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ख़ैरियत का ब्यौरा

बहुत ज़्यादा की तो
उम्मीद भी नहीं
बस इतना ही
बहुत है 
कभी कभी यूँ ही
बेसाख़्ता पूछ लेना
"कैसी हो" में छुपा
संवेदनाओं का 
उमड़ता सैलाब
ढेरों असमंजस के साथ
समस्याओं के पहाड़ों
का बोझ जो 
सुब्ह ता शाम 
दिल दिमाग़ पे
पूरी शिद्दत से तारी है
के मकड़जाल को
तार तार करता
उलझनों के अंतहीन
सिलसिलों को
सिरे से ख़ारिज  
करता हुआ
अंतस के किसी
शफ़्फ़ाक़ कोने
में पनाह लेता है
मैं भी "ठीक हूँ"
के छद्म आवरण में
ख़ुद को पूरी तरह
छुपा लेती हूँ
तुम्हारे सवाल का
बस जवाब भी
यही तो होना था
"ठीक हूँ" के पस ए मंज़र
कितने क़िस्से  
कितनी कहानी
आँसुओं की तहरीरों
में धुँधली हो चुकी 
दर्द की इबारतें ही इबारतें
पढ़ सकते हो?
नहीं ना... 
सुन सकते हो
मेरे अतीत का रुदन
नहीं ना...
गिन सकते हो 
उन फूलों को 
जो हर बहार में
मुझे ख़ुशियों की
रंगीन सौग़ात दे जाते थे
नहीं ना
सुन सकते हो
हर वो राग
जो वक़्त के थाट से 
उत्पन्न हुआ
नहीं ना
फिर क्या जवाब दूँ
कैसी हूँ? 
बस इतना ही जानो
ठीक हूँ मैं
ठीक ही हूँ मैं

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