अनगिन बार पिसा है सूरज
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’9 Jun 2017
काल-चक्र की
चक्र-नेमि में
अनगिन बार पिसा है सूरज
रात और दिन
के टुकड़ों के
चित्रांकन का सर्ग सजाया
केंद्र-बिंदु बन
त्रिज्या खींचा
ग्रह-उपग्रह का वर्ग बनाया
धूप-छाँह के
आघूर्णन में
बनकर जाँत घिसा है सूरज
धरती को वह
दिया रात-दिन
दिया चाँद को अपनी छाया
तारे को दे
रात सुहानी
छाया-गणित अलग समझाया
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
गणना एक दिशा है सूरज
नभ-मंडल का
वह है राजा
आसमान का तप्त हिमालय
किरण-पुंज है
शक्ति-स्रोत का
पूजनीय यह शिवम शिवालय
अपने पथ से
हुआ न विचलित
अब तक नहीं रिसा है सूरज
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