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रेड वाइन के साथ ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा 


समीक्षित पुस्तक: रेड वाइन ज़िन्दगी (उपन्यास)
लेखक: निर्मल जसवाल
प्रकाशक: सतलुज प्रकाशन, पंचकूला (हरियाणा) 
दूरभाष: +91 94172 67004
पृष्ठ: 136
मूल्य: ₹300/-

समकालीन हिंदी कथा साहित्य में निर्मल जसवाल राणा ने अपने पहले ही उपन्यास ‘रेड वाइन ज़िन्दगी’ से पाठकों के बीच में एक उपन्यासकार के रूप में अपनी पहचान बना पाने में काफ़ी हद तक सफलता पा ली है। लेखक अपने अनुभवों को जब गहरी संवेदना से जोड़कर देखते हुए, समाज के बीच उठ रहे सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करे तो पाठक उसमें स्वयं को ढूँढ़ने लगता है। निर्मल के इस उपन्यास में पाठक उसकी संवेदना से कुछ इस तरह तादात्म्य स्थापित कर लेता है जैसे वह उसी उपन्यास का एक पात्र हो। इन्सान चाहे जिस किसी भू-भाग पर रहे और चाहे जो बोली बोले, उसे दूसरे इन्सान का साथ और सहयोग अवश्य चाहिए होता है। इन्सान कितना भी व्यस्त कर ले स्वयं को, कितनी ही ऊँचाई पर पहुँच जाए वह अपने जीवन के हर क्षण में किसी का साथ ढूँढ़ता है। जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियों का सामना करते हुए जब वह थकने लगता है तो एक सहारा अवश्य ढूँढ़ता है। जैसे डूबते इन्सान को तिनके का सहारा मिलता है, उसी तरह अकेले इन्सान को मोबाइल पर आए एक मैसेज का भी सहारा मिल सकता है, यह रेड वाइन ज़िन्दगी को पढ़कर ही समझा जा सकता है। आज जब मनुष्य गैजेट्स के मध्य जीते हुए एक ओर समाज से कटता हुआ अपने आसपास के लोगों से दूर होता जा रहा है तो दूसरी ओर ये गैजेट्स ही सुदूर बैठे दो नितांत अकेले मनुष्यों को जोड़ने का माध्यम भी बनता जा रहा है। 

जीवन के विविध रंग और मनुष्य के हृदय की विभिन्न अवस्थाएँ उपन्यास में बहुआयामी परिस्थितियों और बहुरंगी भावनाओं के संग अवतरित होकर कहीं पाठकों को चकित करती हैं, कभी गुदगुदाती हुई उसके होंठों पर मुस्कुराहट ले आती हैं तो कभी उनकी पलकों को भिगो देती हैं। उपन्यास इस बात की पूर्णतः पुष्टि करता है कि एक ही मनुष्य के भीतर विभिन्न भावनाएँ समाहित रहती हैं, जीवन की परिस्थितियों से अनुकूल वातावरण प्राप्त कर ये भावनाएँ न सिर्फ़ प्रकट होती हैं बल्कि फूलती-फलती भी हैं। इन्हीं अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ व्यक्ति जीवन के विभिन्न आयामों से टकराता हुआ कभी क्रोध, खीज, उतार-चढ़ाव तो कभी प्यार में आकंठ डूब जाता है। उपन्यास में देश-विदेश का वातावरण और परिवेश पूर्ण सजीवता से चित्रित हुआ है। कुछ भारतीय परिवारों को विदेश में रहते हुए भी अपनी सोच में किसी प्रकार का लचीलापन या बदलाव लाना अपनी शान के ख़िलाफ़ लगता है। वे सभ्यता-संस्कृति का विस्तृत अर्थ समझने की कोशिश भी नहीं करते हैं। अपने ज़िद्दी स्वभाव के कारण किसी भी भिन्न अथवा नवीन अभ्यास को अपनाने को राज़ी नहीं होते हैं। उपन्यास में अनेक उपकथाएँ हैं और सभी आपस में जुड़ती भी हैं। उपन्यास में त्वरित रूप से आ उपस्थित होने वाली परिस्थितियाँ पात्रों, देश-काल की युक्तियों को समझने का समय न ले पाती हैं, न दे पाती हैं। स्वयं उपन्यासकार भी उन परिस्थितियों से बाहर निकलने की बजाय उपन्यास की उन्हीं परिस्थितियों से टकराने लगती हैं और पाठक के अकेलेपन की पीड़ा भी उन पात्रों से जुड़कर बहुत हद तक दूर हो जाती है। 

