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‘फटकन’ और ‘विद्याश्री साहित्य सान्निध्य’ के बैनर तले ग्रेटर नोएडा में एक कवि गोष्ठी का आयोजन

ग्रेटर नोएडा, 25-11-2023: ‘फटकन’ और ‘विद्याश्री साहित्य सान्निध्य’ के बैनर तले दिनांक 25 नवंबर, 2023 को ग्रेटर नोएडा में एक कवि गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें ग़ाज़ियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के चुनिंदा कवियों ने सक्रिय प्रतिभागिता की। यह आयोजन ग्रेटर नोएडा (ओमीक्रॉन-1ए) स्थित साहित्यकार डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र के आवास पर संपन्न हुआ। 

यह गोष्ठी अपराह्न 3:00 बजे से आरंभ होकर सायंकाल 6:00 बजे तक अविराम चलती रही। साहिबाबाद (ग़ाज़ियाबाद) से पधारे वरिष्ठ लघुकथाकार और नामचीन साहित्यकार तथा संपादक एवं दिल्ली-प्रशासित कॉलेज के प्रवक्ता श्री सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ने गोष्ठी की अध्यक्षता की जबकि सान्निध्य प्राप्त हुआ गीतकार वैभव वंदन तथा महत्त्वपूर्ण कवि मनोज द्विवेदी का। उल्लेख्य है कि वैभव नंदन लोकसभा सचिवालय के मीडिया सलाहकार रहे हैं जिन्होंने अपनी सेवाएँ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र को भी दी हैं, जबकि मनोज द्विवेदी दूरसंचार विभाग में सहायक महाप्रबंधक रहे हैं। गोष्ठी का सुविध और कुशल संचालन किया गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की आचार्य डॉ. रेनू यादव ने जो एक सुपरिचित लेखिका, शिक्षिका और वक्ता हैं। 

माँ शारदे की प्रतिमा को माल्यार्पित करते हुए सुरेंद्र अरोड़ा ने दीप प्रज्ज्वलित किया; तदनंतर, कार्यक्रम का शुभारंभ मनोज द्विवेदी द्वारा गाई गई सरस्वती वंदना से हुआ। गोष्ठी का आग़ाज़ करते हुए भारतीय संसद के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने डॉ. रेनू यादव को मंच संचालन के लिए आमंत्रित किया। आमंत्रित कवियों में प्रखर कवयित्री और भूतपूर्व प्रवक्ता डॉ. भारती सिंह भी मंच पर उपस्थित थीं। 

