जब नाना ने रटवाया था
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Apr 2019
साल गया है मस्ती करते,
करते ता-ता थैया रे।
लोहड़ी, होली, दीवाली की,
तीजा की ढेरों यादें,
क़ैद पड़ीं गुल्ली दीदी के,
मोबाईल में सब बातें।
क़ैद हुई दादी संग रोटी,
खाती एक बिलैया रे।
दादा दादी की शादी का,
स्वर्ण जयंती साल मना।
कई दिनों के इंतज़ार का,
था साकार हुआ सपना।
उन यादों की मन में उड़ती,
रहती अब कनकैया रे।
नये साल का स्वागत तो है,
बीता भी पर अनभूला।
नहीं झूलना बंद करेंगे,
पिछली ख़ुशियों का झूला।
जब नाना ने रटवाया था,
अद्धा पौन सवैया रे।
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