चौपाया
कथा साहित्य | लघुकथा बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु'1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सबको मालूम था, आज पिताजी रिटायर हो गए। शाम को नाश्ते पर उनके बुलाने से सभी अपने ख़र्च में कटौती की आशंका से मौन, पिताजी को घेरकर बैठ गए।
"तुम लोगों को किन परिस्थितियों में पढ़ाया, शादी की . . ." वाक्य बीच में ही छोड़कर सबके चेहरे पर एक नज़र डालकर फिर कहा, "पेंशन मिलेगी ही, जीपीएफ़ की राशि भी मिलेगी। मैं सोचता हूँ, अपना घर हो तो भारी-भरकम किराए से मुक्ति मिले और ख़र्च भी कुछ मेंटेन हो जाए।"
"मैंने एमबीए किया है, कभी तो अच्छी नौकरी मिलेगी ही। भविष्य को देखकर क्यों न किसी पॉश कॉलोनी में घर ख़रीदा जाए," सबसे बड़े बेटे रमेश ने सुझाव दिया।
"पॉश कॉलोनी तो मुर्दों की कॉलोनी लगती है। सभी तने-तने से, अपने में मस्त, मौन रहते हैं। घर तो शिक्षक कॉलोनी में होना चाहिए। मेरी सामाजिक विज्ञान में पीएचडी यही कहती है। नौकरी मिलेगी तो छात्रों को भी यही समझाऊँगा," मँझले बेटे सुरेश ने अपना पक्ष रखा।
"मेरे विचार में विवेकानंद कॉलोनी में हमें घर ख़रीदना चाहिए, वहाँ सब सुविधाएँ भी हैं। हमें मनमाफ़िक माहौल मिलने से अच्छा भी लगेगा। स्तर भी बना रहेगा," यह महेश का कहना था, जिसने संस्कृत में एमए किया था।
"यहीं आस-पास घर की तलाश करनी चाहिए। नई जगह में एडजस्ट होने में समय लगेगा और हम तनाव में भी रहेंगे," हिंदी में पीएचडी कर रहे सबसे छोटे बेटे दिनेश ने कहा।
रामनाथ जी किसी एक के प्रस्ताव पर सहमत कराने में असफल रहे। बहुएँ भी अपने-अपने पति के पक्ष में खड़ी नज़र आयीं। उस रात ठीक से नींद नहीं आई। सुबह-सुबह सपना देखा, वे झक्क सफ़ेद गौ माता में परिवर्तित हो गए हैं, थन तो भरे हैं पर सभी बछड़े टाँगें अपनी-अपनी ओर खींचने में मस्त हैं।
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