बचत
कथा साहित्य | लघुकथा प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Mar 2019
रिक्शा रुका और मिस्टर हेंडसम और मिसेस ब्यूटीफुल बाहर निकले।हेंडसम ने गर्दन ऊंची की कमीज का कालर ठीक किया और पाकिट से कंघी निकालकर बाल संवारे। ब्यूटीफुल ने पर्स खोला आइना निकाला सूरत देखी रुमाल मुँह पर फेरा फिर अपने कटे फटे ओंठों की मरम्मत कर एक लिपस्टिक को धन्य कर दिया। ओंठों का स्पर्श पाकर लिपस्टिक मुस्कराने लगी। हेंडसम ने ब्यूटीफुल की तरफ और ब्यूटीफुल ने हेंडसम की तरफ प्यार भरी नज़र से देखा और हाथों में हाथ डालकर आगे बढ़ गये।
"ओ बाबूजी, ओ मेम साब हमारा पैसा," रिक्शे वाला चिल्लाया।
हेंडसम पीछे मुड़ा और एक दस का नोट रिक्शेवाले की तरफ बढ़ाया, "पहले क्यों नहीं कहा?" यह कहकर रिक्शे वाले पर रौब झाड़ा।
"पहले क्यों नहीं कहा, क्या रिक्शे वाले को बिना कहे पैसा नहीं दिया जाता?" रिक्शेवाला थोड़ा अकड़ा।
"चल ले ले और भाग यहाँ से, ’ हेंडसम ने रईसी बताई।
"दस रुपयॆ... तीस से कम नहीं होंगे दो किलो मीटर से दो सवारी ढोकर लाया हूँ।"
"अबे लेता है कि नहीं, नहीं तो मैं चला।"
"बाबूजी दस रुपये बहुत कम हैं, एक सवारी के आधा किलोमीटर के ही दस रुपये मिल जाते हैं, तीस से कम नहीं होंगे।" वह ज़िद पर अड़ गया।
"क्या तीस से कम नहीं होंगे? क्या पैसा पेड़ में फलता कि हिलाया और बरस गया, मेहनत करना पड़ती है।" हेंडसम बड़बड़ाया दस का नोट पाकिट में रखा और मिसेस ब्यूटीफुल के हाथ में हाथ डाल आगे बढ़ गया। रिक्शे वाला गालियाँ देते हुये चला गया।
"इन बड़े लोगों को शरम भी नहीं आती गरीबों का पैसा खाते हुये," वह बड़बड़ा रहा था।
हेंडसम और ब्यूटीफुल एक क्लॉथ एम्पोरियम में प्रवेश कर गये। साड़ी ब्लाउज़, नाइटी, मिडी और न जाने क्या-क्या ब्यूटीफुल ने खरीदे और पैक कराये। शानदार टर्फ की शर्ट जींस के पैंट हेंडसम ने खरीदे और बंडल में बँधवाये। दुकानदार की चाय पीकर उसके भाग्य पर चार चाँद लगाकर काउंटर पर खड़े हो गये। काउंटर मेन ने पंद्रह हज़ार रुपयों का बिल दिया हेंडसम ने बड़े जोश खरोश से बिल पेमेंट किया और ब्यूटीफुल का हाथ पकड़कर बाहर आ गया।
दुकानदार मंद-मंद मुस्कराया उसे सुबह समाचार पत्र में पढ़ा अपना भाग्यफल याद आगया, "आज चार गुना लाभ होगा" तभी तो चार हज़ार का माल पंद्रह में.....।
हेंडसम भी खुश है रिक्शे वाले से तीस रुपये बचाकर... मैं भी खुश हूँ क्यों यह नहीं मालूम।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
किशोर साहित्य कविता
आत्मकथा
किशोर साहित्य नाटक
बाल साहित्य कविता
- अंगद जैसा
- अच्छे दिन
- अब मत चला कुल्हाड़ी
- अम्मा को अब भी है याद
- अम्मू भाई
- आई कुल्फी
- आदत ज़रा सुधारो ना
- आधी रात बीत गई
- एक टमाटर
- औंदू बोला
- करतूत राम की
- कुत्ते और गीदड़
- कूकर माने कुत्ता
- गौरैया तू नाच दिखा
- चलना है अबकी बेर तुम्हें
- चलो पिताजी गाँव चलें हम
- चाचा कहते
- जन मन गण का गान
- जन्म दिवस पर
- जब नाना ने रटवाया था
- धूप उड़ गई
- नन्ही-नन्ही बूँदें
- पिकनिक
- पूछ रही क्यों बिटिया रूठी
- बादल भैया ता-ता थैया
- बिल्ली
- बिल्ली की दुआएँ
- बेटी
- भैंस मिली छिंदवाड़े में
- भैया मुझको पाठ पढ़ा दो
- भैयाजी को अच्छी लगती
- मान लिया लोहा सूरज ने
- मेंढ़क दफ्तर कैसे जाए
- मेरी दीदी
- रोटी कहाँ छुपाई
- व्यस्त बहुत हैं दादीजी
- सड़क बना दो अंकलजी
- हुई पेंसिल दीदी ग़ुस्सा
बाल साहित्य कहानी
किशोर साहित्य कहानी
बाल साहित्य नाटक
कविता
लघुकथा
आप-बीती
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं