मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Dec 2020 (अंक: 170, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सूट पहनकर, बूट पहनकर,
और लगाकर टाई।
जाना था दफ्तर, मेंढ़क ने,
अपनी बाईक उठाई।
किक पर कूदा उचक- उचककर,
पूरा ज़ोर लगाया।
पर बेचारा मेंढ़क, बाईक,
चालू न कर पाया।
अब तो था लाचार पहुँच वह,
कैसे दफ़्तर पाए।
टर्राने के सिवाय उसे अब,
कुछ भी समझ न आये।
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