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19 नवम्बर को कुण्डलिया दिवस के रूप में मनाया गया

सुपरिचित कुण्डलियाकार और साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला के आह्वान पर साहित्यकारों द्वारा 19 नवम्बर को ‘कुण्डलिया दिवस’ के रूप में मनाया गया। 

इस अवसर पर प्रज्ञालय संस्थान, बीकानेर द्वारा नगर की समृद्ध साहित्यिक परंपरा में प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण छंद विधान का काव्य रूप कुण्डलिया पर केन्द्रित कुंडलिया दिवस स्थानीय सुदर्शन कला दीर्घा नागरी भण्डार में वरिष्ठ आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त की अध्यक्षता एवं राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा के मुख्य आतिथ्य में कुंडलिया वाचन एवं कुंडलियों पर गंभीर चर्चा के साथ संपन्न हुआ। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी भाषा साहित्य के लिए यह गौरव की बात है कि कुंडलिया छंद राजस्थानी के रासो साहित्य की देन है, क्योंकि इसके प्राचीनतम पद-छंद उल्लेख राजस्थानी के ‘हमीर रासो’ में मिलते हैं। रंगा ने आगे कहा कि कुंडलिया अपने परंपरागत रूप-स्वरूप के साथ नव-बोध, नव कथ-शिल्प के साथ आधुनिक संदर्भों से रची-बसी अपनी यात्रा को आगे बढ़ा रही है। 

कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त ने कुंडलिया छंद के इतिहास एवं उसके साहित्यिक पक्षों पर आलोचनात्मक एवं तथ्यात्मक गंभीर चर्चा करते हुए कुंडलिया छंद के संदर्भ ने कहा कि तुलसीदास से लेकर आज आधुनिक काल तक कुंडलिया काव्य की एक सशक्त विधा है। 

डॉ. गुप्त ने आगे कहा कि आज सभी भारतीय भाषाओं में कुंडलियों का रचाव हो रहा है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस संदर्भ में महिला रचनाकार भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है। जिससे काव्य की यह उपविधा निरंतर समृद्ध हो रही है।     

कार्यक्रम में कवि रवि शुक्ल ने अपनी हिन्दी में रचित कुण्डलियों का वाचन करते हुए वातावरण को कुंडलियामय बना दिया और सभी श्रोता कुण्डलियों की मीठी लय का आनंद लेने लगे। शुक्ल ने अपनी कुंडलियों की विषयवस्तु को समसामयिक संदर्भो में जोड़ते हुए कुंडलियों के नए तेवर प्रस्तुत किए। 

कवि राजाराम स्वर्णकार ने राजस्थानी और हिन्दी में कुण्डलियों का वाचन करते हुए सभी उपस्थित गरिमायमय श्रोताओं का मन मोह लिया। आपने प्रकृति के साथ-साथ अन्य विषयों को केन्द्र में रखकर कुण्डलियों का वाचन किया। 

प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए कवि गिरिराज पारीक ने आयोजन के महत्त्व को बताते हुए कुंडलिया छंद पर महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले त्रिलोकसिंह ठकुरेला द्वारा इस क्षेत्र में की गई सृजनात्मक सेवाओं का उल्लेख किया। साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने कुण्डलिया छंद के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है। उन्होंने अन्य साहित्यकारों को कुण्डलिया छंद लिखने के लिए प्रेरित करते हुए अनेक कुण्डलिया संकलनों का सम्पादन किया है। उन्होंने कई पत्रिकाओं के कुण्डलिया विशेषांकों का सम्पादन किया है। गिरिधर के बाद त्रिलोक सिंह ठकुरेला प्रथम रचनाकार हैं, जिनकी कुण्डलियाँ पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं 

इस अवसर पर ख़ासतौर से बंगाल कोलकाता से आए प्रवासी राजस्थानी वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं साहित्यकार श्रीमती दुर्गा पारीक का एवं उनके पति जवाहर पारीक का माला, शॉल, एवं दुपट्टा अर्पित कर प्रज्ञालय संस्थान द्वारा सम्मान किया गया। 

कार्यक्रम में जुगल किशोर पुरोहित, श्रीमती दुर्गा पारीक एवं जवाहर पारीक ने भी अपने विचार रखे। 

कार्यक्रम का सफल संचालन कवि रवि शुक्ल ने किया एवं आभार डॉ. फारूख चौहान ने ज्ञापित किया। 

कुण्डलिया दिवस के अवसर पर सुरजीत मान जलईया सिंह द्वारा सम्पादित साहित्य रत्न नामक ई-पत्रिका और सुभाष चंद्र पांडे द्वारा दैनिक ग्राम टुडे ने अपने अपने कुण्डलिया-परिशिष्ट प्रकाशित किये। 

कुण्डलिया दिवस के दिन अनेक साहित्यकारों ने विभिन्न सोशल साइट्स पर अपनी अपनी कुण्डलियाँ पोस्ट कीं। त्रिलोक सिंह ठकुरेला के अतिरिक्त डॉ. बिपिन पाण्डेय, परमजीत कौर ‘रीत’, हरिओम श्रीवास्तव सहित अनेक साहित्यकारों ने कुण्डलिया दिवस की आवश्यकता और उपयोगिता को प्रतिपादित किया करते हुए इसके महत्त्व पर बल दिया और सुनिश्चित किया कि 19 नवम्बर को प्रति वर्ष कुण्डलिया दिवस के रूप में मनाते हुए कुण्डलिया छंद के उत्थान के लिए और अधिक कार्य किया जायेगा। 

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