आदत ज़रा सुधारो ना
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव21 Feb 2019
बात बात पर डाँटो मत अब,
बात बात पर मारो ना।
आदत ठीक नहीं है बापू,
आदत ज़रा सुधारो ना।
बिगड़े हुये अगर हम हैं तो,
समझा भी तो सकते हो।
प्यार जता कर हौले हौले,
पथ भी दिखला सकते हो।
साँप मरे लाठी ना टूटे,
ऐसी राह निकालो ना।
हम बच्चे होते उच्छृंखल,
ज़िद भी थोड़ी करते हैं।
थोड़ी गरमी मिले प्यार की,
बनकर मोम पिघलते हैं।
श्रम के फल होते रसगुल्ले,
बिल्कुल हिम्मत हारो ना।
मीठी बोली, मीठी बातें,
बनकर अमृत झरती हैं।
कड़वाहट के हरे घाव में,
काम दवा का करतीं हैं।
राधा बिटिया मोहन बेटा,
कहकर ज़रा पुकारो ना।
हम तो हैं मिट्टी के लौंदे,
जैसा चाहो ढलवा दें,
बनवा दें चाँदी के सिक्के,
या चमड़े के चलवा दें।
दया प्रेम करुणा ममता की,
शब्दावली उकारो ना।
समर भूमि में एक तरफ तुम,
एक तरफ हम खड़े हुये।
तुम भी अपनी हम भी अपनी,
दोनों अपनी ज़िद पर अड़े हुये।
राम बनों तुम फिर से बापू,
फिर लव कुश से हारो ना।
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