गौरैया तू नाच दिखा
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Feb 2020 (अंक: 149, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
थोड़ी आज कमर मटका,
गौरैया तू नाच दिखा।
याद नहीं कब से ना देखा,
तुझे नाचते मैंने।
तेरे सुस्त हो गए लगता,
अब फ़ुर्तीले डैने।
बहुत दिनों से आई ना क्यों,
दाना-पानी लेने।
आसमान के हाल-चाल की,
कोई सूचना देने।
ना डर, यहाँ नहीं खटका।
गौरैया तू नाच दिखा।
गाँवों के घर में तो भीतर,
कमरे तक आती थी।
बिना डरे ही थाली में से,
दाना खा जाती थी।
और ज़रा से संशय से ही,
फुर्र-फुर्र उड़ जाती।
कभी-कभी कमरे में ही तू,
कत्थक नाच दिखातीं।
आज दिखा दे फिर लटका।
गौरैया तू नाच दिखा।
बिना डरे ही मिल ले मुझसे,
आ जा हाथ मिला ले।
फुर्र-फुर्र उड़ने की विद्या,
मुझको भी सिखला दे।
आसमान के कितने पंछी,
पक्के मित्र तुम्हारे।
मुझे बता दो क्या खाते हैं,
क्या पीते बेचारे।
सच्ची-सच्ची बात बता
गौरैया तू नाच दिखा।
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