सरप्राइज गिफ्ट: कथा रस का जीवंत प्रवाह
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा प्रो. कृष्ण कुमार सिंह15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
समीक्षित पुस्तक: सरप्राइज गिफ्ट (कहानी संग्रह)
लेखिका: डॉ. प्रतिभा राजहंस
प्रकाशक: रचनाकार पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ: 144
मूल्य: ₹200
ISBN: 978-93-91791-50-6
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‘सरप्राइज गिफ्ट’ प्रतिभा राजहंस का पहला कहानी संग्रह है। उनकी कहानियाँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। संग्रह में शामिल कहानियों का कथाक्षेत्र बड़ा है। केंद्र में समकालीन सामाजिक परिवेश ज़रूर है, मगर सारी कहानियाँ इस दायरे में सीमित नहीं हैं। संग्रह की पहली कहानी ‘किंतु रोता कौन है’ में आज़ादी से पूर्व की ग़रीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन से त्रस्त समाज को बदलने के लिए दृढ़ संकल्प कथानायक की आजीवन जीवन मूल्यों के प्रति आस्था, विश्वास, संघर्ष और सफलता का चित्रण तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक परिवेश में किया गया है।
‘परकन्नो’, कहानी में पारिवारिक परंपरा और संकोच में बँधे ज़मींदार परिवार के छोटे लड़के रूपो बाबू का उनकी बड़ी भाभी के प्रभाव में आकर छोटी सी ग़लती पर अपनी पत्नी से अलग होना, दूसरी शादी करना तथा नई दुलहन के विवेकपूर्ण निर्णय से पुनः पहली पत्नी को स्वीकार करना वर्णित-चित्रित हुआ है। इस कहानी का शीर्षक ‘परकन्नो’ बिहार के अंग जनपद की प्रतिनिधि भाषा अंगिका में अक्सर प्रयुक्त होने वाला शब्द है। कहानीकार ने उसका अर्थ बता दिया है—पराये की बात पर चलने वाला। इस कहानी में अंगिका के शब्दों तथा वाक्यों को जीवंत उपस्थिति कथारस के प्रवाह को बराबर बनाए रखती है।
‘सरप्राइज गिफ्ट’ कहानी में समीर पत्नी के देहांत के बाद नसबंदी करवाता है और शशि के नाम की कुमारी लड़की से नसबंदी की बात छिपाकर विवाह करता है। नारी अस्मिता के प्रश्न उठाती कथानायिका शशि, समीर की स्वार्थवृत्ति, शक्कीपन भोग-लिप्सा एवं दंभ पर चोट करती है। वह अपनी समझदारी और दृढ़ संकल्प के बल पर पढ़-लिखकर आगे बढ़ती है तथा सफलता प्राप्त करती है। दुहाजू वर से शशि के द्वंद्व को अत्यंत यथार्थपरक ढंग से उकरने में लेखिका को महारत हासिल है—पाठक की पहली प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी। आज का शहरी मध्यवर्गीय पढ़ा-लिखा, सरकारी नौकरी प्राप्त व्यक्ति किस हद तक गिरकर सामाजिक जीवन के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देता है, इसे शिद्दत के साथ उपस्थित करने का कहानीकार का कौशल बाँधने वाला है।
इस संग्रह की कहानियों का कथ्य वैविध्यपूर्ण है। नई-पुरानी समस्याओं को सहज तथा स्वाभाविक रूप से चित्रित करने का प्रयास सर्वत्र नज़र आता है। आज हिंदी कहानी पठनीयता के संकट से जूझ रही है—यह बात दबी या खुली ज़बान से प्रायः कही जाती है। कथ्य से लेकर शिल्प तक में एकरसता सामान्य बात है। चर्चित रचनाकारों तक की कहानियों के संदर्भ में भी यह बात लागू होती है, जहाँ इससे बचने के प्रयास में उनका कथ्य बेपटरी हो जाता है। समकालीन सामाजिक परिस्थितियों की असंगतियाँ, आम आदमी की विवशताजन्य पीड़ा और इन सब के लिए ज़िम्मेदार व्यवस्था को बेनक़ाब करने में रचनाकार की सफलता–असफलता की चर्चा स्वाभाविक है। इस प्रयास में कई बार यह बात दबी रह जाती है कि कहानीकार का कार्य केवल समस्याओं और चुनौतियों का पहाड़ खड़ा करना नहीं। उसे अपनी बात सहज, स्वाभाविक तथा लोकरंजक का अंदाज़ में कहने का सलीक़ा भी आना चाहिए। प्रतिभा राजहंस की कहानियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि इनकी रचनाकार को सलीक़े से कथा कहने की कला आती है।
