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बातों का बाज़ार गरम है

 

पर्यावरण प्रदूषण की अब, 
बातों का बाज़ार गरम है। 
 
हम-तुम-सबको, बात पता है
पर्यावरण प्रदूषण फैला। 
जल-जंगल-ज़मीन अब मैली, 
वातावरण हुआ है मैला। 
बिना रुके फिर भी धरती पर
ढाया जाता रोज़ सितम है। 
 
चौपहिया, दो पहिया वाहन, 
बने प्रदूषण के हरकारे। 
मिलें, कलें भी बाँट रहे हैं, 
नभ में ज़हरीले गुब्बारे। 
पर्यावरण प्रदूषण होगा, 
बोलो कब! क्या! कभी ख़त्म है? 
 
विज्ञापन, अख़बारों वाले, 
पर्यावरण बचाते दिखते। 
मिटे किस तरह अधम प्रदूषण, 
नए उपाय काग़ज़ पर घिसते। 
लेकिन साफ़-साफ़ दिखता है, 
हल्ला ज़्यादा कोशिश कम है। 
 
ज्यों-ज्यों बढ़ती गईं दवाएँ, 
बढ़ता गया मर्ज़ भी उतना। 
ढेर उपाय किये हैं लेकिन, 
दिखता नहीं प्रदूषण छँटना। 
वादे होते रहे निरंतर, 
नहीं रहा वादों में दम है। 
 
केवल तंत्र नहीं कर सकता, 
है, विनाश इस बीमारी का। 
काम नहीं केवल नेता का, 
काम नहीं बस, अधिकारी का। 
आगे बढ़कर हमें लगाना, 
ही होगा अपना दम-ख़म है। 
 
वृक्षरोपण समय-समय पर, 
अब हो ये ही लक्ष्य हमारा। 
गलियाँ झाड़ें, सड़क बुहारें, 
पॉलीथिन से करें किनारा। 
ज़रा सीख लें पैदल चलना, 
वाहन पर अब चलना कम है। 

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