मान लिया लोहा सूरज ने
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव15 May 2019
टिमकी घर से चली बाँधकर,
मुँह पर, सिर पर गमछा।
गरम-गरम लू के सर्राटे,
ताप सहा न जाये।
इंसानों को घर के भीतर,
ए.सी. कूलर भाये।
आग गिराता सूरज सिर पर,
घोड़े पर आ धमका।
इतनी गरमी फिर भी टिमकी,
को ट्यूशन जाना है।
गरम आग के शोले गिरते,
उनसे बच पाना है।
उसे याद है सिर गमछे का,
रिश्ता जनम-जनम का।
कान ढँक लिए, ओढ़ा सिर पर,
आधा मुँह ढँक डाला।
टू व्हीलर पर घर से चल दी,
वीर बहादुर बाला।
मान लिया लोहा सूरज ने,
भी उसकी दम खम का।
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