संग्रह की कई कहानियों में कहीं आर्थिक परेशानी, पारिवारिक संबंधों के जटिल मकड़जाल से निकलने की छटपटाहट है तो कहीं प्रशासनिक व्यवस्था की सड़न—उसके बजबजाते भ्रष्टाचार के सामने पाठक को खड़ा करने की चुनौती से लगातार जूझती रचनाकार के व्यक्तित्व की दृढ़ता का अंदाज़ा पाठक सहज ही लगा लेता है। ऐसी कहानियों में स्त्री का जीवन अपनी पूरी वास्तविकता के साथ खुल कर सामने आता है। लेखिका को नारी मनोविज्ञान की गहरी समझ है। इस दृष्टि से ‘स्पेशल केयर’ कहानी का उल्लेख आवश्यक है। इस कहानी में वयःसंधि प्राप्त बच्ची पूजा में अवस्था के अनुरूप शारीरिक विकास नहीं होने के कारण कुंठा उत्पन्न होती है। इस कुंठा की अभिव्यक्ति उसके व्यवहार में होती है। माता-पिता के साथ उसकी बातचीत में शंका–संदेह सहित कई भावों का अंकन लेखिका ने सधी क़लम से किया है। मनोवैज्ञानिक परामर्श से उसके जीवन में आए सकारात्मक बदलाव से परिवार की चिंता दूर होती है।
‘कहानी का ट्रीटमेंट’, ‘स्वांग’, ‘मधुलिका’, ‘फैसला’, ‘गुड़िया लेते आना’ आदि कहानियों में स्त्री जीवन से जुड़े कई मार्मिक प्रसंग दर्ज हुए हैं। बिना किसी लटके-झटके के इन कहानियों की स्वाभाविक कथा–भाषा पाठकों के मन पर अच्छा प्रभाव डालती है। लेखिका अपने सामाजिक जीवन में आने वाले बदलावों के प्रति कहीं भी संवेदनहीन नहीं होती है, उसे मूल्यगत निष्ठा के साथ ग्रहण करती है और अपने पाठकों को इसके लिए तैयार कर लेती है। वह किसी रोमान से पीड़ित नहीं है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि छीजते मूल्य उसे चोट पहुँचाते हैं, व्यथित करते हैं। उसकी ख़ूबी उसमें निखरती है कि वह अत्यंत सतर्कता तथा निर्मम तटस्थता के साथ इसे प्रस्तुत करती है।
प्रतिभा राजहंस की कहानियाँ एक विशेष तरह का परिवेशगत वातावरण निर्मित करती हैं, जिसका बड़ा हिस्सा मानसिक परिवेश का होता है। जिन कहानियों के केंद्र में स्त्री है, उनमें अकेलापन, उदासी, घुटन का मार्मिक एहसास कराती हैं, लेकिन उनकी कथा नायिकाएँ संघर्ष करती हैं। वह कहीं से भाग्य को कोस कर चुप नहीं रह जातीं। वे अपना रास्ता बनाने में तत्पर होती हैं और सफलता प्राप्त करती हैं। लेखिका के पास ख़ास अंदाज़-ए-बयाँ है, जो अपनी सरलता में अत्यंत मोहक है। उसके पास भाषा का सधा प्रयोग है और सामाजिक जीवन में व्याप्त हताशा, निराशा के बीच उसमें अंतर्निहित लय की तलाश में उसे पर्याप्त सफलता मिली है। कहानीकार की अंतर्दृष्टि का पता ऐसी स्थिति में ही चलता है। जीवन-लय का बना रहना सबसे ज़रूरी चीज़ है। विषम से विषम स्थिति में यह क़ायम रहे, टूटने ना पाए, यह चिंता उनकी कहानियों को विशिष्ट बनाती है।
इस संग्रह की कहानियाँ इकहरेपन से बचती हैं। कहा जा चुका है कि वह किसी ख़ास ढर्रे पर चलने वाली कहानियाँ नहीं है। विषयगत वैविध्य के साथ ही शिल्प के स्तर पर इसे देखा जा सकता है। कई कहानियों में अंगिका के शब्दों का धड़ल्ले से प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं इस सीमा तक कि उससे अपरिचित पाठक परेशान हो सकता है। लेखिका ने इस बात को ध्यान में रखकर उनके अर्थ नीचे स्पष्ट कर दिया है। हिंदी कथा संसार में फणीश्वर नाथ रेणु के प्रवेश के साथ स्थानीय बोली का रंग जिस तरह निखरा उस तरह बाद में क़ायम नहीं रह सका। उनके बाद आये कथाकारों की लंबी सूची है, जिन्होंने अपने काम की ढेर सारी चीज़ें उनसे ग्रहण कीं। हाल के वर्षों में जब से वैश्वीकरण का नशा देश की अर्थनीति और राजनीति पर चढ़ा है, तब से हिंदी कहानी की भाषा में शिथिलता और एक तरह के ठहराव के चिह्न दिखने लगे हैं। इस दृष्टि से प्रतिभा राजहंस की कहानियाँ आश्वस्त करती हैं। यही कारण है कि उनका कथारस कहीं क्षीण नहीं पड़ा है। अपनी मिट्टी की सौंधी गंध के लिए ये कहानियाँ पाठक को आत्मीयता के साथ बाँधे रहती हैं। लोकमन की अच्छी पकड़ के अभाव में कहानियों में ऐसा लोक रंग आ नहीं सकता है।
कहानीकार पर किसी ख़ास विचारधारा का ठप्पा नहीं है। इस मामले में वे सजग और सतर्क है। स्त्रीवाद के चालू और आकर्षक फ़ैशन से वह कोसों दूर है। इसी कारण उसकी कहानियाँ कहीं भी अनावश्यक वैचारिक दबाव से बोझिल नहीं हुई हैं। “मेरे पात्र कल्पना लोक से नहीं आए हैं। सभी मेरे आस-पास के लोग हैं जो मुझे संवेदित करते रहे हैं”—लेखिका के इस दावे को ये कहानियाँ प्रमाणित करती हैं। किसी तरह के वैचारिक आग्रह उसे बाँध नहीं पाते। इसका एक कारण यह लगता है कि वह उन सबसे अच्छी तरह परिचित हैं। साहित्य के क्षेत्र में वैचारिक हदबंदी अक्सर जकड़बंदी में परिणत होकर उसे क्षतिग्रस्त ही करती है। कहानीकार की प्रतिभा का कमाल ऐसा है कि बीहड़ में इसे पगडंडी निकाल लेने में वह सिद्धहस्त है। अपने समकालीन परिवेश को खुली आँखों से देखने वाले रचनाकार की दृष्टि कभी धूमिल नहीं पड़ती। इस संग्रह की कहानियों में कहीं बनावटपन नहीं मिलता है। अपने पात्रों के मनोभावों का चित्रण करते समय लेखिका बहुत सावधान नज़र आती हैं, कहीं भी गलदश्रु भावुकता आने नहीं देती है। अपने स्त्री पात्रों के मानसिक उलझन तथा उहापोह को जिस ख़ूबी के साथ उसने अंकित किया है। वह कहानी कला की दृष्टि से अत्यंत मूल्यवान है। ‘सुवांग’, ‘मधुलिका’, ‘स्पेशल केयर’ इस दृष्टि से रेखांकित करने योग्य कहानियाँ हैं जो और देर तक मानस में गूँजती रहती हैं।
इन कहानियों की लेखिका का अपने परिवेश से गहरा परिचय है। समकालीन सामाजिक संदर्भ में उसका दृष्टिकोण विकसित हुआ है। ध्यान देने की बात है कि सामाजिक वास्तविकता पर उसकी अच्छी पकड़ है, जो संग्रह में सभी कहानियों में दिखाई पड़ती है। यह भी उल्लेखनीय है कि ये कहानियाँ किसी विशेष वर्ग या समुदाय तक सीमित नहीं हैं। इनका दायरा बड़ा है। अपने आसपास के देखे-सुने-समझे जीवन यथार्थ के मज़बूत धागों से बुनी गई कि यह कहानियाँ वस्तुतः ज़िन्दगी की कहानियाँ हैं। उनका कच्चा माल वहीं से आया है। प्रतिभा राजहंस की कहानियाँ पढ़ते हुए इस बात पर ध्यान जाता है कि लेखिका की निगाह कहानी के निष्कर्ष पर नहीं, उसके निहितार्थ पर है। निहितार्थ को उभारने के लिए जैसी संवेदनशीलता और नैरेशन अपेक्षित है, वह उसके पास भरपूर है। इसी के बल पर उनमें ऐसा वातावरण उपस्थित होता है जो बाहरी नहीं आंतरिक होता है—सूझबूझ और संवेदना से भरापूरा। उनकी कहानियों की पठनीयता का स्रोत यही है। उनके परिवेश से लगाव के कारण उससे प्राप्त अनुभव, वहाँ की भाषा पर पकड़, सांस्कृतिक बोध का मज़बूत धरातल कहानीकार के वैशिष्ट्य के कारक तत्त्व हैं। आज के जीवन के सच्चाई लाचारी के साथ साथ उसके प्रति आत्मीय लगाव को बिना किसी लाग-लपेट के चित्रित करने की दृष्टि से ये कहानियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। भाषा तथा संवेदना के स्तर पर ताज़ापन का अहसास कराती कहानियों का संग्रह कहानीकार की प्रतिभा और लेखकीय क्षमता में गहरा विश्वास पैदा करता है।
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