चूहे लाल
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभाकर पाण्डेय18 Apr 2009
चूहे लाल, चूहे लाल
बन ठनकर निकले ससुराल
रास्ते में म्याऊँ मिल गई
बुरा हुआ अब उनका हाल
म्याऊँ बोली डरो नहीं तुम
बेहिचक जाओ मेरे लाल
अभी मुझे भूख नहीं है
तेरी बीबी को खा आई हूँ आज।
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