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मैं रावण हूँ

युद्ध समाप्त हो चुका था। मन्दोदरी आदि रानियों को रावण के प्राणान्त की सूचना भेजी जा चुकी थी। ऐसा पहला युद्ध जिसमें दोनों दल अपने-अपने उद्देश्य में सफल हो चुके थे, अर्थात दोनों दलों को विजय प्राप्त हो चुकी थी।

किन्तु भगवान श्री राम का मन भारी था, जबकि उन्होंने अभी-अभी निशाचर वृत्ति का समूल नाश किया था। उन्हें भीतर-भीतर कुछ ऐसा लग रहा था जिसे परिभाषित और व्यक्त करने में वे स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहे थे। अवतार का उद्देश्य पूर्ण अवश्य हो गया था किन्तु उन्हें यह अवतार बहुत भारी जान पड़ रहा था। उनके सारे अवतारों की सारी जीतें एक साथ उन पर हँसती और चिढ़ाती सी जान पड़ रही थीं।

रावण का मृत शरीर जीवित रावण से अधिक कष्टकारी लग रहा था उन्हें। रावण के सारे अवगुणों का अंत उसके साथ तो हो चुका था किन्तु साथ में वे सारे गुण भी अनजाने में मृत्यु का वरण कर चुके थे, जो कदाचित किसी भी राजा में दुर्लभ हैं।

उन्हें कभी-कभी लगता कि रावण उनकी तरफ़ देखकर व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कुरा रहा है, मानो कह रहा हो, "देखो राम! मैंने ब्रह्म को अपनी उँगलियों पर कैसा नचाया। निराकार को सगुण रूप धारण कर दर-दर भटकाया। विवश कर दिया स्वयं तक आने के लिए और असहाय कर दिया अपनी आसुरी पूजन पद्धति को मान्यता देने के लिए। अब बताओ विभीषण की पद्धति और मेरी पद्धति में कौन सी श्रेष्ठ है? एक मैं जो आपके वाणों के विमान पर बैठकर परम सत्ता तक पहुँचा, दूसरा वो, जिसे बंधु-बांधवों के शवों पर रखा नश्वर सिंहासन मिला।

हे राम! मुझे बताओ तो मैंने मानवता के साथ कहाँ पर अन्याय किया? क्या मैंने कुंभज, याज्ञवल्कि, वशिष्ठ, विश्वामित्र जैसे ऋषियों पर प्राण घातक हमले किये? मैंने उन्हीं ऋषियों को परेशान किया जो इसके पात्र थे। सप्तऋषियों के रक्त का परिणाम है पुत्री सीता। मारीच और सुबाहु को मैंने ही भेजा था आपकी शक्ति परीक्षण के लिए और मैं स्वयं आया था जनकपुरी यह सुनिश्चित कराने कि हे ब्रह्म, तुम देख लो अपने शत्रु का स्वरूप और समझ लो अपने गुरु विश्वामित्र से मेरी शक्ति।

कभी सोचना जब मैं कैलाश पर्वत सहित भूतभावन भगवान शिव को आदि शक्ति सहित उठा सकता हूँ तो पिनाक उठाना मेरे लिए असंभव था क्या? सीता का पिता होना या पुत्र होना मुझे ज़्यादा भाया, बजाय पति होने के।

हाँ तुम पूछना, कभी पूछना सीता से क्या उसने मेरी आँखों में वासना लेश मात्र भी कभी देखी थी? तुम्हारे प्रण की रक्षा करते हुए ही मैंने उसे अशोक वाटिका में रखा महल में नहीं।

जिस व्यक्ति का गुप्तचर तंत्र अयोध्या तक हो उसे क्या लंका में चुपके से घुसे हनुमान की सूचना न मिली होगी? बस इसीलिए मैं उस रात सीता से विवाह का दबाव डालने गया था। अशोक वाटिका में सीता से हुआ संवाद दरअसल मेरा सन्देश था आप के लिए हनुमान के माध्यम से। यह भी पूछना सीता से कि मैंने उनकी रक्षा के लिए लंका की सभी राम भक्त नारियों को क्यों नियुक्त किया था?

ये सच है कि आपके पिता देवासुर संग्राम में देवताओं की ओर से युद्ध करते थे, चक्रवर्ती थे, किन्तु यह भी उतना ही सच है कि रावण अयोध्या पर एक ही दिन में विजय प्राप्त कर सकता था, और जनकपुरी पर आधे पहर में। किन्तु मैंने सभी असुरों को समेट कर सात योजन समुद्र पार अपना राज्य इसलिए स्थापित किया ताकि मानवता प्रभावित न हो।

सभी निशाचरों और अपने पूरे कुटुंब को मैंने मोक्ष दिलाने के लिए आपके हाथों मरवाया है, आपने मारा नहीं है। हे राम! क्या आपने कभी सुना है कि कोई राजा अपनी प्रजा के मोक्ष तक की व्यवस्था करता है। मैंने की, क्योंकि मैं रावण हूँ।"

स्वार्थी देवता राम पर आकाश से पुष्प वर्षा कर रहे थे किन्तु राम को रावण का वध भीतर से कचोट रहा था। मन्दोदरी आदि रानियों का रुदन उन्हें उद्वेलित कर रहा था। आज कंधे पर रखा सारंग कुछ ज़्यादा ही भारी जान पड़ रहा था।

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