सरकारी फंड
कथा साहित्य | लघुकथा प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Mar 2019
मैं सरकारी दौरे पर जा रहा था। एक सहयोगी भी साथ में था। बस में बैठे-बैठे हम लोग चर्चा कर रहे थे कि इस साल लक्ष्य में दिये काम पूरे नहीं हो पायेंगे क्योंकि सरकारी फंड समाप्त हो चुका है। बस में सफाई करने वाला कर्मचारी झाड़ू लगा रहा था। सारा कूड़ा-कचरा एकत्रित कर वह बस के दरवाज़े पर फुट बोर्ड पर रखकर चलता बना। बहुत देर तक जब वह वापिस नहीं आया तो हम लोग बस से उतरकर उसे तलाशने लगे। दूसरी बस से उतरते देख हमने उससे पूछा,
"कचरा फुटबोर्ड पर क्यों छोड़ दिया मुसाफिरों को चढ़ने उतरने में परेशानी हो रही है?"
"बाबूजी फंड ख़तम हो गया है जब फंड आयेगा तो कचरा उठा लेंगे। तीन माह से वेतन नहीं मिला है, जब सरकारी फंड समाप्त हो जाने पर आप लोग काम बंद कर देते हैं तो हमारा फंड समाप्त हो जाने पर मैं क्यों काम करूँ," इतना कहकर वह चल दिया।
मैं सोचने लगा बात तो सोलह आने सच है क्यों सरकारी फंड समाप्त हो जाता है साल समाप्त होने के पहले?... क्यों?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
आत्मकथा
किशोर साहित्य नाटक
बाल साहित्य कविता
- अंगद जैसा
- अच्छे दिन
- अब मत चला कुल्हाड़ी
- अम्मा को अब भी है याद
- अम्मू भाई
- आई कुल्फी
- आदत ज़रा सुधारो ना
- आधी रात बीत गई
- एक टमाटर
- औंदू बोला
- करतूत राम की
- कुत्ते और गीदड़
- कूकर माने कुत्ता
- गौरैया तू नाच दिखा
- चलना है अबकी बेर तुम्हें
- चलो पिताजी गाँव चलें हम
- चाचा कहते
- जन मन गण का गान
- जन्म दिवस पर
- जब नाना ने रटवाया था
- धूप उड़ गई
- नन्ही-नन्ही बूँदें
- पिकनिक
- पूछ रही क्यों बिटिया रूठी
- बादल भैया ता-ता थैया
- बिल्ली
- बिल्ली की दुआएँ
- बेटी
- भैंस मिली छिंदवाड़े में
- भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
- भैयाजी को अच्छी लगती
- मान लिया लोहा सूरज ने
- मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
- मेरी दीदी
- रोटी कहाँ छुपाई
- व्यस्त बहुत हैं दादीजी
- सड़क बना दो अंकलजी
- हुई पेंसिल दीदी ग़ुस्सा
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य कहानी
बाल साहित्य नाटक
कविता
लघुकथा
आप-बीती
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं