बातों का बाज़ार गरम है
बाल साहित्य | किशोर साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव15 Jul 2024 (अंक: 257, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
पर्यावरण प्रदूषण की अब,
बातों का बाज़ार गरम है।
हम-तुम-सबको, बात पता है
पर्यावरण प्रदूषण फैला।
जल-जंगल-ज़मीन अब मैली,
वातावरण हुआ है मैला।
बिना रुके फिर भी धरती पर
ढाया जाता रोज़ सितम है।
चौपहिया, दो पहिया वाहन,
बने प्रदूषण के हरकारे।
मिलें, कलें भी बाँट रहे हैं,
नभ में ज़हरीले गुब्बारे।
पर्यावरण प्रदूषण होगा,
बोलो कब! क्या! कभी ख़त्म है?
विज्ञापन, अख़बारों वाले,
पर्यावरण बचाते दिखते।
मिटे किस तरह अधम प्रदूषण,
नए उपाय काग़ज़ पर घिसते।
लेकिन साफ़-साफ़ दिखता है,
हल्ला ज़्यादा कोशिश कम है।
ज्यों-ज्यों बढ़ती गईं दवाएँ,
बढ़ता गया मर्ज़ भी उतना।
ढेर उपाय किये हैं लेकिन,
दिखता नहीं प्रदूषण छँटना।
वादे होते रहे निरंतर,
नहीं रहा वादों में दम है।
केवल तंत्र नहीं कर सकता,
है, विनाश इस बीमारी का।
काम नहीं केवल नेता का,
काम नहीं बस, अधिकारी का।
आगे बढ़कर हमें लगाना,
ही होगा अपना दम-ख़म है।
वृक्षरोपण समय-समय पर,
अब हो ये ही लक्ष्य हमारा।
गलियाँ झाड़ें, सड़क बुहारें,
पॉलीथिन से करें किनारा।
ज़रा सीख लें पैदल चलना,
वाहन पर अब चलना कम है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
आत्मकथा
किशोर साहित्य नाटक
बाल साहित्य कविता
- अंगद जैसा
- अच्छे दिन
- अब मत चला कुल्हाड़ी
- अम्मा को अब भी है याद
- अम्मू भाई
- आई कुल्फी
- आदत ज़रा सुधारो ना
- आधी रात बीत गई
- एक टमाटर
- औंदू बोला
- करतूत राम की
- कुत्ते और गीदड़
- कूकर माने कुत्ता
- गौरैया तू नाच दिखा
- चलना है अबकी बेर तुम्हें
- चलो पिताजी गाँव चलें हम
- चाचा कहते
- जन मन गण का गान
- जन्म दिवस पर
- जब नाना ने रटवाया था
- धूप उड़ गई
- नन्ही-नन्ही बूँदें
- पिकनिक
- पूछ रही क्यों बिटिया रूठी
- बादल भैया ता-ता थैया
- बिल्ली
- बिल्ली की दुआएँ
- बेटी
- भैंस मिली छिंदवाड़े में
- भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
- भैयाजी को अच्छी लगती
- मान लिया लोहा सूरज ने
- मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
- मेरी दीदी
- रोटी कहाँ छुपाई
- व्यस्त बहुत हैं दादीजी
- सड़क बना दो अंकलजी
- हुई पेंसिल दीदी ग़ुस्सा
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य कहानी
बाल साहित्य नाटक
कविता
लघुकथा
आप-बीती
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं