अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

औंदू बोला

मैंने एक सपना देखा है,
तुम दिल्ली जाने वाले हो,
किसी बड़े होटल में जाकर,
रसगुल्ले खाने वाले हो।

मैंने सपने में देखा है,
लल्लूजी फिर फेल हो गये,
इसी ख़ुशी में ओले बरसे,
बाहर रेलम ठेल हो गये।

मैंने सपने में देखा है,
मुन्नी की अम्मा आई है,
चाकलेट के पूरे पेकिट,
अपने साथ पाँच लाई है।

मैंने सपने में देखा है,
तुमने डुबकी एक लगाई,
और नदी में कूद-कूद कर,
उछल-उछल कर धूम मचाई।

मैंने सपने में देखा है,
तुम मेले में घूम रहे हो,
अच्छे-अच्छे फुग्गे लेकर,
बड़े मज़े से चूम रहे हो।

मैंने सपने में देखा है,
तुम बल्ले से खेल रहे हो
चौके वाली गेंद दौड़कर,
कूद-कूद कर झेल रहे हो।

मैंने सपने में देखा है,
भ्रष्टाचार समापन पर है,
बेईमानी सब हवा हो गई,
सच्चाई सिंहासन पर है।

औंदू बोला दादाजी से,
यों इतनी गप्पें देते हो,
किसी किराने की दुकान से,
चाकलेट क्यों न लेते हो।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

6 बाल गीत
|

१ गुड़िया रानी, गुड़िया रानी,  तू क्यों…

 चन्दा मामा
|

सुन्दर सा है चन्दा मामा। सब बच्चों का प्यारा…

 हिमपात
|

ऊँचे पर्वत पर हम आए। मन में हैं ख़ुशियाँ…

अंगद जैसा
|

अ आ इ ई पर कविता अ अनार का बोला था। आम पेड़…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कविता

आत्मकथा

किशोर साहित्य नाटक

बाल साहित्य कविता

बाल साहित्य कहानी

किशोर साहित्य कहानी

बाल साहित्य नाटक

कविता

लघुकथा

आप-बीती

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं