काश मै भी कुत्ता होता..!
कथा साहित्य | लघुकथा अवधेश कुमार झा4 Mar 2016
मई - जून की चिलचिलाती हुई धुप, वो सुबह से रिक्शा खींचते-खींचते थक चुका था। सुस्ताने के लिए किसी बड़े मकान की छाँव में बैठ गया। थोड़ी ही देर में, अंदर से एक पालतू कुत्ता उसे देखकर भौंकने लगा। कुछ देर पश्चात उस मकान से एक महिला निकली। उसे देखकर फटकारते हुए बोली, "जाओ यहाँ से, देखते नहीं तुम्हे देखकर मेरा डॉगी कितना भौंक रहा है? कहीं भौंकते-भौंकते उसका गला सूख गया तो? चलो भागो यहाँ से!"
वह उठकर वहाँ से चल दिया। और मन ही मन कहने लगा, "काश मै भी कुत्ता होता!"
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