बहुत मज़ा आता है
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता संजीव ठाकुर1 Oct 2019
जाड़े की गुनगुनी धूप में
पैर पसारे लेटे
या फिर खाते मूँगफली के
दाने बैठे–बैठे
बहुत मज़ा आता है भाई ,
बहुत मज़ा आता है!
मक्के की रोटी पर थोड़ा
साग सरों का लेकर
या फिर गज़क करारे वाले
थोड़ा–थोड़ा खाकर
बहुत मज़ा आता है भाई
बहुत मज़ा आता है!
औ अलाव के चारों ओर
बैठे गप–शप करते
बुद्धन काका के क़िस्से
लंबे–लंबे सुनते
बहुत मज़ा आता है भाई
बहुत मज़ा आता है!
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