उपन्यास में बाह्य व आंतरिक दोनों ही परिवेश का चित्रण अत्यंत सजीव बन पड़ा है। लेखिका ने स्थान का चित्रण करते हुए सिर्फ़ वातावरण को ही उद्घाटित नहीं किया है, अपितु स्थान विशेष की भौगोलिक, सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को चित्रित करने के साथ साथ वहाँ के खान-पान, भाषाई शैली, परिधान आदि को सजीव करते हुए उपन्यास को एथनोग्राफिक दृष्टि से भी सुसम्पन्न किया है। किसी भी परिवेश को उसकी संपूर्णता में समझने के लिए एथनोग्राफिक अध्ययन ज़रूरी है, उपन्यास में यह तकनीकी पाठक को परिवेश व उसके जीवन शैली से जोड़ने में बहुत सहायक सावित होता है। सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ, समस्याएँ कई पीढ़ियों को प्रभावित करती है। पात्रों के माध्यम से जब ये अनुभव सामने आते हैं तो विवरणात्मक न होकर अनुभूत होते हैं, जिनसे उसकी विश्वसनीयता तो बढ़ती ही है, कथानक की सरसता भी बढ़ जाती है। लोगों के भोगे हुए यथार्थ को पात्रों के संवाद, लेख अथवा पत्रों में समेटकर लाना एक सफल प्रयोग माना जा सकता है। अपनी जन्मभूमि से जुड़ाव, वहाँ की संस्कृति से अथाह प्रेम, और वहाँ से दूर जाने पर बिछोह की पीड़ा सहज है। इनका चित्रण करते हुए भावनाओं पर नियंत्रण की अपेक्षा की जाती है, क्योंकि नियंत्रण ढीला पड़ते ही लेखन में अतिशयता और अतिशयोक्ति की भरमार का ख़तरा बना रहता है। निर्मल जसवाल इस अपेक्षा पर खड़ी उतरती हुई सहज-स्वाभाविक अंदाज़ में इन भावों का चित्रण करती हुईं कथा को आगे बढ़ाती चलती हैं। 

अपने देश से लेकर विदेश तक की भूमि को उपन्यास में सजीव रूप में चित्रित किया गया है। पंजाब, हरियाणा के अनेक प्रसंग है। चंडीगढ़ शहर अपने सम्पूर्ण कलेवर में उतर कर आया है। बस अड्डे से लेकर विश्वविद्यालय तक का परिदृश्य सिनेमाई अंदाज़ में चित्रित हुआ है, जिसे पढ़ते हुए पाठक देखने जैसे आनंद का अनुभव करता है। भोपाल शहर भी अपने सम्पूर्ण आकार में उपस्थित हुआ है। शहरों का मिज़ाज भी उपन्यास में सजीव प्रतीत होता सा जान पड़ता है। विदेश के जो प्रसंग प्रभावित करते हैं उनमें वैंकूवर, जैस्पर, एडमंटन आदि प्रमुख हैं। शहर के परिवेश के साथ-साथ मानव-मन की स्थितियाँ भी स्पष्ट रूप में चित्रित हुई हैं। मानवीय सम्बन्धों की पड़ताल बाह्य व आंतरिक परिवेश के परिप्रेक्ष्य में की गई है, जिसके लिए मनोवैज्ञानिक स्तर पर पात्रों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। निर्मल जसवाल का बेशक यह पहला उपन्यास है, परन्तु ये अपनी अन्य विधा की साहित्यिक कृतियों को विस्तृत कैनवस पर लिखती रही हैं और उनमें सफल भी रही हैं। उनकी उन्हीं अन्य कृतियों के समान ही यह उपन्यास ‘रेड वाइन ज़िन्दगी’, भी एक अत्यंत विस्तृत कैनवस पर लिखा गया है। यह विस्तृत कैनवस पाठकों की सोच और कल्पना को भी और अधिक ऊँचाई प्रदान करता है। पाठकों के मन-मस्तिष्क पर उपन्यास अपना एक विशेष प्रभाव बनाने की क्षमता रखता है। 

बाह्य परिवेश के समानांतर अन्तर्जगत का चित्रण भी उपन्यास में बख़ूबी हुआ है। पात्रों के विचार, व्यवहार और उनकी मनःस्थितियों को उनकी छोटी-छोटी गतिविधियों तथा संवादों के माध्यम से चित्रित किया गया है। मन के भावों के अनुसार पात्र कभी टूटते हुए तो कभी जुड़ते हुए चित्रित किए गए हैं। मनोवैज्ञानिक चित्रण उतना विशद व गहरा तो नहीं है जितना मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में होता है, परन्तु कथा की यात्रा के संदर्भ में सहज ही जितना आ गया है, वह उपन्यास को सशक्त बनाने का एक और कारण प्रस्तुत करता है। 

विविध विधाओं के लेखक बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न होते हैं, उनका बहुआयामी लेखन विविध विधाओं में प्रस्फुटित होता हुआ निरंतर गतिशील रहता है। इनके भीतर का कवि व कहानीकार उपन्यास के भीतर से झाँकता हुआ उपन्यास को रुचिकर और सशक्त बनाने में जैसे सहयोगी हुआ है, कहीं भी उपन्यास पर हावी होकर उसे नष्ट करने की कोशिश नहीं की है। उपन्यास में देश काल को लेकर गहरी चेतना, समाज के लगभग सभी पक्षों का जीवंत चित्रण व मूल्यांकन उपन्यासकार की कुशलता का प्रमाण है। कश्मीर के भौगोलिक वातावरण के साथ-साथ वहाँ की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को अत्यंत सजीवता से उपन्यास में चित्रित किया गया है। विस्थापित कश्मीरियों की पीड़ा, शरणार्थी जीवन के उतार-चढ़ाव आदि बिन्दु उपन्यास के प्रमुख विषय हैं। इसके साथ-साथ अन्य स्थानों की समस्याओं से भी पाठकों को रूबरू कराया गया है। ज्यों-ज्यों पाठक उपन्यास को पढ़ता जाता है, उसे यह महसूस होने लगता है कि सिर्फ़ कश्मीर ही नहीं अपितु पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ की परिस्थितियाँ भी नाज़ुक व संवेदनशील हैं। यहाँ तक कि वैंकुवर, जैस्पर, एडमंटन आदि स्थानों पर भी कमोवेश ऐसी ही स्थितियाँ हैं। कैनेडा में इंसानी रिश्ते बहुत हद तक मशीनी हो चुके हैं, धीरे-धीरे भारत में भी वैसी ही स्थितियाँ बनती जा रही हैं। एक इंसान अपने अच्छे-बुरे अनुभवों से निर्मित होता है अथवा टूटता-बिखरता है। युवावस्था की घटनाओं और परिस्थितियों का प्रभाव उम्र के बड़े पड़ाव तक पर पड़ता है। एक व्यक्ति चाहकर भी इन अनुभवों और अनुभूतियों से मुक्त नहीं हो पाता है। मनुष्य के जीवन की इन अनुभूतियों, संघर्षों के साथ-साथ उसके हौसले को भी उपन्यास में महत्त्व प्रदान किया गया है। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री देश से विदेश तक अपने वुजूद की तलाश करती हुई सक्रिय रूप में चित्रित की गई है। अपनी अस्मिता को तलाशती हुई भी वह उच्च मानव मूल्यों को अपने पास सँजोकर रखने में सफल साबित हुई हैं। अपने अधिकारों का समर्थन करती हुई भी वह अपने मूल स्वभाव को बचा पाने में सफल हुई है। ममता और प्रेम से ओतप्रोत होकर समाज को समृद्ध करने में संलग्न है। वह समाज में सकारात्मक ऊर्जा और चेतना की सच्ची स्रोत है। 

विभिन्न विषयों को समेटती हुई वे उपन्यास में समकालीन परिस्थितियों को जिस जीवंतता और स्पष्टता से उठाती हुईं वातावरण का चित्रण करती हैं वह उन्हें समकालीन उपन्यासकारों के बीच एक ख़ास पहचान देती है। वे बहुत ही स्पष्ट, विषयकेन्द्रित और प्रभावपूर्ण शब्दों में सामाजिक संवेदनशीलता का संदेश और दिशा-निर्देश देती हैं। ‘रेड वाइन ज़िन्दगी’ उपन्यास एक प्रगतिशील व संवेदनशील समाज के निर्माण की ओर क़दम बढ़ाने का एक सफल प्रयास है। ‘साहित्य समाज का दर्पण है’ इस कथन को चरितार्थ करता हुआ यह उपन्यास वर्तमान जीवन को उसकी समस्त अच्छाइयों-बुराइयों के साथ उतारकर तीव्र गति से बदलती परिस्थितियों में प्रेम के बदलते स्वरूप और नए आयामों के प्रति भी युवाओं को सचेत करता है। 

विषय के संग-संग शिल्प भी पूर्ण सशक्त रूप में आया है। प्रस्तुति पूर्णतः समयानुकूल है। भाषा-शैली में शब्द चयन के साथ-साथ वाक्य-संरचना का सुगम व सहज रूप पाठकों के मन को मोह लेता है। भाषा, शब्द-चयन, वाक्य-संरचना के साथ-साथ ध्वनि-संयोजन भी अत्यंत सुरुचिपूर्ण है। भाषाई अंदाज़ बेहद संतुलित है जो हर वर्ग और हर उम्र के लोगों के लिए उपयुक्त है। नवयुवा से लेकर वृद्ध तक उपन्यास की भाषा के साथ स्वयं को सहजतापूर्वक गतिशील अनुभव करते हैं। नवीन विषय, तथ्य व कल्पना का संतुलित संयोजन, सजीव व सशक्त प्रस्तुति, जीवंत भाषा-शैली, उपन्यास में प्रकट दूरदर्शिता आदि विशेषताएँ उपन्यास में चार चाँद लगाते हुए प्रतीत हो रहे हैं। 

-डॉ. बिभा कुमारी

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