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कौन हो तुम

कैसे बताऊँ  तुम कौन हो मेरे लीए।
कैसे समझाऊँ तुम क्या हो मेरे लिए।
बताऊँ तो अल्फ़ाज़ों की अल्पज्ञता है ,
समझो तो वक़्त का पहरा हो मेरे लिए।
 
मेरी उक्ति हो तुम, लिखी गयी पंक्ति हो।
वश अनुराग की अंदरूनी, अनन्त शक्ति हो।
तेरी रिआयत  का, वात्सल्य - देवालय।
इश्क़िया-मस्जिद जिसकी मात्र भक्ति हो।
 
तेरे इश्क़ के रौब ने, जब ख़ामोश किया।
मैं ख़ुद के मद में ख़ुद को मदहोश किया
ज़माने ने कई कयास लगाये मेरे लफ़्ज़ों के
मैंने जब बिसूर किरदारों को ख़ामोश किया।
 
चाहता हूँ अधूरेपन को आज भी अंजाम दूँ।
इश्क़ जो किया था हमने, उसे भी नाम दूँ।
पल-पल रीझता है ये दिल जब तेरे नाम का
ज़िक्र हो, सोचता हूँ मरहम को तेरा नाम दूँ।
 
आज भी बाट जोहता है दिल मेरा तेरे आने का।
ठहरे थे जिस राह में हम, उसे फिर चलाने का
वक़्त का एक सदोष पहर, लेकिन आज भी है
मनोरथ है हर क्षण, फिर वही इश्क़ सजाने का।

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