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शादी और बीवी

 

हमारे मुहल्‍ले के दोस्‍तों ने एक दिन रोका
और फिर टोका, 
कहा-तुम्‍हारा शादी करने का
कब है इरादा? 
बीवी के बारे में तुमने क्‍या है सोचा? 
ऐसा सुनकर मैं भी चौंका! 
 
अब हमें भी कुछ कहने का
मिल गया मौक़ा, 
इतने में पास खड़े
एक सज्‍जन ने ज़ोर से छींका, 
उनके छींकते ही
मेरा बताने का मन हुआ फीका। 
 
मैंने कहा-दोस्‍त, 
यह बताने का संकेत नहीं है अच्‍छा, 
बात टालने के लिए हमने ऐसा सोचा, 
लेकिन दोस्‍तों ने नहीं माना, 
कहा अब कोई नहीं चलेगा बहाना, 
आज पड़ेगा तुमको बताना। 
 
तो हमने कुछ ऐसे शुरू किया बताना
हमें एक अदद पढ़ी-लिखी बीवी चाहिए
नौकरी वाली नहीं, 
सुशील, घर-गृहस्‍थी वाली चाहिए, 
वह न हो बिलकुल साँवली
ओठों पर हो सुर्ख़ लाली, 
जिसकी फिंगर हो सुडौल, 
जो माँ-बाप की ख़ूब करे सेवा, 
ऐसी हमें सपनों की रानी चाहिए। 
 
तो दोस्‍तों ने कहा-इसे सपना ही रहने दे
हम लोग भी पहले इसी भ्रम में थे, 
आँखें खोलो ‘आनंद’ और सपनों से निकलकर
हक़ीक़त के धरातल पर आओ
वरना बाद में पछताना पड़ेगा। 
 
दोस्‍तों की सारी बातें सच हुईं
कुछ समय बाद मेरी शादी हुई
आई बीवी, 
मेरा देखना छूटा टी। वी। 
क्‍योंकि वही रहती थी
सारा दिन टी.वी. से चिपकी, 
ऊपर से नित्‍य नई-नई
फ़रमाइश करती, 
सोचा था होगी शादी, 
हमको मिलेगी शान्ति, 
लेकिन बोनस सहित
मिली अशान्ति। 
 
सारी सोची बातें उल्‍टी हुई, 
मेरी तो क़िस्‍मत ही फूटी, 
लेकिन मुझे ख़ुशी है कि
किसी की तो क़िस्‍मत चमकी, 
पाठकों आप ऐसा भ्रम
मत पालना
क्‍योंकि शादी एक ऐसा लड्डू है
जो खाए पछताए
और जो न खाए वह पछताए। 

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