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मेरी माँ (नीलेश मालवीय ’नीलकंठ’)

मेरी माँ मेरा सुख है, 
चैन है, सम्मान है,
उसका आँचल 
मेरे लिए जन्नत के समान है,
उनका आशीर्वाद इतना महान है,
मेरी पर्वत सी परेशानियाँ 
तिनके समान हैं,
वह मेरी माँ है...


उनकी चूड़ी की खनक में वो गीत है,
जिसके आगे फीका सब संगीत है,
जो मेरे अज़ीज़ों में सबसे ख़ास है,
जिससे मेरी ज़िंदगी की शुरुआत है,
वह मेरी माँ है...


दुआओं में सिर्फ़
मेरा ही नाम जानती है,
डाँट कर मनाने के 
बहाने जानती है,
जो धूप में छाँव और 
दरिया में नाव बनती है,
जो प्यास में पानी, 
तो मुसीबत में झाँसी की रानी बनती है,
वह मेरी माँ है....


मुझे आज भी याद है, 
माँ का वो रुआँसा चेहरा,
जब घर के खाने से नहीं 
भरता, पूरा पेट मेरा,
ख़ुशी भरी आवाज़ में मुझे 
लोरी सुना कर सुलाती,
लेकिन खुद भूखी सो रही है 
यह कभी ना बताती,
वह मेरी माँ है....

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