सर्वप्रथम गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की छात्रा, युवा कवयित्री सुश्री दीपिका ने दो कविताओं का पाठ किया जिनमें भावों और विचारों की प्रौढ़ता थी और सृजनशीलता की व्यग्रता थी। दीपिका की दूसरी कविता में मृत्यु से न आतंकित होने की निडरता का भाव हृदयस्पर्शी था। प्रकृति की सुरक्षार्थ दीपिका के आह्वान ने श्रोताओं को बख़ूबी आकर्षित किया तथा उपस्थित वरिष्ठ कवियों ने उसे अपने आशीर्वचनों से सराहा तथा उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। अपनी कविताओं का ओजपूर्ण पाठ किया मनोज द्विवेदी ने, जिन्होंने बीच-बीच में अपनी आशु रचनाओं से माहौल को आद्योपांत जीवंत बनाए रखा। उनकी रचनाओं में हास्य और मनोविनोद के संपुट ने श्रोताओं को पूरी तरह चमत्कृत किया और बाँधे रखा। डॉ. भारती सिंह ने ‘क़लम’, ‘हम क्यों कभी-कभी बर्बर हो जाते हैं’ और ‘मालिनी’ शीर्षक से कविताओं का सस्वर पाठ किया तथा इन कविताओं की पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला। ‘तुम्हें नहीं मालूम क़लम में कितनी आग है’, ‘आओ, फिर से पड़ताल करें/हूणों का रक्त तो नहीं दौड़ रहा हममें’ तथा ‘मालिनी आओ/बैठो पास-पास’ जैसी उनकी कविताओं की पंक्तियाँ श्रोताओं के ज़ेहन में देर तक कौंधती रहीं। वैभव वंदन ने नारी की माँ समेत विभिन्न भूमिकाओं को रूपायित करते हुए अपनी गीति-रचनाओं का सुमधुर पाठ किया और श्रोताओं को सम्मोहिनी पाश से बाँधे रखा। ‘धरा जब पीर पीती है तभी तो बीज हँसता है . . . मैं धरती हूँ मेरे क़दमों में ये आकाश झुकता है’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को सरस भावनाओं से सराबोर कर दिया। तदुपरांत, मोक्षेन्द्र ने कुछ ग़ज़लें सुनाईं। ‘सफ़र में मैं अभी हूँ ठोकरों की बात मत कर/अँधेरे साथ देंगे रोशनी अफ़रात मत कर’ तथा ‘इन बियांबों ने हमें कितना छला है/इनके भीतर शोर का इक जलज़ला है’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं की प्रशंसाएँ बटोरीं। तत्पश्चात्‌, डॉ. रेनू के कविता-पाठ में माँ (‘माँ ईश्वर नहीं होती’) की अस्मिता को ईश्वर से बिल्कुल अलग स्थापित किया गया और स्त्री के अस्तित्व को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की, जिससे श्रोता-दर्शक आश्चर्यचकित हुए। उनकी सुनाई गई अन्य कविताओं ‘स्क्रिजोफेनिया’ तथा ‘बिसुरना’ और ‘भूख भूख होती है’ को तहे-दिल से सराहा गया। ‘वह पत्थर नहीं होती/ईश्वर की तरह/माँ ईश्वर नहीं होती’ एवं ‘भूख की क़ीमत किसी मॉल में बिक/रहे सीलबंद चकमक कंपनी के/नाम से मत आँको/किसी तराज़ू में रखे बटखरे से भी नहीं’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को आत्ममंथन करने के लिए विवश कर दिया। 

अपने अध्यक्षीय संबोधन में ख्यात साहित्यकार सुरेंद्र अरोड़ा ने कवियों की रचनाओं की सार्थक मीमांसा की तथा उनमें अंतर्भूत भावों और विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने युवा कवयित्री दीपिका द्वारा सुनाई गई कविताओं के भाव और शिल्प पर शिद्दत से टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा की छात्राओं-शिखा नागर, भारती भाटी और नेहा समेत दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा रुनक श्रीवास्तव को साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नयन के लिए उपयोगी टिप्स भी दिए। सुरेंद्र अरोड़ा ने राष्ट्रवादी और देशभक्ति से ओतप्रोत अपनी कविताएँ सुनाकर श्रोताओं को वर्तमान अराजक स्थितियों से अवगत कराया। उनकी कविताएँ ‘शर्मिंदगी अब भी जारी है’ तथा ‘राम, तुम फिर धरती पर आओ’ ने श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया। ‘शर्मिदगी अब भी जारी है/‘बुझा देंगें खेतों की प्यास हम, कहते थे वो’, ‘मानवता पर छाया है संकट/दुष्टों ने तोड़ी हैं मर्यादाएँ/मर्यादा जीवित हो फिर/ वापस आकर तुम संजीवन बन जाओ’ जैसी पंक्तियों ने नकारात्मक विचारों की कलुषित काली काई को भरसक हटाने का प्रयास किया। उन्होंने एक मार्मिक लघुकथा भी सुनाई। 

तत्पश्चात्‌, मंच पर उपस्थित सभी प्रबुद्धजनों ने इस कार्यक्रम के प्रबंधन में आद्योपांत दत्तचित्त निशि श्रीवास्तव के प्रति हियतल से आभार प्रकट किया। 

कार्यक्रम समापन करते हुए मोक्षेंद्र ने मंच पर उपस्थित अध्यक्ष सहित प्रतिभागी कवियों और श्रोता-दर्शकों धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने डॉ. रेनू के कुशल मंच-संचालन की सराहना भी की। 

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