर्मस्पर्शी है।
कोरोना काल में नवगीतकार उसे मानव बम, अजगर, यमदूत आदि विशेषणों से नवाजते हुए लॉकडाउन के भय को नवगीत में शब्दित करता है –
लॉकडाउन है
कर्फ्यू
लगा हुआ।
सड़कों पर पुलिस घूम रही।
ख़ामोशी गली को
चूम रही।
दिलों में
भय अनजाना
जगा हुआ।
भय की सघनता को उसका अनजाना होना बढ़ाता है।
अविनाश के गीतों में बिंबों का टटकापन और नवीनता सोने में सुगंध की तरह है। तबाही शीर्षक नवगीत में रौशनी और दरीचे के माध्यम से युगीन विसंगति को उद्घाटित किया गया है –
रौशनी और
दरीचे में
मनमुटाव है।
मानो परिवेश का
बदला
हाव-भाव है।
हैं आजकल तबाही के
द्वार खूब हुए।
गीतकार महाधिवक्ता कार्यालय में व्यक्तिगत सहायक होने के नाते दिए तले के अँधेरे को जानता-पहचानता है। वह संकेतों में बात करता है –
फूल का नहीं
कब्ज़ा काँटों का है।
मलाल रिश्तों में
लगती गाँठों का है
शिलाखंड को सुख के
दुःख का मेघ भिगोता है
यहाँ जिंदगी मानो / क़िस्त क़िस्त है और कल्पतरु खेजड़ी यथा / मरुथल में बोता है आदि पंक्तियाँ 'कोढ़ में खाज' की दशा को उद्घाटित करती है। आगजनी कर बैठी / है दियासलाई, आज गिद्ध चालीसा / शुभ फलदायक है, है झूठ का शहर / औ' वफ़ा का /बुत है, शूल उगे क्यों / आज निस्बत में, हाथों में पेड़ / लिए अँगोछे / पसीना पेशानी / का पोंछे, मेड़ों की / देखो तो /फटी है बिमाई जैसी अभिव्यक्तियाँ 'कम से कम में अधिक से अधिक' कहने की विरासत को तहती हैं।
'कोयल करे मुनादी' शीर्षक ही इस संकलन के गंगो-जमुनी होने का संकेत करता है। कायम श्यामता नकारात्मक ऊर्जा का संकेत है तो मुनादी अर्थात घोषणा का माधुर्य सकारात्मक सरसता का संकेत है। जीवन में सुख-दुःख, धूप-छाँव, हर्ष-शोक दोनों का संगम होता रहता है। अविनाश के ये नवगीत जीवन को समग्रता में चित्रित करते हैं। नवगीत को विसंगति, विडम्बना और शोक गीत का पर्याय बतानेवाले भले ही नाक-भौं सिकोड़ें पर सामान्य पाठक को ये नवगीत रुचेंगे।
अविनाश शब्दों का न्यूनतम प्रयोग करते हैं। कहीं-कहीं अभिव्यक्ति पूर्ण नहीं हो पाती, कहीं-कहीं बात अस्पष्ट रह जाती है। गीतों की सूत्रात्मकता कभी-कभी अर्थवत्ता पर विपरीत प्रभाव छोड़ती है। अविनाश अब नवोदित नहीं, सुपरिचित नवगीतकार हैं इस नाते उनसे निर्दोष-परिपक्व रचनाओं की अपेक्षा है, विशेषकर इसलिए कि उनमें सामर्थ्य है। आशा है उनका अगला नवगीत संग्रह नवता और पूर्णता के निकष पर उन्हें अग्र पंक्ति में प्रतिष्ठापित करेगा।
*
संपर्क : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४, ईमेल salil.sanjiv@gmail.com
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