करतूत राम की
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता प्रभुदयाल श्रीवास्तव1 Oct 2019
यह देखो करतूत राम की
यह देखो करतूत।
किया कबाड़ा सारा बिस्तर,
ही गीला कर डाला।
चड्डी पूरी हो गई गीली,
गीला हुआ दुशाला।
तकिया भी न रही काम की।
हमें उठालो चड्डी बदलो,
माँ को किए इशारे।
लगी ज़ोर से, मजबूरी थी,
कर दी सुबह सकारे।
हुई ज़रूरत, अब हमाम की।
माँ ने तकिए चादर बिस्तर,
दर्जन भर बनवाए।
मजबूरी के पल आयें तो,
कमी नहीं पड़ जाए।
चड्डी हैं "सौ" राम नाम की।
यह देखो करतूत राम की,
यह देखो करतूत।
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