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दोपहर का भोजन

सोनू आज रोज की अपेक्षा पहले स्कूल आ गया था। उसने अपनी विधवा माँ को बगल वाली आंटी से बात करते सुन लिया था कि आज घर में अन्न का एक दाना नहीं है। बच्चे क्या खाकर स्कूल जाएँगे। दिन-रात खटकर भी दो वक़्त के भोजन का इंतज़ाम नहीं कर पाती हूँ। अब सोनू को स्कूल में मिलने वाले दोपहर के भोजन की आशा थी। वह स्कूल सबसे पहले पहुँच गया और वहाँ किसी को न पाकर डर सा गया कि कहीं ऐसा न हो कि आज स्कूल बंद हो। आमतौर पर स्कूल बंद होने की खुशी सबसे अधिक बच्चों को होती है, पर न जाने क्यों आज सोनू स्कूल बंद होने की संभावना से निराश हो गया था। धीरे-धीरे सभी बच्चे, अध्यापक और भोजन बनाने वाले आने लगे। एक तरफ़ सुबह की प्रार्थना और दूसरी तरफ़ खाना बनाने की तैयारी होने लगी। हाथ जोड़े ‘वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जावें’, का उच्चारण करते हुए सोनू रसोईं घर की तरफ़ ताक रहा था मानो बनते भोजन को देखकर ही उसको शक्ति मिल रही हो। और सोच रहा था कि आज तो खिचड़ी बनने वाली है, जिसमें आलू के साथ-साथ गोभी और मटर भी पड़ेंगें। कितने दिन हो गए उसे घर में सब्जी देखे। कक्षाएँ शुरू हो गईं पर सोनू का ध्यान भोजन की तरफ़ ही था मानो भूख कई गुना बढ़ गई हो। भोजन की खुशबू से मुँह में पानी आ जाता था। भोजन तैयार हो जाने के बाद खाने का आदेश मिल गया था। खाने की थाली बच्चे घर से ही लाते थे। सोनू पंक्ति में सबसे पहले बैठ गया। अब भूख पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था। वह कल्पना कर रहा था कि भोजन मिलते ही बिना इंतज़ार किए खाने लगेगा। उसकी थाली में एक करछुल खिचड़ी परोसी गई। उधर दूसरी करछुल निकलने वाली थी इधर सोनू खिचड़ी का निवाला मुँह में डालने ही वाला था कि अचानक आवाज़ आई "अरे रुको, खाओ मत।" खिचड़ी में मरी छिपकली पाई गई और सारा खाना फेंकना पड़ा। खिचड़ी का निवाला उसके मुँह तक जाते-जाते रह गया। उस दिन सोनू को भोजन तो नसीब नहीं हुआ पर उसकी आँखों में पानी ज़रूर आ गया।

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