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पहाड़ी समाज एवं जीवन की मार्मिक अभिव्यक्ति: तिमुर

पुस्तक: तिमुर (कहानी संग्रह) 
लेखक: डॉ. ममता पंत
प्रकाशक: रुद्र प्रकाशन बांदा, उत्तर प्रदेश
संस्करण: मई, 2022
मूल्य: ₹250/-
पृष्ठ: 100

डाॅ. ममता पंत का हिंदी कहानी संग्रह ‘तिमुर’ पढ़ा। उनकी कहानियों में पिथौरागढ़ी कुमाऊँनी (सौर्याली) के शब्द जहाँ भाषाई सौंदर्य की अद्भुत सृष्टि करते हैं वहीं पूर्वी कुमाऊँ का परिवेश अपनी ख़ूबसूरती के साथ चित्रित हुआ है। इस संग्रह में कहानीकार की 10 कहानियाँ संगृहीत हैं। 

कृतियाँ कहीं न कहीं लेखक के परिवेश से जुड़ी होती हैं। डॉ. ममता जी की कहानियाँ भी उनके परिवेश को प्रस्तुत करती हैं। अधिकतर कहानियाँ पिथौरागढ़ और उसके आस पास के ग्राम्य जीवन से जुड़ी हैं। ‘पिणौं पातक् पानि’ और ‘मास्टरनी’ पहाड़ की स्त्री के दुर्दांत जीवन संघर्ष की मार्मिक कहानियाँ हैं। पितृसत्तात्मक समाज के अभिशाप को झेलती लड़की की कहानी ‘पतंगे और गिद्ध’ हमारे समाज के वीभत्स रूप को सामने रखती है। ‘तुम इंतज़ार करना’ और ‘अतीत’ कहानियाँ असफल प्रेम की कहानियाँ हैं। कहानीकार जहाँ एक ओर अपनी परम्पराओं और रीति-रिवाज़ों को मानती हुई दिखती हैं वहीं ‘परूलि आमा’ में उन रूढ़ियों का विरोध भी करती हैं जो समाज के लिए अभिशापित हैं, यहाँ पर उनका प्रगतिवादी दृष्टिकोण बड़ी मज़बूती से दृष्टिगोचर हुआ है। ‘दंश’ कहानी पहाड़ के युवाओं की बेरोज़गारी एवं उससे उपजे संत्रास का यथार्थ उजागर करती है। ‘मास्साब’ में वे अतीत के ख़ुशहाल गाँव का स्वप्न देखती हैं। ‘बीज’ कहानी पहाड़ी परिवेश की लड़की के आगे बढ़ने की कथा है तो ‘संज्यात कुड़ि’ बचपन के जिए मायके, और उसमें आए बदलाव और रिश्तों के बिखराव की कहानी है। यह कहानी हमें हमारे बचपन के संज्यात (संयुक्त) घरों में ले जाती है, आँगन के आम के पेड़ के साथ-साथ रिश्तों की याद दिलाती है। 

डॉ. ममता पंत पहाड़ी समाज और जीवन को बहुत बारीक़ी से अपनी कहानियों में रखती हैं वहीं स्त्री के त्रासद जीवन का चित्रण इतनी गंभीरता से करती हैं कि पाठक सोचने को विवश हो जाता है। रीति-रिवाज़ों को याद करती हुई कहानीकार विकासोन्मुख हैं। कहीं-कहीं आंचलिक शब्दों की भरमार सी है, किन्तु लेखिका ने ऐसे आंचलिक शब्दों को लिया है जो विलुप्तप्राय हैं और जिनके प्रयोग से कुमाऊँनी भाषा का शब्द भंडार समृद्ध हुआ है। कहानियों में प्रयुक्त मलामी, झिलंकार, मड़ सी, खेड़ी, कंण जैसे शब्द मेरे लिए नितांत नये हैं, पहाड़ी परिवेश में इनका प्रचलन अब कम हो गया है। भावपूर्ण कहानियों में लेखिका पहाड़ के स्त्री पक्ष को सामने रखती हैं। कुल मिलाकर वे कहानियों को स्वयं जीती-सी लगती हैं। 

शीर्षक ‘तिमुर’ की बात करें तो वह भी अपने आप में अप्रतिम है जिसके बारे में लेखिका ने भूमिका में स्पष्ट किया है। शीर्षक की सार्थकता एवं कहानी संग्रह के लिए कहानीकार को हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ। 

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