भारतीय इतिहास को गुलामी की बेड़ियों से आज़ादी करने का प्रयास करती पुस्तक 'सम्राट मिहिर भोज एवं उनका युग'
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा प्रो. देवाराम जॉनसन1 Aug 2019
पुस्तक का नाम : सम्राट मिहिर भोज एवं उनका युग
लेखक : विजय नाहर
प्रकाशक : पिंकसिटी पब्लिशर्स, जयपुर
प्रकाशन वर्ष : 2015
आवृत्ति : प्रथम
आई एस बी एन : 9789384620431
पुस्तक का मूल्य : 300
भारतीय इतिहास आज भी उन विकृतियों से भरा पड़ा है जो विदेशी व मुस्लिम इतिहासकारों ने भारत के स्वाभिमान को ख़त्म करने के लिये भारतीय साहित्य के ग़लत रूपांतरण स्वरूप प्रदर्शित किया। असली इतिहास को जलवा दिया और अपना मनमाना इतिहास थोप गए। सेक्युलर और वामपंथी नेताओं ने उसी को महत्व देकर भारतीय पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया। सोची समझी विदेशियों की राजनीति से भारतीय पीढ़ी आज भी अपने ग़लत इतिहास को ही पढ़ रही है और भारतीय इतिहास का साहित्य आज भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।
भारतीय इतिहास संकलन योजना के जोधपुर सम्भाग के संरक्षक द्वारा लिखी पुस्तक "सम्राट मिहिर भोज एवम उनका युग" तथ्यों सहित असली इतिहास को उजागर करने का प्रयास करती है। पुस्तक की शुरुआत गुर्जर प्रतिहार वंश के उदय से होती है। आज देश के हर हिस्से में यह विवाद दिखाई पड़ता है कि राजपूतों के पूर्वज गुर्जर थे। मिहिर भोज गुर्जर सम्राट थे। वही भारतीय इतिहास में दिखाई पड़ता है कि गुर्जर प्रतिहार विदेशी थे। लेखक विजय नाहर के अनुसार, गुर्जर प्रतिहार विशुद्ध भारतीय थे; मूलतः इन की उत्पत्ति इस ग्रंथ के अनुसार ब्राह्मण हरीशचंद्र एवं उनकी क्षत्रिय पत्नी से उत्पन्न को प्रतिहार कहा गया। जैसे लक्ष्मण ने जीवन भर भगवान राम और सीता की प्रतिहारिता की उसी प्रकार प्रतिहार वंश ने भारत पर हो रहे अरब इस्लामिक विदेशी आक्रमणों से भारत की रक्षा कर प्रतिहारिता का काम किया। इसीलिए यह प्रतिहार कहलाए।
इस ग्रंथ के अनुसार चूँकि इस राजवंश को स्थापित करने वाला प्रथम शासक नागभट्ट प्रथम भीनमाल का राजा बना जो कि गुर्जर देश की राजधानी थी इसलिए नाम के आगे गुर्जर प्रतिहार वंश लगाया गया। आगे चलकर जब यह कन्नौज के शासक बने गुर्जर प्रतिहार नहीं बल्कि मात्र प्रतिहार राजवंश ही कहलाया। 836 ईस्वी में महान सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार प्रथम का उदय हुआ। जिसने संपूर्ण उत्तर भारत को एक सूत्र में संगठित किया। एक बहुत बड़ी शक्ति खड़ी की। परिणाम स्वरूप पश्चिम की ओर से आने वाले विधर्मी शासकों को मुस्लिम शासकों को भारत में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं पड़ी।
भारतीय इतिहास में 647 ई से 1200 ई तक के इतिहास को अंधकार युग कहते हैं मतलब इस कालखण्ड में कोई पराक्रमी राजा नहीं हुए। इस कालखण्ड में भारत केवल गुलामी व अत्याचार को सहन करता रहा। विदेशी राजा यहाँ आक्रमण करते रहे और यहाँ की सम्पदा को लूटते रहे लेकिन भारत के राजा संघर्ष करने में असमर्थ थे। इस तरह की भ्रांतियाँ भारतीय इतिहास पाठ्यक्रम में सम्मिलित है जो आज़ाद भारत में भी भारतीयों के ऐतिहासिक स्वाभिमान को धूमिल कर रही हैं। लेखक विजय नाहर ने 300 पृष्ठों की इस पुस्तक में ऐसे अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये है जो इस बात को ग़लत साबित करने के लिए सक्षम है। पुस्तक के अनुसार इस काल में ऐसे ओजस्वी और वीर शासक भारत में उत्पन्न हुए जिन्होंने संपूर्ण उत्तर भारत को एक जुट शासन शक्ति में संगठित कर ऐसी स्थिति खड़ी की कि मुस्लिम आक्रांताओं को भयभीत कर भारतीय सीमाओं की रक्षा की व् उन्हें बाहर खदेड़ दिया व् उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए स्थान खोजना कठिन हो गया।
सम्राट मिहिर भोज ऐसा शासक था जिसने आधे से अधिक विश्व को अपनी तलवार के ज़ोर पर अधिकृत कर लेने वाले ऐसे अरब तुर्क मुस्लिम आक्रमणकारियों को भारत की धरती पर पाँव नहीं रखने दिया, उनके सम्मुख सुदृढ़ दीवार बनकर खड़े हो गए। उसकी शक्ति और प्रतिरोध से इतने भयाक्रांत हो गए कि उन्हें छिपने के लिए जगह ढूंढनी कठिन हो गई थी। ऐसा किसी भारतीय लेखक ने नहीं बल्कि मुस्लिम इतिहासकारों बिलादुरी सलमान एवं अलमसूदी ने लिखा है। ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज ने ८३६ ई से ८८५ ई तक लगभग ५० वर्षों के सुदीर्घ काल तक शासन किया। भोज की ग्वालियर प्रशस्ति एवं उसके अनेक अभिलेख, शिलालेख, ताम्रपत्र और उस काल के अन्य अभिलेख इस बात के साक्षी हैं। इनके अलावा अरब यात्री सुलेमान का यात्रा वर्णन सम्राट मिहिर भोज साम्राज्य की उपलब्धियाँ ख़ुशहाली वैभव संपन्नता का परिचय प्रस्तुत करता है। सम्राट मिहिर भोज को श्रीमद आदिवराह परमेश्वर से भोज देव मिहिर परम भगवती भक्त आदि उपाधियों का उल्लेख यत्र तत्र मिलता है। सम्राट भोज के सोने, चाँदी, तांबे और मिश्र धातु के सिक्के उसके साम्राज्य के वैभव और विस्तार को प्रकट करने के लिए पर्याप्त साक्षी हैं। अरब यात्री सुलेमान के अनुसार जुज्जर नरेश मिहिर भोज के पास विशाल सेना है। किसी भी अन्य भारतीय नरेश के पास मिहिर भोज से अच्छी घुड़सवार सेना नहीं है। उसकी विशाल सेना में ऊँट और घोड़ों की संख्या अधिक है। वह अरबों का शत्रु है। मुस्लिम इतिहासकार बिल्ला दूरी लिखता है कि अरब मुस्लिमों में सम्राट मिहिर भोज का इतना आतंक था कि अरबों को प्रतिहारों से अपनी रक्षा के लिए कोई सुरक्षित स्थान मिलना ही कठिन था। उन्होंने एक झील के किनारे अल हिंद सीमा पर अल महफूज नामक एक शहर बसाया था। जिसका अर्थ सुरक्षित होता है।
पुस्तक समीक्षक
प्रो. देवाराम जॉनसन
व्याख्याता , इतिहास
बांगड़ कॉलेज, पाली
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