अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

परिवर्तन

नौ वर्षीय विनीत चौथी कक्षा में पढ़ता था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था और अधिक लाड-प्यार के कारण वह बहुत ज़िद्दी व शरारती बन गया था। यहाँ तक कि वह अपने माता-पिता की बातें भी नहीं मानता था। उसकी कक्षा के सहपाठी भी उसके साथ खेलना तो दूर, बात करने में भी कतराते थे। लेकिन विनीत भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था। वह रोज़ कक्षा में किसी बच्चे की किताब फाड़ देता, किसी की पेन्सिल तोड़ देता या रबर फेंक देता था। उसकी कक्षा अघ्यापिका भी उसे कई बार समझा चुकी थी लेकिन उसके कानों पर ज़रा भी जूँ न रेंगती।

एक दिन की बात है। उसकी कक्षा के मोहन, सोहन, राकेश और राजेश आधी छुट्टी में मैदान में क्रिकेट खेल रहे थे। उसी वक्त विनीत भी वहाँ आ पहुँचा और उसने उनकी गेंद उठा ली। जब उन्होंने गेंद माँगी, तो वह गेंद लेकर मैदान में दौड़ने लगा। वह भागते-भागते स्कूल की दीवार के कोने में जा पहुँचा। दीवार के साथ ही पीपल का एक बड़ा पेड़ था, जिस पर मधुमक्खियों का छत्ता लगा। अचानक विनीत की नज़र उस छत्ते पर पड़ी और उसे शरारत सूझी। उसने गेंद छत्ते पर मारी और छत्ता टूट गया। छत्ते के टूटते ही उसमें से बहुत-सी मधुमक्खियाँ निकलीं और उन्होंने उस पर हमला कर दिया। मधुमक्खियों ने उसे बुरी तरह काटा। विनीत रोता-चिल्लाता हुआ मैदान में भाग रहा था। उसकी चीख सुनकर मोहन और सोहन उसके पास गए। विनीत को मधुमक्खियों ने मुँह और हाथों पर बहुत काटा था। वह मैदान के बीच बैठकर रो रहा था। तभी मोहन दौड़ता हुआ कक्षा अध्यापिका के पास गया और सारी बात बताई। अध्यापिका और स्कूल का चपरासी तुरंत वहाँ पहुँचे और वे उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले गए। विनीत का पूरा मुँह और हाथ सूजकर लाल हो गया था। अध्यापिका ने उसके घर में फोन कर दिया था और कुछ देर में उसके माता-पिता भी वहाँ आ गए। डॉक्टर ने विनीत के पिता को दवाइयाँ देते हुए कहा कि इसे एक सप्ताह आराम की ज़रूरत है।

तीन-चार दिन के बाद कक्षा अध्यापिका के साथ मोहन, सोहन और कक्षा के कुछ छात्र विनीत के घर गए। अध्यापिका ने विनीत को आर्शीवाद देते हुए कहा कि तुम अब जल्दी ही ठीक हो जाओंगे। उसकी कक्षा के सहपाठियों ने उसे एक फूलों का गुलदस्ता दिया। विनीत को यह सब देखकर बहुत ख़ुशी हुई, लेकिन उसे मन-ही-मन पछतावा भी हो रहा था। वह सोच रहा था कि जिन्हें वह तंग किया करता था, वे सब उसे देखने आए थे। जब कुछ दिनों के बाद विनीत स्कूल आया तो वह अब पूरी तरह बदल चुका था। उसने कक्षा में मन लगाकर पढ़ाई की और सभी सहपाठियों से प्रेम से बातें कीं। आधी छुट्टी के समय वह मोहन, सोहन, राकेश और राजेश के पास गया और उन्हें एक नई गेंद दी। मोहन ने विनीत से कहा कि आज से तुम भी हमारे साथ खेलोगे। वे सब ख़ुशी-ख़ुशी मैदान की ओर चले गए।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

आँगन की चिड़िया  
|

बाल कहानी (स्तर 3) "चीं चीं चीं चीं" …

आसमानी आफ़त
|

 बंटी बंदर ने घबराएं हुए बंदरों से…

आख़िरी सलाम
|

 अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

लघुकथा

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

बाल साहित्य कहानी

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं