कूकर माने कुत्ता
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Mar 2019
बड़े गुरुजी पढ़ा रहे हैं,
कूकर माने कुत्ता।
राजा का कूकर तो हर दिन,
भौंका करता भारी।
आम जनों को डरवाने की,
उसको मिली सुपारी।
रहम करे कुछ ख़ास जनों पर,
कहा गया अलबत्ता।
राजा दर राजा बदले तो,
सबके कूकर भौंके।
आते थे सब रोज़ सड़क पर,
राजमहल से हो के।
रोटी के टुकड़ों का इन पर,
ताना रहा है छत्ता।
राजाओं के कूकर के गुण,
होते अजब निराले।
कुछ हैं पूँछ हिलाने, कुछ हैं,
भौं-भौं करने वाले।
वफ़ादार कूकर को मिलता,
खाना अच्छा-अच्छा।
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महेन्द्र देवांगन माटी 2019/03/01 05:37 AM
बहुत बढ़िया रचना बधाई हो