सही सोच
कथा साहित्य | लघुकथा प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Mar 2019
चारों अभी भी पक्के दोस्त थे। बचपन से ही सहपाठी रहें हैं इससे स्टेटस की भिन्नता के बावजूद मित्रता बरक़रार थी। दीपक सरकार में बहुत बड़े पद पर था जबकि रामलाल अस्पताल में वार्ड ब्वाय ही बन सका था। मनोज और तीरथ बीच में ही थे न बड़े न छोटे। मध्यम वर्ग में शामिल थे दोनों।
दीपक की बेटी की शादी थी। मनोज दीपक की हैसियत के हिसाब से क़ीमती तोहफ़ा लेकर पहुँचा। इसके उलट तीरथ बिल्कुल साधारण तोहफ़ा दे आया।
दूसरे दिन रामलाल की बेटी का ब्याह था। मनोज तो बिलकुल ही कम क़ीमत का तोहफ़ा लाया परंतु तीरथ ने बहुत ही क़ीमती तोहफ़े लाकर रामलाल को लाकर दिए।
भरे पेट वालों को भोजन कराने से क्या लाभ। भूखे को खिलाओ तो दुआएँ तो मिलेंगीं। मनोज के प्रश्न पर तीरथ का जबाब मनोज को झकझोर गया।
भविष्य में वह भी ऐसा ही करेगा, वह सोच रहा था।
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