जीवन का आनंद
कथा साहित्य | लघुकथा प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Mar 2019
उस दिन चौबेजी बड़े प्रसन्न थे, गुलाब के फूल से खिले-खिले। वे हमारे पड़ोस में ही रहते थे। पिताजी बीमार रहते थे, ऊपर से आर्थिक तंगी भी उन्हें घेरे रहती थी। जब तक यहाँ रहे परेशान ही रहे।
मैंने पूछा, "क्या बात है चौबेजी बहुत प्रसन्न दिख रहे हैं चेहरे पर ये ताजगी....।"
"हाँ सर पिताजी का स्वर्गवास पिछले महीने हो गया है, अब आनंद ही आनंद है।"
मैं सोच रहा था पिताजी का स्वर्गवास और आनंद! आनंद की शायद यही परिभाषा हो।
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