चलो पिताजी गाँव चलें हम
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव8 Jan 2019
चलो पिताजी गाँव चलें हम
दादाजी के पास
बहुत दिनों से दादाजी का
नहीं मिला है साथ
वरद हस्त सिर पर हो उनका
भीतर मेरे साध
पता नहीं क्यों हृदय व्यथित है
मन है बहुत उदास
चलो पिताजी गाँव चलें हम
दादाजी के पास
दादी के हाथों की रोटी
का आ जाता ख़्याल
लकड़ी से चूल्हे पर पकती
सोंधी-सोंधी दाल
अन्नपूर्णा दादी माँ में
है देवी का वास
चलो पिताजी गाँव चलें हम
दादाजी के पास
घर के पिछवाड़े का आँगन
अक्सर आता याद
दादाजी पौधों में देते
रहते पानी खाद
गाँव की मिट्टी से आती
है मीठी उच्छ्वास
चलो पिताजी गाँव चलें हम
दादाजी के पास
जब जब भी हम गाँव गए हैं
मिला ढेर सा प्यार
दादा-दादी, काका-काकी
के मीठे उद्गार
हँसी ठिठोली मस्ती देती
ख़ुशियों का अहसास
चलो पिताजी गाँव चलें हम,
दादाजी के पास
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