अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

मानवीय सरोकारों से ओतप्रोत भावनात्मक कहानियाँ

कहानीकार: डॉ. अखिलेश पालरिया
प्रकाशक: हिंदी साहित्य निकेतन
प्रकाशन वर्ष: 2019
मूल्य: ₹250/-
पृष्ठ:104

कहानी लेखन की सफलता इसी में है कि लेखक समय की नब्ज़ को पकड़ते हुए कथानक में आसपास की घटनाएँ, परिस्थितियाँ, संवेदनाएँ, समाज में व्याप्त विरोधाभास, सामाजिक प्रश्न और उनके समाधान को पिरोता हुआ एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करे जो सीधा दिल में उतर जाए। डॉ. अखिलेश पालरिया का कहानी संग्रह ‘पुजारिन एवं अन्य कहानियाँ’ बिल्कुल ऐसा ही कहानी संग्रह है। समाज के बदलते परिवेश, विभिन्न पात्रों की मनःस्थिति और उनके साथ घटती घटनाएँ, उपजती चिंताएँ, संकट और उनमें उनका समाधान ढूँढ़ना सब कुछ बहुत ही सुंदर और सहजता के साथ प्रस्तुत होता है। 

संग्रह के आरंभ में अपनी माँ को काव्यांजलि देते हुए डॉ. अखिलेश पालरिया लिखते हैं, “मेरी पहले की छपी पुस्तकें मुझे भूतकाल में ले जाती हैं और मेरा मिलन होता है मुझ से ही . . . इसी प्रक्रिया से गुज़र कर मैं आश्वस्त होता हूँ कि हाँ, मैं वैसा ही हूँ। मेरा बचपन अक़्सर लौट आता है, माँ की बातें यादकर आँखें कभी नम हो जाती हैं कभी रो पड़ती हैं। पिता की स्मृतियाँ भी मन को भावविभोर कर देती हैं। उन स्मृतियों के साथ आज भी अपने को एकमेव पाता हूँ।”

डॉ. आशा शर्मा भूमिका में लिखती हैं कि डॉ. पालरिया की कहानियों में मूल्यवत्ता और सामाजिक सरोकार, भावप्रवणता के साथ गुम्फित होकर इस शैल्पिक रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत हुए हैं कि बहुत देर तक इनके भाव हृदय में स्पंदित होते रहते हैं। इन कहानियों में हृदय तत्त्व की प्रधानता है कहानियाँ संवेदना की भूमि पर स्थित हैं। 

प्रथम कहानी ‘सौतेला’ में सौतेली माँ द्वारा उपेक्षित पुत्र बुढ़ापे का संबल बन सहारा देता है। विनम्र, सद्‌व्यवहार करने वाला पुत्र बदले की भावना से नहीं अपितु अपने बुज़ुर्गों के प्रति स्नेह और आदर की भावना से उनका मन जीत लेता है। कहानी ‘तुम बिन घर सूना’ एक जीवंत, सर्वगुण संपन्न, व्यावहारिक और सबकी चहेती लड़की की कहानी है जो ‘रूमेटिक हार्ट डिजीज़’ से ग्रस्त है और अपने जीवन को किसी पर निर्भर होकर नहीं जीना चाहती। सबकी चहेती मनोरमा जब इस संसार से विदा होती है तो सिर्फ़ कहानी के पात्र ही नहीं पाठक भी दिल में एक कसक और आँखों में नमी महसूस करते हैं। ‘भिखारी’ बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है और भीख माँगने वाले की मनोदशा को विभिन्न अवसरों पर सहजता से दर्शाती है। विदेशी दंपति द्वारा आशातीत समता और सम्मान दिए जाने पर भिखारी अपने मन की बात कहता है। डाॅ. पालरिया की कहानियों में सकारात्मकता हर स्तर पर दिखाई देती है। इस कहानी में भी पुलिसवाला अपनी ड्यूटी के दौरान भूखे भिखारी को जेब से मूँगफली का पैकेट निकालकर देता है और अपनी कर्तव्यपरायणता और मानवीयता से अभिभूत कर देता है। 

‘पुजारिन’ कहानी के सौम्या और सुरभि साहित्य माला के मनकों जैसे प्रतीत होते हैं। एक लेखक है तो दूसरी समीक्षक। दोनों ही हिंदी को समर्पित, जीवन में संतुष्ट, भारतीय परंपराओं का निर्वहन करने वाले और गुरु तथा माता-पिता की सेवा करने वाले आदर्श दंपती हैं। उनके बच्चे भी उन्हीं के दिखाए आदर्शों पर चलकर एनजीओ ‘पुजारिन’ में अपना सहयोग देते हैं। आधुनिक सभ्यता और धन को सब कुछ मानने वाला संस्कारहीन भाई भी बच्चों के जाने के बाद अकेलेपन से त्रस्त होकर पश्चाताप की आग में जलता है और अपना सारा धन एनजीओ को समर्पित कर देता है। कथानक, संप्रेषण, भाषा प्रत्येक दृष्टि से अनुपम कहानी ‘पुजारिन’ पाठकों को बाँधे रखती है। ‘कड़वे मीठे बोल’, ‘प्रेम का दरिया’ और ‘चहेती’ भी बहुत ही संवेदनशील और सशक्त कथानक पर बुनी गई कहानियाँ हैं। 

अंत में एक छोटी कहानी ‘नई सृष्टि’ पूर्णतः स्वप्न पर आधारित है जिसमें लेखक ने न्याय, शान्ति और नव निर्माण को विधाता द्वारा सृष्टि के संचालन में परिवर्तन करके सुगमता से स्थापित किया है। समाज में व्याप्त बुराइयों का दमन और आतंकियों, व्यभिचारियों, मुनाफ़ाख़ोरों, घूसखोरों को तत्काल दंड देने का प्रावधान करके दुनिया से सारी समस्याएँ ख़त्म कर दी हैं। काश! यह सिर्फ़ सपना ना होकर सच्चाई होती। 

यह वास्तव में एक ऐसा कहानी संग्रह है जिसमें वाक्य विन्यास की ऊँचाई है, चिंतन की गहराई है, सामाजिक चेतना है, सकारात्मकता है और कथानक का समुचित विस्तार है। 

लेखक ने पात्रों का सृजन ही नहीं किया बल्कि उन्हें जिया भी है। पठनीय और संग्रहणीय कहानी संग्रह के लिए डॉ। अखिलेश पालरिया को हार्दिक बधाई! 

नीरू मित्तल ‘नीर’
40/15 पंचकूला 134113
9878 7797 43
neerumittal58@gmail.com

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं