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प्रथम दृष्टयासूर्य - प्रसाद शुक्ल (समीक्षक)

समीक्ष्य पुस्तक: मन की पीर (कहानी संग्रह)
लेखिका: डॉ. रश्मि शील
समीक्षक: प्रसाद शुक्ल
प्रकाशक: पुस्तकबाज़ार.कॉम
(info@pustakbazar.com)
pustakbazaar.com
संस्करण: 2017 ई-पुस्तक
मूल्य: $3.00 (CDN)
पृष्ठ संख्या: 177
डाउनलोड लिंक: मन की पीर

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास ने मनुष्य को अंतरिक्ष और आकाश की अनन्त दूरियों तक अपने विस्तार की असीम क्षमताएँ प्रदान की हैं, किन्तु आज भी पृथ्वी पर आर्थिक विफलताओं और सामाजिक असमानताओं में रह रहे मनुष्यों के ही एक वर्ग को सामान्तवादी सोच की क्रूरताओं के बीच जीने के लिए विवश होना पड़ रहा है। प्रस्तुत कहानी संग्रह "मन की पीर" में इसी वर्ग की जीवन स्थितियों पर आधारित घटनाओं और चरित्रों को सह-अनुभूतिपूर्ण कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इन कहानियों में ग्राम्य जीवन में व्याप्त असहिष्णुता को आर्थिक दृष्टि से संपन्न सामंतवादी वर्ग और साधनहीन हर प्रकार से विपन्न मनुष्य की कठिनाइयों से भरी ज़िन्दगी की सच्चाइयों को नज़दीक से देखकर यथार्थ चित्रण हुआ है। हमारे संविधान ने गाँधी-दर्शन के अनुरूप सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए पंचायती राज की स्थापना का महत्वपूर्ण पथ प्रशस्त किया है, किन्तु इस व्यवस्था के लिए गाँवों में जो चुनावी प्रक्रिया हो रही है, उससे हिंसा और आपसी वैमनस्यता का कुटिल रूप भी सामने आया है। इस प्रणाली के दुष्परिणामों से उपजी दुश्मनी, पार्टीबाजी और चुनावी ख़रीद-फ़रोख़्त के कारण गाँवों में आपसी सौमनष्यता का अंत हो गया है। इस संकलन की पहली कहानी "अधूरा सपना" इस कथन का प्रमाण है। खेतिहर मज़दूरों का शोषण, उनकी भूमि पर ज़बरन कब्ज़ा, सूदखोरों और ज़मीनदारों का अत्याचार और अमानवीयता, जातीय वर्ग-विद्वेष, निधर्नता और साधनहीनता से उपजी अंतहीन व्यथा कथा तथा बीमारी में भी उचित चिकित्सा न मिल पाने से मृत्यु तक हो जाना जैसी समस्याओं और घटनाओं को इन कहानियों में यथार्थ दृष्टि प्राप्त हुई है।

कवि-लेखक और विविध साहित्यिक विधाओं का सफल रचनाकार वही हो सकता है, जिसे करुणा और प्रेम का वरदान मिला हो। प्रस्तुत संग्रह की सभी कहानियाँ सत्य की अभिव्यक्ति हैं। इसी लिए इनमें जीवन की स्वभाविकता है। प्रायः सभी शीर्षकों में पात्रानुकूल आँचलिकता की शब्द-संस्कृति से उपजी बोली के शब्द तो इनमें हैं ही, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर और लखनऊ भी इन प्रस्तुतियों में मुखर हुआ है।

इस संकलन की सभी कहानियाँ उपयोगितावादी दृष्टिकोण की प्रतिनिधि हैं। इनमें वर्णनात्मकता है, सुगठित कलेवर का कथानक है, पाठकीय जिज्ञासा और मनोवैज्ञानिक उत्सुकता के साथ अंत तक पढ़ने की सुरुचि-सम्पन्नता है तो कथानक, चरित्र चित्रण, पृष्ठभूमि, संवाद और शैली का अपनापन है। भाषा का आँचलिक और क्षेत्रीय विन्यास अपनी शब्द-संस्कृति के प्रति अनुराग का द्योतक है।

यह कहानियाँ अपनी पृष्ठभूमि के अनुरूप सामाजिक स्थतियों की जीवंत व्यवथाओं की कथाएँ हैं। यद्यपि अमर कथाकार प्रेमचन्द्र ने सन् 1935-36 में इन्हीं संवेदनाओं को तत्कालीन स्थितियों के अनुरूप शब्द दिए थे जिसमें चुनावी रंजिश के परिणाम तो नहीं थे, किन्तु धर्म के ठेकेदारों छोटे-बड़े महाजनों और ज़मीनदारों के जाल में उलझी किसानों और मज़दूरों की ज़िन्दगी के सच तो थे ही। इन कहानियों की लेखिका ने आज की स्थितियों के अनुरूप शोषक और शोषित का ज्वलंत सत्य साहस और तेवर के साथ समाज के सामने प्रस्तुत किया है।

