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तू मुझे अपना बेटा-सा लगता है

 

एक व्यापारी ३०-३५ साल थे और उनके कई काम थे; व्यापार में शहर में उनका नाम था। वह रोज़ाना नंगे पैर मंदिर जाते, मंदिर से वापस लौटते हुए, मंदिर के बाहर बैठे माँगने वालों को रोज़ाना एक-एक रुपया देकर आते—ये उनका रोज़ाना का नियम था। एक दिन जैसे ही वो बाहर निकले एक ग़रीब ६० साल की वृद्ध महिला जो अक़्सर वही बैठी रहती थी और सेठ एक रुपया देकर चले जाते थे, सामने थी। आज जैसे ही सेठ रुपया देने लगे वृद्घ महिला ने बेटा कहकर सम्बोधित किया और पास बैठने का अनुरोध किया। सेठ वृद्घ महिला के पास बैठ गये। वृद्ध महिला बोली, “बेटा तू मुझे अपना बेटा-सा लगता है, असल में मेरे कोई बेटा न था, हाँ एक बिटिया ज़रूर थी, हिंदुस्तान से बाहर रहती है। मैं इतनी पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, और ना ही मुझे पता अब वो कहाँ है। मेरे पति के मर जाने के बाद परिवार के कुछ लोगों ने मुझे यहाँ के रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया। क़रीब १० साल हो गये मुझे इस मंदिर में आते हुए। मैं बहुत दिनों से बेटा तेरे से बात करना चाह रही थी। पता नहीं अंदर से एक आवाज़ आई और मैंने तुझे अपना बेटा समझ कर बता दिया।” 

इतना सुनकर सेठ चले गये अपने घर और सारी बात अपनी पत्नी को बता दी। अगले दिन पति-पत्नी उन वृद्घ महिला को अपने घर ले आए। उनको घर के एक कोने में रहने के लिए एक कमरा दे दिया गया और उनकी हर ज़रूरत का ख़्याल रखा गया। एक दिन सेठ ने वृद्ध महिला से पूछ ही लिया, “तुम कहाँ की रहने वाली हो कुछ तो याद होगा?”

“हाँ बेटा कुछ-कुछ याद हैं मैं उस शहर की रहने वाली हूँ, उस जगह हमारा मकान था। और बाज़ार में मेरे पति की दुकान थी। पता नहीं अब है या नहीं और मकान पता नहीं कैसा होगा?”

सेठ ने सब कुछ पता करके, चल दिए अपने एक समझदार कर्मचारी के साथ। सब कुछ निरक्षण करने के बाद सेठ उस फ़र्म की दुकान पर पहुँच गये। सेठ बड़े ही समझदार थे, बड़ी समझदारी से काम लिया। अपने व्यापार के बारे में बताया, और बातों-बातों में ही वृद्ध महिला के पति के बारे में बोले, “वो कहाँ हैं? उनसे हमारा व्यापार था, और हमने पुराने काग़ज़ निकाले तो पता लगा की हमें सेठ जी को व्यापार के कुछ पैसे हमारी तरफ़ थे जो हम देने के लिए आये हैं। क्यूँकि हमारे पिता जी हमें कह कर गये थे ‘व्यापार में ऊँच-नीच चलती रहती है, लेकिन किसी का उधार हो, ज़रूर देना’, सो हम अपने पिता जी की बातों का अनुसरण कर रहे हैं और हम पैसा देना चाहते हैं। लेकिन एक शर्त है हम पैसे सेठ जी को ही देंगे।”

“सेठ जी तो नहीं हैं।”

“उनकी पत्नी?”

“वो भी नहीं हैं, हाँ उनकी एक बेटी है जो अमेरिका में रहती है।”

“बेटी अमेरिका में कहाँ रहती है?”

सेठ ने चतुराई से सब कुछ पता लगा लिया। 

“हम आएँगे कुछ समय बाद आप लोगों से मिलने, आख़िर पैसे भी देने हैं ना,” इतना कह कर सेठ जी चल दिये। 

वृद्ध महिला के परिवार के लोग असमंजस में पड़ गये, ये कौन आदमी हैं? कितने पैसे हैं? पैसे कैसे लिये जायें।

समय बीतता रहा, परिवार के लोग दुविधा में थे। सेठ जी इस शहर में दो-तीन दिन और रुके। सेठ जी ने आस-पास के लोगों से सब पता लगा लिया। सब कुछ वैसा ही था जो वृद्ध महिला ने सेठ को बताया था। सेठ ने अपने कर्मचारी को वृद्ध महिला को लाने के लिए भेजा। 

सेठ जी अपने ७-८ सहकर्मियों के साथ वृद्ध महिला के परिवार की दुकान पर वृद्ध महिला के साथ पहुँच गए। जैसे ही लोगों ने उस वृद्ध महिला को देखा, सभी को पसीने आ गये और माफ़ी माँगने लगे। भीड़ इकट्ठी हो गई, परिवार के लोगों की करतूत समाज में सभी को पता चल गई। वृद्ध महिला के परिवार के लोगों ने मकान व दुकान वृद्ध महिला को देते हुए चरणों में पड़कर कहा, “हमें माफ़ कर दो, हमसे बड़ी भूल हुई है . . .।”

वृद्ध महिला अपना सब कुछ बेचकर सेठ को सौंपकर अपनी बेटी के पास चली गई। 

सेठ को एक बहन मिल गई और बहन को एक भाई . . . दोनों में बहुत लाड़ प्यार है, दोनों का आना जाना है। सेठ की सूझ बूझ से सभी को सब कुछ मिल गया।

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