एक टमाटर
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
अगर ख़ून थोड़ा भी कम है,
एक टमाटर खाओ रोज़।
दादाजी खाते हैं चटनी,
चाचा खाते भुर्ता।
तंग हो गए इन दोनों के,
पेंट पाजामा कुरता।
कल तक थे गंगू तेली से,
आज हो गए राजा भोज।
लाल टमाटर की तरकारी,
दादी हर दिन खातीं।
फुग्गे जैसी गोल मटोल,
हर दिन होती जातीं।
उमर हुई सौ पार, हुई क्यों?
इस पर अब है जारी खोज।
अम्मा का है हाल निराला,
सूप बनाकर पीतीं।
हुईं साठ के पार अभी भी,
बच्चा बनाकर जीतीं।
हाथ पैर हैं लाल गुल्लका,
मुखड़े पर सिंदूरी ओज।
पापा हर दिन काट काट कर,
नमक लगाकर खाते।
मेंढक जैसे फुदक फुदक कर,
ऊँची कूद लगाते।
उन्हें देखकर डर के मारे,
दूर भागते सारे रोग|
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