नन्ही-नन्ही बूँदें
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Aug 2020 (अंक: 161, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
बादल से आनेवाली हैं,
नन्ही-नन्ही बूँदें।
इंतज़ार कर लो आँगन में,
पता नहीं कब चूदें।
नभ के स्टेशन से डिब्बों
में हो चुकीं रवाना।
भू के स्टेशन पर लगभग,
तय है इनका आना।
बस थोड़ा तो खड़े रहो,
ये अब कूदें तब कूदें।
अभी मज़ा है इन बूँदों का,
चलकर लुत्फ़ उठा लें।
नन्ही-नन्ही गिरें बदन पर,
नाचें मस्त मज़ा लें।
फिर तो इनको तड़-तड़ गिरना,
अपनी आँखें मूँदें।
सावन भादों की बूँदें तो,
बन जातीं सैलाब।
नदिया बन जाती बूँदों से,
भर जाते तालाब।
भड़-भड़ गिरतीं बनी बेशरम,
छप्पर छानी खूदें।
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