श्रापित योद्धा की कष्ट कथा
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा सतीश राठी1 Apr 2019
अश्वत्थामा यातना का अमरत्व
अनघा जोगलेकर
लेखक: अनघा जोगलेकर
प्रकाशक: उद्वेली बुक्स
पृष्ठ संख्या: 132
जिल्द: पेपर बैक
मूल्य: ₹ 180.00
महाभारत हमारे प्राचीन इतिहास की एक ऐसी कथा है, जिसमें धर्म भी है धर्मराज भी है और अधर्म भी है, कृपा भी है पीड़ा भी है, स्वार्थ भी है सेवा भी है, वैमनस्य भी है प्रेम भी है, राजनीति भी है त्याग भी है, प्रतिशोध भी है दया भी है, कपट भी है निश्चलता भी है, छल भी है और ईमानदारी भी । यह कथा जीवन का एक ऐसा सत्य है जिसमें सारे सुख भी हैं, सारे दुख भी और इसी कथा का एक पात्र ऐसा भी है जिसके क्रोध ने उसके जीवन को ऐसा नष्ट किया कि वह अपनी यातना, अपनी पीड़ा को सहते हुए आज तक भटक रहा है। ऐतिहासिक किंवदंती को उपन्यास का मुख्य विषय बना कर अश्वत्थामा जैसे खलनायक पात्र को नायक बनाकर श्रीमती अनघा जोगलेकर ने अपना उपन्यास रचा है, 'अश्वत्थामा' यातना का अमरत्व।
जीवन में सुख का घंटों का समय भी क्षण मात्र लगता है और दुख का क्षण भी व्यतीत ही नहीं होता। यदि किसी व्यक्ति को दुख और यातना का जीवन भर का श्राप मिल जाए और जीवन अमर हो जाए, तो फिर उसका भटकाव कैसा होगा, इसे शब्द देना शायद बड़ा कठिन है और एक कड़ी परीक्षा भी। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मुझे यह लगा कि अनघा जी इस कड़ी परीक्षा में मेरिट लिस्ट में पास हुई हैं। उन्होंने महाभारत के इस सूक्ष्म से विषय को उठाकर विस्तार दिया है। उनकी भाषा पर पकड़ और लेखन के शिल्प पर उनका आधिपत्य, इतना अधिक तैयारी से परिपूर्ण है कि उपन्यास को पढ़ते हुए कहीं पर भी यह नहीं लगा कि हम कहीं उससे अलग हो रहे हैं। एक चुनौतीपूर्ण बात थी कि अनघा जी ने अश्वत्थामा पर उपन्यास लिखने का विचार बना लिया और यह विचार पूरे शोध के साथ प्रस्तुत भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति लिखने बैठता है, तो पात्र उसके सामने जीवंत हो जाते हैं। यहाँ पर अश्वत्थामा जैसे पात्र पर उसे जीवंत कर लिखना कितना पीड़ादायक होगा यह समझा जा सकता है। उपन्यास का प्रारंभ शारण देव नामक एक ब्राह्मण को कथा का सूत्रधार बनाकर किया गया है। शारण देव, उसका पुत्र शत और उसकी पत्नी भगवती इस कथा के सूत्रधार पात्र हैं जो कहीं ना कहीं अपनी भावनाओं के साथ इसमें जुड़ भी जाते हैं। यह तो दंतकथा है कि अश्वत्थामा जो दुर्योधन के अंतिम सेनापति रहे कृष्ण के श्राप से आज भी वन-वन भटक रहे हैं, लेकिन क्या वाक़ई में श्राप होता है या फिर कर्मफल जीवन के साथ यात्रा करते हैं। लेखिका ने प्रत्येक अध्याय के पहले ऐसे कुछ प्रश्न भी उठाए हैं और उनके समाधान भी दिए हैं। महाभारत में कई सारी चमत्कारिक घटनाएँ वर्णित हैं, उनके पीछे के तथ्य और तर्क को विभिन्न अध्यायों के पूर्व तार्किक समाधान के साथ प्रस्तुत किया गया है।
आचार्य द्रोणाचार्य का पुत्र, आचार्य कृपाचार्य का भांजा, दुर्योधन और कर्ण का प्रिय मित्र अश्वत्थामा जब अपनी कथा खुद शारण देव के सामने वर्णित करता है तो अध्याय दर अध्याय उसका दुख, उसका पश्चाताप उसके शरीर से निकल रहे मवाद की तरह सामने बहता हुआ दिखता है। जन्म के समय अश्व की तरह हिनाहिनाने की आवाज करते हुए पैदा होने से पिता ने उनका नाम अश्वत्थामा रख दिया और यह अभिशापित नाम इतिहास का एक ऐसा हिस्सा बना जो दर-दर भटकने के लिए शापित हो गया है। इसकी पूर्व पीठिका के रूप में कृपा कृपी के जन्म की भी कथा है और वहीं से सूत्र जोड़कर कथा को विस्तार दिया है। अनावश्यक हिस्से को बड़ी कुशलता के साथ उपन्यास का हिस्सा बनने से हटा दिया गया है। कृष्ण भी हर पृष्ठ पर विद्यमान होते हुए शायद कहीं नहीं है। यह लेखिका की कुशलता की बात है। कौरव और पांडव और महाभारत के पात्र इतने महत्वपूर्ण रहे हैं कि, उनकी छाया में कोई दूसरा पात्र खड़ा ही नहीं हो सकता, पर यह अनघा जी का लेखकीय कौशल्य है कि उन्होंने अन्य समस्त महत्वपूर्ण पात्रों को छाया रूप में रखते हुए अश्वत्थामा का अंतर्मन यहाँ पर प्रस्तुत किया है। क्रोध भी आता है और दया भी पैदा होती है। उसका दुख एक खलनायक का दुख है, पर पाठक वहाँ पर भी जाकर जुड़ता है। खलनायक को कहीं पर भी नायक बनाने की कोशिश नहीं की गई है पर रचना कौशल से उसका पश्चाताप भी सामने आया है और उसका क्रोध तथा अहंकार भी। यह सब एक साथ किसी पुस्तक में रखना जिस अतिरिक्त कौशल की ज़रूरत की ओर इशारा करता है वह इस युवा लेखिका के पास है, और इसी कौशल के साथ लिखे जाने से यह उपन्यास विश्वसनीय भी हो गया है।
उस समय के सारे तथ्यों पर खोजबीन के साथ प्रत्येक अध्याय के पहले जो समाधान टिप्पणियाँ दी गई हैं वह सारी टिप्पणियाँ अपने-आप में बड़ी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनमें उठाए गए प्रश्न और उनके समाधान फिर कुछ नए प्रश्न भी खड़े कर देते हैं, और पाठक की सोच को विस्तार भी देते हैं। शायद यह विस्तार पाना ही तो किसी उपन्यासकार की इच्छा होती है, और उसके लिखे जाने की सफलता भी। इस मायने में अनघा जी पूरी तरह सफल हैं और बधाई की हक़दार भी।
सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर,
इंदौर 452 010
मोबाइल 94250 67204
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"कही-अनकही" पुस्तक समीक्षा - आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी
पुस्तक समीक्षा | आशा बर्मनसमीक्ष्य पुस्तक: कही-अनकही लेखिका: आशा बर्मन…
'गीत अपने ही सुनें' का प्रेम-सौंदर्य
पुस्तक समीक्षा | डॉ. अवनीश सिंह चौहानपुस्तक: गीत अपने ही सुनें …
सरोज राम मिश्रा के प्रेमी-मन की कविताएँ: तेरी रूह से गुज़रते हुए
पुस्तक समीक्षा | विजय कुमार तिवारीसमीक्षित कृति: तेरी रूह से गुज़रते हुए (कविता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
कविता
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं