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उँगली करना ज़रूरी है!

 

यह उन दिनों की बात है, जब सरकार ने अपना सरकारी आदेश निकाला। बब्बन के हाथ में जब वह सरकारी आदेश पढ़ा; जिसे हम प्यार से एवं बड़े ही आदर एवं सम्मान के साथ संबोधित करते है—‘जी.आर.’। बब्बन ने एक ही साँस में सारा जी.आर. पढ़ डाला। पढ़ते ही बब्बन चिंतित हो गए। उनके माथे से पसीना छूटने लगा। उनकी ऐसी हालत को देखकर धर्मपत्नी भी चिंतित हो गई। उसने चिंता के स्वर में अपने धर्मपति की चिंता को जानने के स्वर में पूछ ही लिया, “क्यों जी, क्या हुआ? आप ने वह प्यारा और आदरणीय जी.आर. पढ़ा और चिंतित हो गए। आख़िर क्या बात है?” 

बब्बन चिंता में इतने मगन थे कि उन्होंने अपनी धर्म पत्नी की चिंतातुर वाणी को सुना ही नहीं। किन्तु धर्मपत्नी अर्थात्‌ मिसेज बब्बन के बार-बार एवं ऊँचे आवाज़ में पूछने के बाद बब्बन अपनी चिंतामग्न स्थिति से बाहर आ गए। और मिसेज बब्बन को चिंता का कारण बताया, “सुनो, मेरी अर्द्धांगिनी, इसमें जो लिखा है, जब तुम सुनोगी तो तुम भी चिंता में मग्न हो जाओगी। इसमें लिखा है कि यदि तुम्हें अपना वेतन चाहिए तो तुम्हें उँगली करनी ही होगी।” मिसेज बब्बन आश्चर्य चकित हो गई। बब्बन ने अपनी चिंता को मिसेज बब्बन के सम्मुख विस्तार से प्रकट करते हुए कहा, “अर्द्धांगिनी, क्या तुम यह कल्पना भी कर सकती हो कि मैं उँगली कर सकता हूँ? आज तक मैंने किसी के उँगली नहीं की, कभी किसी की ओर उँगली तक नहीं दिखाई और न ही किसी पर उँगली उठाई। उँगली करने जैसा अपराध मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता।” 

बब्बन एक शरीफ़ सज्जन व्यक्ति थे। उन्होंने सच में ही अपने जीवन में कभी किसी के उँगली नहीं की थी। आज अचानक उँगली करने का सरकारी आदेश पाकर बब्बन परेशान हो गए थे। वास्तव में हमारी संस्कृति उँगली करने को अच्छा नहीं समझती है। हमारी संस्कृति में समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाए हैं। जिन्हें समाज ने मान्यता प्रदान की है। हम अपनी संस्कृति को छोड़कर ग़लत संस्कृति का समर्थन कभी भी नहीं कर सकते हैं। उँगली करना वास्तव में एक मुहावरा है। जिसके समकक्ष ‘खड़ी करना’ मुहावरा भी पाया जाता है। जिसका अर्थ अच्छे काम को बिगाड़ना हो सकता है। और हमारी संस्कृति ने हमेशा अच्छे कामों का समर्थन किया है। भला वह काम बिगाड़ने वाले कृत्य को कैसे स्तुत्य ठहरा सकती है। वह हमेशा से ही निंदनीय था और रहेगा। किन्तु आज बब्बन इस बात से परेशान था कि बिना उँगली किए वेतन नहीं मिलेगा। सरकारी आदेश का उल्लंघन भी नहीं कर सकता था। किन्तु वह इस बात से अधिक आहत था कि समाज को जब यह बात पता चलेगी कि बब्बन खुले आम उँगली करता है। यह बात सोच कर ही वह सिहर उठा था। 

बब्बन उँगलियों के तर्कशास्त्र और ऐतिहासिक विकास क्रम में खो चुका था। मनुष्य को अच्छा जीवन जीने एवं कर्म करने के लिए प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रत्येक धर्म के विधाता ने बिना भेदभाव के सभी धर्मों के मनुष्यों को उँगलियों का समान विधान किया है। या यूँ कहें कि मनुष्य का जन्म ही उँगलियों के साथ होता है। और यह उँगलियाँ यदि वह सही सलामत रखता है; तो मृत्यु पर्यंत रहती हैं। मनुष्य के शरीर में नियम के अनुसार 20 उँगलियाँ होती हैं। दस पैर में और दस हाथों में। उँगलियों को हाथ और पैरों में समान रूप से विभाजित कर दिया गया है। किन्तु समान रूप से विभाजित होने के बावजूद भी ये सभी उँगलियाँ एक दूसरे से भिन्न अपना अलग अस्तित्व रखती हैं। सभी उँगलियों को सम्मान देने हेतु एवं पहचान हेतु मनुष्य के नामों की भाँति उँगलियों के नाम भी रखे गए हैं। अंगुष्ठा, तरजनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा। 

बुद्धिमान एवं समय सजग पाठक यह उँगली कर सकता है कि इंसान के हाथों में छह उँगली भी हो सकती हैं। उसका यहाँ उँगली करना सही भी है। मनुष्य को उँगली इसीलिए ही दी है कि वह खुलकर या छिपकर उँगली कर सके। कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं, जिनके हाथों में छह-छह या सात उँगलियाँ भी हो सकती हैं। मुझे पता है कि आपका अगला सवाल क्या हो सकता है? मैं अंदाज़ लगा सकता हूँ? आप ने तो कहा था कि भगवान ने सबको बीस उँगलियों का विधान किया है फिर यह 21 या 22 उँगलियाँ कैसे? क्या इन लोगों ने ईश्वर को चकमा दे दिया। नहीं, हमें लगता है कि ईश्वर ने जिसे मानव जाति को आकार देने का काम दिया है, शायद उसने यहाँ उँगली की होगी। जिस कारण उसे एक या दो बोनस उँगली दे दी गई। ऐसे बोनस प्राप्त व्यक्तियों को सफलता का टिकट जन्मजात दे दिया जाता है, ऐसा हम समझ सकते है। एक-आध अपवाद हो सकता है,। जिसका टिकट आउट डेटेड हो गया हो; या यूँ कहें कि आकार देने वाले ने ही उसके उँगली कर दी। सफल होने वालों में हम फ़िल्म कलाकार ऋत्विक रोशन का नाम यहाँ ले सकते है। उसने अपनी उँगली दिखा–दिखा कर फ़िल्मों के ज़रिए ख़ूब लोकप्रियता पाई। और जिनकी उँगलियाँ नहीं होती हैं या काट दी जाती हैं तो अमूमन ऐसे व्यक्ति को भिक्षा का दामन थामना पड़ता है। 

उँगली को लेकर बब्बन सोच की गहराई में कूद पड़ा था। निर्णय लेने में उँगली की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह भूमिका सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार से हो सकती है। समाज, धर्म, राजनीति आदि जैसे खेल में उँगली का बड़ा ही महत्त्व होता है। खेल में की जानेवाली उँगली भी दो प्रकार की ही होती है। सकारात्मक और नकारात्मक। सकारात्मक उँगली खेल का खेल भावना से लिया जाने वाला निर्णय होता है तो नकारात्मक उँगली खेल में खिलाड़ियों द्वारा दूसरे खिलाड़ी को खेलते समय नुक़्सान पहुँचना; ताकि खेल में वे पराजित हो सकें। जैसे फुटबॉल खेलते समय जान बूझकर दूसरे खिलाड़ी के पैरो में पैर डालकर गिरा देना हो सकता है। खेल कोई भी हो सकता है, सभी खेलों में उँगली करना ज़रूरी होता है। बस उसे देखने और समझने का अलग-अलग नज़रिया होता है। कहीं उँगली करना अच्छा एवं समाज मान्य होता है, तो कहीं पर उँगली करना समाज द्वारा मान्य नहीं होता है। क्रिकेट खेलते समय बल्लेबाज़ का आउट हो जाने पर अंपायर उँगली उठाकर दर्शाता है कि समाने वाला खिलाड़ी आउट हो गया है। यहाँ उँगली की बड़ी मज़ेदार बात यह है कि एक उँगली उठाने से खिलाड़ी आउट क़रार दिया जाता है तो दो उँगली उठाने से छह रन दे दिया जाता है। कभी-कभी अंपायर पर खिलाड़ी दबाव डालते है, तो उसे हम उँगली करना कह सकते हैं। 

उँगली जहाँ दिशा दिखाने के लिए उपयोग में लाई जाती है तो वहीं उँगलियों के विभिन्न अर्थ समाज में रूढ़ हो चुके हैं। कनिष्ठा उँगली अर्थात्‌ हाथ की सबसे छोटी उँगली सू-सू को दर्शाता है, तो तरजनी और मध्यमा दो उँगली एक साथ दिखाना शौचालय को दर्शाता है। हम में से सबने पाठशाला की पढ़ाई करते समय शिक्षक को इस प्रकार की उँगली ज़रूर दिखाई है। मैडम या सर को उँगली दिखाते हुए आप ने यह प्रसिद्ध वाक्य ज़रूर कहा होगा। “सर, सू-सू।”, “मैडम . . .” कहा और दो उँगली दिखा दी। सर और मैडम यह अच्छी तरह जानते थे कि छात्रों को सू-सू या शी-शी (पोटी) जाना है। इसीलिए मुझे इन उँगलियों के संदर्भ में अधिक प्रवचन देना उचित नहीं लगता, क्योंकि यह हमारा राष्ट्रीय सूचक उँगली संकेत है। कई छात्र कक्षा में उँगली करने के लिए माहिर होते हैं। आप में भी होंगे। मेरा मतलब आप भी कभी नटखट होंगे। वे उँगली करने को अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं। ऐसे नटखट छात्र कई बार कक्षा का माहौल ख़राब कर देते हैं। और मास्टर जी किसी अन्य छात्र को छड़ी का स्वाद चखाते हैं। 

वहीं विदेशों में मध्यमा उँगली दिखाना एक अलग अर्थ को दर्शाता है। कई बार विदेशों में ऐसी उँगली दिखाना भारी पड़ सकता है। इसमें समाने वाले व्यक्ति की पिटाई भी हो सकती है और यदि वह आत्म रक्षा में सक्षम है तो वह ख़ुद दूसरे की पिटाई कर सकता है। कुछ मनचले लोग अक़्सर इस उँगली का प्रयोग करते हैं। क्योंकि उनके लिए उँगली करना ज़रूरी है। वे उँगली करने को जीवन आनंद का रहस्य मानते हैं। 

अब यही ले लीजिए कि समाज और राजनीति में उँगली करना सोच समझ कर लिया गया निर्णय हो सकता है। कुछ लोग जान-बूझकर समाज का माहौल ख़राब कर देते हैं, तो समाज की एकता में सुरंग लगाने के लिए, उसे विभिन्न जातियों में विभाजित कर दिया गया है। और इस विभाजन कि अखंडता बनाएँ रखने हेतु उसी जाति के कुछ असमाज सेवक दिन-रात, साल के चौबीसों घंटे बड़े ही ईमानदारी से कार्यरत होते हैं। मजाल की इसमें उनसे कोई ग़लती हो जाए। उनकी यही असेवा देखकर समाज उनके प्रति गद्‌गद्‌ हो जाता है। और उन्हें अपने सिर के सिंहासन पर बैठाकर जय जयकार करता है और मुक्त कंठ से प्रेम रूपी पुष्पों की कोमल वर्षा करता है। ऐसे प्रेम को पाकर असमाज सेवक और भी मज़बूती और ईमानदारी से कार्य करने का वचन देकर निभाते भी है। कई बार ऐसे असमाज सेवकों को नेता की उपाधि से सम्मानित कर दिया जाता है। यही असमाज सेवक नेता बन जाने पर या नेता बनने से पहले जाति से ऊपर उठकर कार्य करने का सपना भी देखते हैं और धर्म भेद को अपना सबसे बड़ा माध्यम बना लेते हैं। वास्तव में उन्हें नेता बनने और बने रहने के लिए हमेशा उँगली करनी ही पड़ती है। या यूँ कहें कि उन्हें उँगली करने की इस विद्या को सीखना बहुत ज़रूरी हो जाता है। जो जितना बड़ा उँगलीबाज़ होगा वह उतना ही बड़ा नेता बनने कि क्षमता रखता है। यह उसके योग्यता का प्रमाण हो सकता है। 

