वातायन-यूके के वैश्विक मंच पर रूसी साहित्यकार—अंतोन चेखव के कथा-साहित्य पर एक संगोष्ठी का आयोजन
विश्व समाचार 18 Jun 2024
प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में ‘विश्व साहित्य के नगीने’ शृंखला के अंतर्गत रूस के महान साहित्यकार अंतोन पावलविच चेखव की कहानियों पर सारगर्भित चर्चा की गई। इस वातायन संगोष्ठी-190 की प्रस्तोता थीं, ब्रिटेन की आईटी प्रोफ़ेशनल और लेखिका ऋचा जैन। पत्रकार, लेखक, अनुवादक और आलोचक—श्री आलोक श्रीवास्तव अध्यक्ष थे जबकि मुख्य अतिथि थीं, मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रो. ल्यूदमिला खोखलोवा। ध्यातव्य है कि दिनांक 27-04-2024 को इसी शृंखला के अंतर्गत चेखव की कहानियों पर पहले भी चर्चा की गई थी।
रूस की इंजीनियर और अनुवादक प्रगति टिपणीस ने सुश्री ऋचा जैन के साथ सह-वाचक के रूप में चेखव की दो कहानियों ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ और ‘बुढ़ापा’ का सस्वर पाठ किया। उल्लेखनीय है कि इन दोनों कहानी वाचकों ने ही इन कहानियों का अनुवाद भी किया था। ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किया सुश्री ऋचा जैन ने जबकि ‘बुढ़ापा’ कहानी का अनुवाद किया प्रगति टिपणीस ने। दोनों कहानियाँ मानवीय स्पर्श से लबरेज़ थीं। ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ का घटनाक्रम एक चर्च के मुख्य पादरी, भिक्षुओं, शराबियों और एक उच्छृंखल स्त्री के इर्द-गिर्द घूमता है। पादरी की संगीत और छंद-रचना में ख़ास दिलचस्पी है। दूसरी कहानी ‘बुढ़ापा’ का रूसी से हिंदी में अनुवाद सुश्री प्रगति टिपणीस ने किया। इस कहानी का मुख्य पात्र है, एक राजकीय शिल्पकार उज़िल्कोफ जिसको एक चर्च के क़ब्रिस्तान को बहाल की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। वह उस स्थान से कोई 18 वर्ष पहले परिचित रहा था; बहरहाल, अब उस स्थान का हुलिया बिल्कुल बदल चुका है। वह वहाँ दोबारा आकर वहाँ के लोगों, स्थान और चीज़ों का जायज़ा बड़े ही फलसफाना अंदाज़ में लेता है जिसमें व्यंग्य-कटाक्ष का भी पुट है। कहानी मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ती है तथा श्रोताओं को आद्योपांत बाँधे रहती है।
संगोष्ठी की मुख्य अतिथि ल्यूदमिला खोखलोवा ने दोनों कहानियों के भाव-पक्ष और कला-पक्ष पर बारीक़ी से प्रकाश डाला। उन्होंने दोनों अनुवादकों के अनुवाद-कौशल की सराहना करते हुए कहा कि चेखव की कहानियों में सांसारिक जीवन का जीवंत विवरण मिलता है तथा उनके द्वारा वर्णित सांसारिक जीवन एवं इसके प्रति मनुष्य की प्रलोभन-प्रवृत्ति आकर्षक होती है। संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री आलोक श्रीवास्तव ने भी ऋचा और प्रगति की अनुवाद-कला की प्रशंसा करते हुए कहा कि चेखव की कहानियों में आज से कोई 120 वर्षों पहले के संसार और जीवन का चित्रण मिलता है। यद्यपि उन्होंने कोई उपन्यास नहीं लिखा तथापि उनकी सारी कहानियाँ एक उपन्यास के ही विस्तार जैसी लगती हैं। उनकी कहानियों में पात्रों, कथा-वस्तु, पृष्ठभूमि आदि के सम्बन्ध में बड़ी विविधता है। उनका व्यक्तित्व और सृजन-संसार सचमुच अत्यंत विराट है।
संगोष्ठी के टिप्पणीकारों में अन्यों के साथ-साथ, सुश्री दिव्या माथुर और सुश्री राजश्री शर्मा मुख्य थीं। सुश्री शर्मा ने बताया कि चेखव के लेखन में हमें दुःख, पीड़ा, अतृप्ति और अधूरापन मिलता है। संगोष्ठी के समापन पर सुश्री ऋचा ने मुख्य अतिथि, अध्यक्ष तथा श्रोता-दर्शकों को तहे-दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच पर उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं में तोमियो मिज़ोकॉमी, डॉ. जयशंकर यादव, अनूप भार्गव, अरुणा अजितसरिया, डॉ. महादेव कोलूर, डॉ. जगदीश व्योम, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र, आशा बर्मन, जय वर्मा, अल्पना दास, स्मिता श्रीवास्तव आदि मुख्य थे। संगोष्ठी के ऑनलाइन प्रसारण में तकनीकी सहयोग प्रदान किया श्री कृष्ण कुमार ने।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
अंतोन चेखव के कथा-साहित्य पर एक संगोष्ठी
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