यथार्थवादी प्रगतिशील लेखन में आग्नेय वक्तव्य और घटनाओं की चेतन दृष्टि से उपजी अभिव्यक्तियाँ होती हैं, किन्तु इन कहानियों में सामाजिक यथार्थ के आकलन के साथ ही प्रेम, प्रकृति और सौन्दर्य के बिम्ब भी हैं। "मन की पीर" कहानी में लेखिका ने पर्वतीय संवेदना के सामाजिक सत्यों में जहाँ श्रम और श्रमिक, स्त्री-पुरुषों की मानसिक और शारीरिक स्थितियों का वर्णन रोचकता के साथ किया है वहीं प्रकृति और पुरुष की प्रीति को नैसर्गिक भावात्मकता के साथ मन की मधुरता से किस प्रकार सुषमा प्रदान की है वह भी परिवेश की प्रतीति का सुखद अनुभव है। तिलोगा एक श्रमिक की पत्नी है। अभावों में जी रही है। पति बीमार है। किन्तु जब उसने उगते हुए सूरज में प्राणों को उत्कर्षित करने वाली छवि के दर्शन किये तब उसने "सिर उठाकर आसमान की ओर निहारा फिर मुस्करा उठी; आख़िर तीन-चार दिन से छाये कोहरे की धुँध को पराजित कर सूरज आसमान के सिंहासन पर आ बैठा था। सर्द बर्फ़ीली हवा से ख़ुद को बचाने के लिए उसने ओढ़नी सिर से लेकर गले तक अच्छी तरह लपेट ली। सिर्फ़ एक अनाम, सुखद भाव से भर कर तिलोगा ने सूरज को उपकृत भाव से देखा। सोचा यह सूरज उसके गाँव के पीछे वाले पहाड़ की ओट से निकलकर उससे ही तो मिलने आया है।"

इन शब्दों में भावना का विस्तार, प्रकृति का नैसगिक सौन्दर्य और कथनों में कविता जैसे प्रयोगों में मानवीकरण और उपमा तथा उपमेय देखे जा सकते हैं।

किसी स्त्री के लिए मातृत्व का सुख परम सौभाग्य का विषय होता है किन्तु जब उसके अपने ही पुत्र-प्राप्ति की चाहना के लिए कन्या भ्रूण हत्या के महापाप में ढकेल दें तो उसकी पीड़ा और असहायता से उपजे क्रोध और क्षोभ को कैसे समझा जा सकता है! "झूठ के सहारे" शीर्षक कहानी की अनुष्का की यह आवाज़ दिल दहला देने वाली ही है जब वह अपनों के द्वारा किये इस कुकृत्य से आहत होकर कहती है कि "तुम सब हत्यारे हो। तुमने एक बच्चे की हत्या की है। किसी की ममता की हत्या की है और अपने पापी कृत्य पर भगवान की मर्ज़ी कहकर पर्दा डाल रहे हो।"

इन कहानियों में स्त्री संवेदना का विर्मश बहुत करुणार्द्य होकर प्रकट हुआ है। "अपना-अपना आसमान" की माधवी का वैधव्य और अपनों की ही बेरुखाई और स्वार्थपरता का जो घटनाक्रम लेखिका ने उकेरा है वह अत्यंत मर्मान्तक संवेदना प्रसूत लगता है।

केदारनाथ घाटी की हृदय विदारक दुर्घटना और तत्कालीन विनाश लीला से प्रभावित जीवन स्थितियों का "मन की पीर" शीर्षक कहानी में जो वर्णन हुआ है वह अपने पात्रों के जीवन का, उनके रहन-सहन और सामाजिक दशाओं का तथा दुर्घटना के बाद की स्थितियों का वर्णन है। लेखिका ने सचमुच अपने मन की पीड़ा को सहानुभूति और करुणा के भाव-प्रवाह से अंकित करने का प्रयास किया है।

डॉ. रश्मि शील के प्रस्तुत कहानी संग्रह में आधुनिक समाज के व्यापक मानवीय दृष्टिकोण का अनेक सामाजिक स्थितियों और परिस्थितियों के अनुरूप दलित-विमर्श और स्त्री संवेदना के तत्वों से उत्कर्षित भावना और विचार का घटनाओं और चरित्रों में विशेषताओं के साथ वर्णन हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं के रूप में आँगनवाडी आदि संस्थाओं का भी कथात्मक उल्लेख हुआ है। निःसंदेह इन कहानियों के पात्र तो प्रायः साधारण और निम्न आर्थिक वर्ग के ही अधिक हैं किन्तु उनके चरित्र-चित्रण और मनोवैज्ञानिक घटना-क्रमों के विष्लेशण एवं प्रवृत्ति से पता चलता है कि इनमें जीवन के महत तत्व और तथ्य प्रवृत्तिमूलक स्थापनाओं के साथ उद्घाटित हुए हैं। प्रत्येक पात्र का अपना परिवेश है, अपनी चारित्रिक विशेषता है जिसे लेखिका ने कहानियों में सफलतापूर्वक निरूपित किया है। इनमें वर्णित विषयों को हम घटना प्रधान, चरित्र प्रधान, वातावरण प्रधान तथा भाव प्रधान वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक अवधारणाओं को भी विषयानुरूप स्थान मिला है।

इस संग्रह की सभी कहानियों में सच्चाई और यथार्थ की पैठ है। अनेक व्यक्तिवाचक नाम और स्थानों के वर्णन से तो लगता है कि वे लेखिका के अत्यंत समीप के ही हैं।

सामाजिक कहानियों के इस संग्रह को आधुनिक विषय वस्तुओं के वर्णन का महत्वपूर्ण लेखन कहा जा सकता है, जो "मन की पीर" का सामाजिक यथार्थ है।

सूर्य प्रसाद शुक्ल
119/501 सी-3 दर्शनपुरवा
कानपुर-208012
मो. 09839202423

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