अम्मू भाई का छक्का
बाल साहित्य | बाल साहित्य कहानी प्रभुदयाल श्रीवास्तव4 Feb 2019
"दादाजी मैं छक्का मारूँगा," अम्मू भाई ने क्रिकेट बैट लहराते हुये मुझसे कहा। वह एक हाथ में बाल लिये था, बोला, "प्लीज़ बाँलिंग करो न दादाजी।"
"अरे! अरे! इस कमरे में छक्का, नहीं नहीं यहाँ थोड़े ही छक्का मारा जाता है कमरे में कहीं क्रिकेट खेलते हैं क्या? यहाँ टी.वी. रखा है, फ्रिज है, कूलर रखा है, छक्के से ये समान टूट जायेगा," मैंने उसे समझाते हुये कहा।
"तो फिर पोर्च में खेलें? वहाँ भी तो छक्का मार सकते हैं न?"
"वहाँ भी नहीं।"
"क्यों दादाजी वहाँ तो टीवी नहीं रखा," उसने बड़ी उत्सुकता से मेरी ओर देखा।
"वहाँ पर कार रखी है, तुम्हारे पापा की बाईक रखी है और मेरी टी.वी.एस. रखी है, गाड़ियाँ खराब हो जायेंगी और उनके दर्पण टूट जायेंगे," मैंने उसे समझाने की कोशिश की।
"ये दर्पण…… क्या है दादाजी?" उसने ऐसे पूछा जैसे मैंने किसी जंगली खूंखार जानवर का नाम ले दिया हो।
"अरे भाई मिरर हैं न, कार में भी लगे हैं और बाईक में भी," मैंने कहा।
"तो ऐसा बोलो न, आप तो क्या, दर्पण, वर्पण, जाने किस भाषा में बात करते हैं। क्या आपको हिंदी नहीं आती?"
मैं उसकी बातों का रस ले रहा था, "बेटा मेरी हिंदी ज़रा ठीक नहीं है न।"
"ठीक है तो मैं ग्राउंड में जाकर खेलता हूँ, वहीं चौके और छक्के मारूँगा," वह बाहर भागने लगा।
"बेटे ग्राउंड तो बड़े बच्चे खेलते हैं, तुम अभी बहुत छोटे हो," मैंने उसे पकड़ा और घर के भीतर ले आया। वह उदास होकर वहीं बैठ गया।
उसके बाद मैं नहाने के लिये बाथ रूम में चला गया। थोड़ी ही देर में जैसे ही बाहर आया तो मैंने देखा कि अम्मू टीवी के सामने टूटा हुआ फ्लावर पाट लेकर सहमा सा बैठा है और एक हाथ से टूटे हुये टुकड़े बटोरने का प्रयास कर रहा है। मुझे देखते ही बोला, "दादाजी ये …देखो…. !"
"ये क्या?" मैं समझा शायद उसने कमरे ही धोनी बनने का प्रयास कर लिया है और टी.वी. का राम नाम सत्य कर दिया है। किंतु टी.वी. सलामत थी, तो मैंने चैन की साँस ली।
"क्या हुआ? क्या तोड़ा?" मैंने थोड़ा ज़ोर से पूछा तो वह सिसकने लगा। और हाथ में पकड़े टूटे फ्लावर पाट की ओर इशारा करने लगा। मेरी नज़र सामने टीवी के ऊपर की खाली जगह पड़ी तो समझ गया की भाई साहब ने फ्लावर पाट को श्मशान भेजने की तैयारी कर दी है।
"क्या आपने यहाँ छक्का मार दिया?" मैंने ज़रा ज़ोर से पूछा तो वह सिसकने लगा।
"पर दादाजी बाल टी.वी. में नहीं लगी है, फ्लावर पाट ही टूटा है," कहकर उस पाट को टेप लगाकर जोड़ने का प्रयास करने लगा। उसके हाथ में कैंची और टेप का रोल था। मैंने उसे धीरे से डाँटा, "मैंने कहा था न कि यहाँ क्रिकेट मत खेलो पर आप नहीं माने। पाट टूट गया न!"
" दादादी मम्मी को मत बताना और दादीजी को भी नहीं बोलना," वह धीरे से बोला।
"क्यों नहीं बोलना जब आपने मेरा कहना नहीं माना तो मैं क्यों… "
"प्लीज़ दादाजी मुझे डाँट पड़ेगी न।" मेरी बात पूर्ण होने से पहले ही वह बोल पड़ा।
"ठीक है नहीं बोलूँगा पर प्रॉमिस करो कि आगे से कमरों के भीतर क्रिकेट नहीं खेलोगे," मैंने समझाइश भरे स्वर में कहा।
"प्रॉमिस दादाजी, मदर प्रॉमिस अब कभी कमरे में छक्का नहीं मारूँगा," बड़े आत्म विश्वास से वह बोला। शाम को जब लोगों ने फ्लावर पाट टूटा देखा तो प्रश्नों की झड़ी लग गई किसने तोड़ा कैसे टूटा? मैंने सबको फ्लावर पाट टूटने की सच कहानी सबको बतला दी और यह भी हिदायत दे दी कि अम्मू को कोई न डाँटे और न ही उसे यह बताये कि सबको मालूम पड़ गया है कि बाल लगने से पाट टूटा।
दादी ने हँसकर पूछा, "अमित पाट कैसे टूटा?" तो वह हँसकर बोला दादी टी.वी. थोड़ा सा हिल गया था इससे उस पर रखा पाट गिर गया और टूट गया। उसने सबको यही जबाब दिया मतलब सबसे वह झूठ बोले जा रहा था। जब उसको किसी ने नहीं डाँटा तो उसका डर जाता रहा और वह सामान्य होकर खेलने लगा।
दूसरे दिन जब वापिस आकर मैंने उसे बताया कि छक्का लगने से पाट टूटा है वाली बात मैंने सबको बता दी है तो वह आश्चर्य से देखने लगा, "मुझे तो किसी ने नहीं डाँटा, पर आपने सबको क्यों बताया?"
"इसलिये बताया कि हमें झूठ नहीं बोलना चाहिये। कहते हैं कि झूठ बोलना पाप होता है।"
"पर आपने तो प्रॉमिस किया था कि किसी को नहीं बतायेंगे," वह हँसकर बोला।
"उस समय आप डरे हुये थे, इससे प्रॉमिस कर लिया था। हमेशा सच बोलना चाहिये यदि गलती हो जाये तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिये और आगे से गलती न हो ऐसा प्रण करना चाहिये।"
"ठीक दादाजी आगे से कभी झूठ नहीं बोलूँगा, बड़ों का कहना मानूँगा और कमरे में छक्का भी नहीं मारूँगा बस," इतना कहकर वह छक्का मारने बाहर मैदान में चला गया।
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