आज के ज़माने में उँगली कहाँ नहीं होती है। बब्बन ने अपनी संस्कृति, अपनी परंपरा के आदर्शों को त्यागकर वेतन के लिए आख़िर उँगली करना स्वीकार कर ही लिया था। उसे लगा कि यह उँगली एक ही बार करनी होगी। लेकिन उसने देखा कि उसे और उसके साथ काम करने वाले कर्मियों को रोज़ सुबह-शाम उँगली करनी पड़ती है। बब्बन यह सोचता कि हमारी सुबह उँगली करने से होती है और शाम भी उँगली करने से। मजाल की शाम में उँगली ना करें। यह उँगली करने की नई तकनीक भारत में बाहर से निर्यात होकर आई है। जिसे उन्होंने बायोमेट्रिक के रूप में संबोधित किया है। बब्बन को कई दिनों के बाद समझ आया कि यहाँ उँगली करना ग़लत नहीं है। बल्कि अपनी नियमितता को सिद्ध करने का अच्छा माध्यम है। किन्तु इस कारण जो नियमित नहीं है, वह प्रशासकीय अधिकारयुक्त प्रेम पत्र अर्थात्‌ मेमो का हक़दार भी बन सकता है। एक दिन बब्बन सुबह उँगली करके किसी कारणवश अपने कार्यक्षेत्र से बाहर गए और वापस लौटकर उँगली करना भूल गए। दूसरे दिन उनके बिगबॉस ने उन्हें मेमो से सबके सम्मुख अलंकृत कर दिया। इस अलंकार से वे आहत हो चुके थे। उन्हें लगा कि अब वे कभी भी बिगबॉस के अर्जुन नहीं बन सकते हैं। 

मेमो को लेकर बब्बन को एक बहुत प्राचीन बात याद हो आई थी। महाभारत में द्रोणाचार्य ने अर्जुन को धनुर्विद्या सिखाकर विश्व का सबसे महान योद्धा बनाया था। विश्व के श्रेष्ठ गुरुओं में हम द्रोणाचार्य का नाम ले सकते हैं। वे ज्ञान के क्षेत्र में श्रेष्ठ थे और सदा रहेंगे। हम उनका उस क्षेत्र में सम्मान करते हैं। द्रोणाचार्य को पता चला कि उसका एक नाजायज़ शिष्य है जो उनके जायज़ शिष्य अर्जुन से भी बेहतर योद्धा बन सकता है। किन्तु द्रोणाचार्य को एक मात्र शिष्य अर्जुन को ही श्रेष्ठ धनुर्धर बनाना था। इसीलिए उन्होंने बड़े ही प्यार से एकलव्य के उँगली कर दी। यदि वे उँगली नहीं करते तो विश्व उन्हें ‘विश्व के दो श्रेष्ठ धनुर्धरों के गुरु’ के रूप में जानता पर उन्होंने उँगली कर ही दी और वे इस सम्मान से वंचित हो गए। वे उस वक़्त समझ नहीं पाए कि वास्तव में उँगली उन्होंने नहीं बल्कि एकलव्य ने कर दी थी। जिसका नतीजा यह हुआ कि द्रोणाचार्य स्वयं नाजायज़ गुरु बन गए। और आज हम उन्हें किस रूप में जानते हैं, यह हम सभी को ज्ञात है। 

आज ऐसी कोई जाति, समाज, धर्म नहीं है, जिसने उँगली करने को अपनी नई संस्कृति नहीं बनाया हो। विश्व के लगभग सभी देश अपने आप में एक सबसे बड़े उँगलीबाज़ के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। कोई देश ख़ुद के उँगली कर लेता है तो किसी को अपने पड़ोसी देशों के उँगली करना पसंद है। अब यही ले लीजिए कि विश्व में दूसरे नम्बर की आबादी वाला हमारा पड़ोसी देश हमारे देश के भूमि पर नज़र गड़ाए बगुले की तरह बैठा है। कब मौक़ा मिले और कब भूमि रूपी मछली को निगल जाये। आज से पचास साल पहले उसने ऐसे ही हमारी भूमि को निगल लिया था। और सबसे बड़ी उँगली यह कि हमारे ही देश के दो टुकड़े हो गए और उस टुकड़े के अन्य दो टुकड़े हो गए। यह सब उँगली करने का नतीजा है। आज जब हमारे देश पर विदेशी संकट आता है, तब हमारा पूरा देश एक शक्ति होकर उसका विरोध करने की बजाय; अपने ही देश को कैसे नीचा दिखाया जा सकता है, इसकी तरकीबें ढूँढ़ता रहता है। ताकि अपना आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक उल्लू सीधा कर सकें। प्रत्येक समाज, धर्म को लगता है कि आज अच्छा जीवन जीना है तो उँगली करना ज़रूरी है। इसीलिए आज कई देश एक दूसरे की उँगली करने में व्यस्त हैं। क्योंकि उँगली करना ज़रूरी है! . . . 

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